मां और भाई-बहन को बचाने के लिए की थी हत्या
मां-बहन और भाई को बचाने के लिए पिता की हत्या करने वाले बीटेक छात्र को अदालत ने बुधवार को रिहा कर दिया। अदालत ने माना कि पिता, पत्नी और बच्चों को रोजाना पीटता था। इससे तंग आकर छात्र ने यह कदम...
मां-बहन और भाई को बचाने के लिए पिता की हत्या करने वाले बीटेक छात्र को अदालत ने बुधवार को रिहा कर दिया। अदालत ने माना कि पिता, पत्नी और बच्चों को रोजाना पीटता था। इससे तंग आकर छात्र ने यह कदम उठाया।
सागरपुर इलाके के इस बहुचर्चित मामले में अदालत ने हत्या के मुकदमे को गैर इरादतन हत्या में बदलने का भी आदेश दिया। घटना 26 मई 2016 की है। दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के सागरपुर इलाके में बीटेक के छात्र ने अपने पिता की चाकू घोंपकर हत्या कर दी थी। इसके बाद से ही वह जेल में बंद था।
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे की अदालत ने बुधवार को दोषी छात्र को रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि उसने पर्याप्त सजा काट ली है। अदालत ने माना कि मां और छोटे बहन-भाई को रोज पिता के हाथों पीटता देख आवेश में आकर छात्र ने यह कदम उठाया। जेल में रहते हुए उसने बीटेक की पढ़ाई जारी रखी। साफ है कि वह सुधारात्मक रास्ते पर था। अदालत ने कहा कि आपराधिक मामलों में सजा से तात्पर्य दंडात्मक और सुधारात्मक दोनों प्रकार से होता है। यह उम्मीद की जाती है कि अपराधी अपने व्यवहार में सुधारात्मक बदलाव लाएगा। कोर्ट ने कहा कि परिवार की दुर्दशा पर किसी भी सदस्य का इस तरह प्रतिक्रिया देना कोई चौंकाने वाला नहीं है। घटना के समय युवक की आयु महज 20 साल नौ महीने थी।
रसोई के चाकू से हत्या की थी
छात्र ने रसोई में इस्तेमाल होने वाले चाकू से पिता की हत्या की थी। चाकू घटनास्थल से बरामद हुआ था। मृतक के भाई का कहना था कि उनका भाई शराब पीने का आदी था।
परिवार को मुआवजा देने के आदेश
मृतक की पत्नी और दोषी की मां की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अदालत ने नई दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण को तीन लाख से दस लाख रुपये तक मुआवजा देने का निर्देश दिया। अभियुक्त की मां कपड़े सिलकर अपने नाबालिग बच्चों की पढ़ाई करा रही है।
महज पांच सौ रुपये जुर्माना लगाया
अदालत ने दोषी छात्र पर महज पांच सौ रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि छात्र के पास जुर्माना भरने के लिए कोई अतिरिक्त संसाधन नहीं है। इसलिए उसे राहत दी जाती है।
अदालत ने इन बातों को अहम माना
- घटना के बाद छात्र भागा नहीं, उल्टा वह जख्मी पिता को लेकर अस्पताल गया और वहां डॉक्टर को पूरी वारदात बताई।
- दोषी छात्र परिवार का बड़ा बेटा है और परिवार व उसके व्यवहार से साफ है कि वह अपनी जिम्मेदारी से वाकिफ है।
- जेल में रहते हुए भी उसने बीटेक छठे सेमेस्टर की ना सिर्फ तैयारी की बल्कि इसे उत्तीर्ण भी किया और सातवें सेमेस्टर में दाखिले की योग्यता भी पाई।
- मुकदमे की हर तारीख पर छात्र की मां (मृतक की पत्नी) बेटे के समर्थन में उपस्थित रहीं। अन्य सदस्यों ने भी छात्र को बचाने के लिए बयान बदल लिए।
- छात्र के परिवार में विधवा मां और तीन नाबालिग भाई-बहन हैं, जोकि सभी पढ़ते हैं। उन सभी लोगों की जिम्मेदारी भी अब इस छात्र पर ही आ गई है।