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दोषियों को कम सजा देने से कानून में जनता का भरोसा होगा कम

अपने पूर्व नियोक्ता की बहू से दुष्कर्म एवं उसकी हत्या का प्रयास करने के जुर्म में एक व्यक्ति को निचली अदालत से मिली 10 साल कड़ी कैद की सजा को हाईकोर्ट ने बहाल रखा है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा...

दोषियों को कम सजा देने से कानून में जनता का भरोसा होगा कम
हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSun, 25 Jun 2017 11:07 PM
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अपने पूर्व नियोक्ता की बहू से दुष्कर्म एवं उसकी हत्या का प्रयास करने के जुर्म में एक व्यक्ति को निचली अदालत से मिली 10 साल कड़ी कैद की सजा को हाईकोर्ट ने बहाल रखा है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि दोषियों को सजा कम देकर उनके प्रति अनावश्यक सहानुभूति दिखाने से लोगों का कानून के प्रति भरोसा कम होगा। जस्टिस एस.पी. गर्ग ने सजा कम करने की मांग को लेकर दोषी व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अपर्याप्त जेल अवधि की सजा देना समाज के लिये एक गंभीर खतरा है, जो इसे सहन करने में सक्षम नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अदालतों का यह कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और उसे अंजाम देने के तरीके के अनुरूप दोषी को कानून के दायरे में उचित सजा दे। हाईकोर्ट ने कहा है कि अपर्याप्त सजा देकर अनावश्यक सहानुभूति दिखाने से न्याय प्रणाली को कहीं अधिक नुकसान होगा। साथ ही, इससे लोगों का कानून की क्षमता में भरोसा कमजोर होगा। निचली अदालत ने अपने पूर्व मालिक की बहू से दुष्कर्म और उसकी हत्या करने के प्रयास में आरोपी को दोषी ठहराते हुए दस साल कैद की सजा सुनाई थी। पीड़िता दोषी व्यक्ति को नौकरी पाने में सहायता कर रही थी और उसके बच्चों को पढ़ाती भी थी। हाईकोर्ट ने सजा कम करने की मांग खारिज करते हुए कहा है कि उसने पीड़िता के साथ विश्वासघात किया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार 24 जून 2014 को आरोपी पानी पीने के बहाने घर में घूसा था। उस वक्त महिला घर में अकेली थी और इसका फायदा उठाते हुए आरोपी ने शराब के नशे में उससे दुष्कर्म किया और उसकी हत्या करने की कोशिश की थी।

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