मणिपुर हिंसा : अदालत में हो सभी वकीलों का प्रवेश : सुप्रीम कोर्ट
खास समुदाय के लोगों को अदालतों में रोके जाने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने

खास समुदाय के लोगों को अदालतों में रोके जाने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश
अदालत ने कहा, किसी भी धर्म या समुदाय के वकीलों को कोर्ट में पेश होने से न रोका जाए
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को हिंसा प्रभावित मणिपुर में वकीलों के संघों, खासकर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि वकीलों को अदालत में पेश होने से नहीं रोका जाए। भले ही चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों। शीर्ष अदालत ने मणिपुर हिंसा से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने यह आदेश तब दिया, जब वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि एक खास समुदाय के लोगों को उच्च न्यायालय/ अदालत में पेश होने से रोका जा रहा है। यहां तक उन्होंने धमकियां देने के साथ उन पर हमले हो रहे हैं। इसके बाद शीर्ष अदालत ने मणिपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करने और बताने का आदेश दिया कि किसी भी वकीलों को उनके धार्मिक या अन्य संबद्धता के आधार पर कोर्ट में पेश होने से नहीं रोका जा रहा है।
बार से मांगी सारणीबद्ध रिपोर्ट :
पीठ ने उन्हें इस बारे में एक बयान तैयार करने और उच्च न्यायालय के आदेशों की प्रतियां पेश करने को कहा है, जिससे साबित हो सके कि सभी समुदायों के वकील पेश अदालत में पेश हो रहे हैं। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के वकील को आदेशों, तारीखों और पेश होने वाले वकील कौन थे, इसका एक सारणीबद्ध रिपोर्ट तैयार करने कहा जिसमें सभी सामुदायिक वकील पेश हों। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम देखना चाहते हैं कि बार के सदस्यों को धार्मिक या उनके समुदाय के आधार पर पेश होने से नहीं रोका जा रहा है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन बोले, मुझे रोका गया :
मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने भी पीठ को बताया कि उन्हें दो मौकों पर मणिपुर हाईकोर्ट में पेश होने की अनुमति नहीं दी गई थी। हालांकि, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजित कुमार ने आरोपों को आधारहीन बताया और जोर देकर कहा कि किसी को पेश होने से नहीं रोका जा रहा है और सभी समुदायों के वकील अदालत में पेश हो रहे हैं।
इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट का लक्ष्य राज्य के प्रशासन के हर विवरण की जांच करना नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर प्रशासन चलाने का कोई इरादा नहीं रखता हैं, हम इस मामले की सुनवाई हर हफ्ते नहीं करेंगे, हम इसे हर चार हफ्ते में सुनेंगे। हम नहीं मानते कि मणिपुर का उच्च न्यायालय काम नहीं कर रहा है।
हिंसा प्रभावित पात्रों को मिलें आधार कार्ड :
इसी बीच एक समुदाय के वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनके घर पर हमला हुआ है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि उन सभी हिंसा प्रभावित पात्र लोगों को आधार कार्ड मुहैया कराया जाना चाहिए, जिनके रिकॉर्ड सत्यापन के बाद भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के पास उपलब्ध हैं। न्यायालय ने कहा कि मौजूदा आधार कार्ड वाले व्यक्तियों के बायोमेट्रिक्स से प्रक्रिया सरल हो जाएगी। सुनवाई के दौरान कुछ आधार कार्ड धारकों के संभवतः अवैध अप्रवासी होने का मुद्दा भी पीठ के समक्ष उठाया गया। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने सत्यापन के महत्व पर जोर दिया।
केंद्र और राज्य से मांगा जवाब :
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने मणिपुर के स्वास्थ्य सचिव को उन लोगों के लिए डुप्लिकेट दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया जो विस्थापन अवधि के दौरान छूट गए थे। इससे पहले पीठ को बताया कि हिंसा प्रभावित लोगों को मुआजवा, मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने से जैसे मुद्दों की पड़ताल के लिए गठित समिति ने अपनी नौंवी रिपोर्ट पेश कर दी है। पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार से इस पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
