संकट : उम्मीद से ज्यादा बढ़ा समुद्र में पानी, वैज्ञानिक बोले-धीमी तबाही
नासा की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र का जलस्तर 2024 में 0.23 इंच बढ़ गया, जो 1993 से 3.97 इंच की वृद्धि है। अगर यह स्थिति जारी रही, तो मुंबई, लंदन, वेनिस और अन्य तटीय शहरों को गंभीर खतरे का सामना करना...

नई दिल्ली, एजेंसी। धरती का तापमान बढ़ रहा है और इसका सबसे बड़ा असर महासागरों पर दिखने लगा है। नासा की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में समुद्र का जलस्तर उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ा, जिससे मुंबई समेत सैकड़ों तटीय शहरों के डूबने का खतरा और गहरा गया है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘धीमी तबाही करार दिया है, जो आने वाले दशकों में विकराल रूप ले सकती है।
नासा ने 2024 में समुद्र के जलस्तर में 0.17 इंच बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था, लेकिन असलियत में यह 0.23 इंच तक बढ़ गया। यह अंतर मामूली नहीं है, क्योंकि जलस्तर की इस तेजी का मतलब है कि महासागर अधिक गर्म हो रहे हैं और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। नासा के वैज्ञानिक जोश विलिस ने चेतावनी देते हुए कहा, हर साल जलस्तर में बदलाव होता है, लेकिन अब यह पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।
हालात और बिगड़ेंगे
रिपोर्ट में कहा गया है, 1993 से अब तक समुद्र का जलस्तर 3.97 इंच बढ़ चुका है। हालात यही रहे तो 2040 तक इसमें 2.75 इंच और बढ़ोतरी हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बढ़ोतरी समुद्री तटों और शहरों के लिए खतरनाक साबित होगी।
मुंबई समेत कई बड़े शहरों पर खतरा
रिपोर्ट के अनुसार, अगर यही हालात जारी रहे तो लंदन, वेनिस, नीदरलैंड, बैंकॉक, बसरा और नवी मुंबई जैसे शहरों के बड़े हिस्से समुद्र में समा सकते हैं। अमेरिका में न्यू ऑरलियन्स, गैल्वेस्टन और चार्ल्सटन जैसे इलाके भी डूबने की कगार पर हैं। भारत में मुंबई और अन्य तटीय शहरों पर भी गंभीर संकट मंडरा रहा है।
‘नेट जीरो ही एकमात्र उपाय
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के जलवायु वैज्ञानिक प्रोफेसर रिचर्ड एलन ने इस स्थिति को ‘धीमी लेकिन तय तबाही करार दिया है। उन्होंने कहा, इस सदी में कई बड़े शहर जलस्तर वृद्धि की चपेट में आ जाएंगे और इसका असर कई सदियों तक रहेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खतरे को टालने का इकलौता तरीका ‘नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन अपनाना है। यदि ग्लोबल वार्मिंग को रोका नहीं गया, तो भविष्य में यह तबाही और भी विकराल हो सकती है।
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भूमध्य सागर का तल बना ‘कूड़ादान
भूमध्य सागर का सबसे गहरा हिस्सा कैलिप्सो डीप (16,770 फीट गहराई) अब यूरोप का सबसे गहरा ‘कूड़ादान बन चुका है। बार्सिलोना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने लिमिटिंग फैक्टर पनडुब्बी की मदद से यहां प्लास्टिक बैग, धातु के डिब्बे, कांच की बोतलें और कागजी कचरा पाया है।
अध्ययन में 167 तरह के कचरे की पहचान हुई, जो समुद्री धाराओं से बहकर या जहाजों द्वारा फेंका गया हो सकता है। कैलिप्सो डीप की संरचना इसे कचरा पकड़ने का जाल बना देती है, जिससे यह लंबे समय तक वहीं जमा रहता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि भूमध्य सागर प्रदूषण के चरम पर है और इससे निपटने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। यह अध्ययन मरीन पॉल्युशन बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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