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रेलवे ने 70 साल बाद बदले ट्रेन ड्राइवर और गार्ड के ड्यूटी से जुड़े नियम, जानिए

रेलवे अब ट्रेन ड्राइवर (लोको पायलट) और गार्ड को उनके निर्धारित आराम के वक्त ड्यूटी पर नहीं बुलाएगा। इससे रनिंग स्टाफ (ड्राइवर-गार्ड) को हेड क्वार्टर (घर) अथवा आउट स्टेशन पर पूरा आराम मिलेगा। रेलवे...

रेलवे ने 70 साल बाद बदले ट्रेन ड्राइवर और गार्ड के ड्यूटी से जुड़े नियम, जानिए
नई दिल्ली, अरविंद सिंहSun, 05 Aug 2018 10:40 AM
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रेलवे अब ट्रेन ड्राइवर (लोको पायलट) और गार्ड को उनके निर्धारित आराम के वक्त ड्यूटी पर नहीं बुलाएगा। इससे रनिंग स्टाफ (ड्राइवर-गार्ड) को हेड क्वार्टर (घर) अथवा आउट स्टेशन पर पूरा आराम मिलेगा।

रेलवे बोर्ड ने सुधारों के तहत 70 साल बाद रनिंग स्टाफ के नियमों में बदलाव किया है। इससे रेल संरक्षा मजबूत होगी और ट्रेन हादसों में कमी आएगी। रेलवे बोर्ड ने पिछले हफ्ते रनिंग स्टाफ के ड्यूटी आवर्स के नियमों में बदलाव करने संबंधी अधिसूचना जारी कर दी है। अधिकारियों ने बताया कि ड्राइवर-गार्ड को आठ घंटे ट्रेन चलाने के बाद 16 घंटे का आराम मिलता है, ताकि वह पूरी नींद ले सकें। यदि ड्यूटी आठ घंटे से कम है तो आराम की अवधि 12 घंटे रह जाती है। लेकिन, रेलवे बोर्ड ने नियम में परिवर्तन कर दिया है। अब ड्यूटी आठ घंटे से कम होगी तो भी रनिंग स्टाफ को 16 घंटे का पूरा आराम मिलेगा। यह नियम हेड क्वार्टर (पोस्टिंग का स्थान) पर लागू होते हैं।

इसी प्रकार जब रनिंग स्टाफ आउट स्टेशन पर होते है तो आठ घंटे की ड्यूटी पूरी होने पर रनिंग रूम में आठ घंटे आराम कर सकते हैं। यदि ड्यूटी कम की है तो उसे छह घंटे आराम करने के लिए मिलेंगे। रेलवे बोर्ड के नियम के मुताबिक हेडक्वार्टर में आराम की अवधि के दौरान दो घंटे पहले कॉलमैन (कर्मचारी) बुक लेकर ड्राइवर-गार्ड के घर पहुंच जाते हैं। रेलवे ने अब तय किया है कि कॉलमैन 16 घंटे के बाद ही बुक लेकर घर पर जाएंगे।

आईआरएलओ के संजय पांधी ने बताया कि दो घंटे रनिंग स्टाफ के आराम समय में जुड़ते थे। सात दशक से उनकी एसोसिएशन व रेल यूनियन एआईआरएफ उक्त दो घंटे रेस्ट टाइम से बाहर करने की मांग कर रहे थे, जिसे रेलवे बोर्ड ने अब मान लिया है। एआईआरएफ के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा ने बताया कि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने रनिंग स्टाफ के रेस्ट टाइम पर मंजूरी दे दी है।

85 फीसदी ट्रेन दुर्घटनाएं मानवीय चूक से
रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि देश में 85 फीसदी ट्रेन दुर्घटनाएं मानवीय चूक के कारण होती हैं। शेष हादसे तकनीकी व उपकरण फेल होने के कारण होती है। अपर्याप्त आराम अथवा नींद पूरी नहीं होने पर रनिंग स्टाफ तनाव-अवसाद में आ जाते हैं। इससे उनकी रिएक्शन क्षमता कमजोर हो जाती है। जबकि 130 की रफ्तार पर दौड़ती ट्रेन से सिग्नल देखकर कुछ सेकेंड में फैसला लेना होता है।

देशभर में ड्राइवरों की मनोवैज्ञानिक जांच हो रही 
विदेशी कंपनी ट्रेन दुर्घटना करने वाले ड्राइवरों-सहायक ड्राइवरों की कुल 128 प्रकार की मनोवैज्ञानिक जांच कर रही है। जांच का काम पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड तरीके से किया जाता है। विशेषज्ञ आपातकालीन स्थिति में ड्राइवरों के दिमाग पर होने वाले प्रभाव के बारे में पड़ताल करते हैं, इसमें सवाल-जवाब किए जाते हैं। दुर्घटना के तुरंत बाद ड्राइवरों का रिएक्शन टाइम क्या रहता है। गार्ड व स्टेशन मास्टर का तालमेल भी जांचते हैं।

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