ब्रिटिश शासन के दौरान पंडितों ने संस्कृत को जीवित रखा
संक्षेप: - कैंब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए शोध में दावा -

लंदन, एजेंसी। सत्रहवीं शताब्दी से जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद फैल रहा था, तब विद्वान पंडितों ने सुदूर बस्तियों में संस्कृत बौद्धिक विचार, साहित्य और कला को जीवित रखा। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक नए शोध में गुरुवार को यह दावा किया गया। शोध में ब्राह्मण बस्तियों या अग्रहार, और मठों या गुरुकुल में रह रहे सैकड़ों गुमनाम साहित्यिक विशेषज्ञों की विद्वत्तापूर्ण गतिविधियों की ओर इशारा किया गया है। तथा इस पारंपरिक प्रचलित धारणा का खंडन किया है कि भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विस्तार ने संस्कृत विद्वत्ता को लगातार प्रभावित किया। साहित्यिक प्रतिभाओं से कम लोग परिचित थे विश्वविद्यालय के एशियाई एवं पश्चिम एशिया अध्ययन संकाय तथा सेल्विन कॉलेज के परियोजना प्रमुख डॉ. जोनाथन ड्यूक्वेट ने कहा कि इन लोगों में साहित्यिक प्रतिभाएं थीं लेकिन भारत में बहुत से लोग उन्हें नहीं जानते।
उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ पंडितों का संस्कृत विद्वत्ता पर गहरा प्रभाव था। एक बहुत छोटा अल्पसंख्यक वर्ग आज भी उनका सम्मान करता है, लेकिन उन्हें और उनके कार्यों को लगभग भुला दिया गया है। हम उन ग्रंथों का अध्ययन करेंगे जिनका कभी अनुवाद नहीं हुआ, और यह भी संभव है कि हमें ऐसे ग्रंथ भी मिलें जिनका पश्चिम में कभी अध्ययन नहीं किया गया या जिनकी सूची भी नहीं बनाई गई। पश्चिम के प्रभाव वाले विद्यालयों में भेजा 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने संस्कृत संरक्षण के केंद्र तंजावुर के दरबार पर नियंत्रण कर लिया जिसके बाद इस क्षेत्र में अंग्रेजी भाषी विद्यालयों का प्रसार शुरू हुआ। कहा जाता है संस्कृत का अध्ययन हमेशा से एक कुलीन अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा किया जाता रहा है। यहां ब्राह्मण वेदों का अध्ययन करने और संस्कृत दर्शन एवं साहित्य का अध्ययन करने के लिए पारंपरिक विद्यालयों में जाते थे। हालांकि, सन् 1799 के बाद धीरे-धीरे बहुत कम ब्राह्मण परिवारों ने अपनी संतानों को पुजारी बनाने का लक्ष्य रखा और उन्हें पश्चिमी प्रभाव वाले विद्यालयों में भेजना शुरू कर दिया। कावेरी डेल्टा में खोजबीन कर रही टीम डॉ. ड्यूक्वेट ने कहा कि इससे संस्कृत विद्वत्ता का बहुत जल्दी पतन हो सकता था लेकिन आंशिक रूप से इन ग्रामीण बस्तियों के कारण यह बची रही। हो सकता है कि उनके दूरस्थ स्थान ने इसमें मदद की हो। डॉ. ड्यूक्वेट की टीम 1650-1800 की अवधि पर ध्यान केंद्रित कर रही है और कावेरी डेल्टा में विशेष बौद्धिक महत्व की 20 या अधिक बस्तियों की पहचान करने की उम्मीद कर रही है।

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