युद्ध प्रतिबंधों के बीच प्रभावित हो रहा आर्थिक विकास लक्ष्य
एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधों का भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट, फूड, पेट्रोलियम, ट्रांसपोर्टेशन, और हॉस्पिटैलिटी जैसे 15 क्षेत्रों में निवेश और लागत...

- वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधों से भारत इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट, फूड और वेबरेज, पेट्रोलियम, ट्रांसपोर्टेशन, ट्रेवल और हॉस्पिटैलिटी जैसे 15 क्षेत्रों पर पड़ा रहा असर - राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान का अध्ययन, प्रतिबंधों के चलते निवेश से लेकर लागत समेत तमाम आर्थिक गतिविधियां होती हैं प्रभावित
नई दिल्ली। अरुण चट्ठा
युद्धों के बीच लगाए जा रहे प्रतिबंधों का असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर दिखाई पड़ रहा है। प्रतिबंधों के इन प्रभावों से भारत भी अछूता नहीं रहा है। बीते दशकों एवं कुछ वर्षों में अमेरिका व अन्य देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते भारत में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट, फूड एंड वेबरेज, पेट्रोलियम, ट्रांसपोर्टेशन, ट्रेवल और हॉस्पिटैलिटी जैसे 15 क्षेत्रों का आर्थिक विकास कार्य प्रभावित हुआ है। राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) द्वारा उर्जित आर. पटेल के निर्देशन में हुए अध्ययन से पता चलता है कि प्रतिबंधों के चलते भारत के दुनिया के बाकी देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को तय लक्ष्य तक पहुंचने में लंबा समय लग रहा है।
रिपोर्ट कहती है कि प्रतिबधों के बीच निवेश लक्ष्य प्रभावित हो रहे है। दूसरे देशों के साथ व्यापार करने में अधिक ट्रांसपोर्टेशन लागत चुकानी पड़ रही है और परियोजनाओं को तय समय पर पूरा नहीं किया जा सका है। ईरान के चाबहार बंदरगाह का उदाहरण दिया गया है कि किस तरह से लंबी वार्ता के बाद भी अभी तक परियोजना पूरी नहीं हो पाई है। बंदरगाह निर्माण के लिए वर्ष 2003 में वार्ता शुरू हुई लेकिन उसके तत्काल बाद ईरान पर अमेरिका ने प्रतिबद्ध लगा दिए, जिससे रुकावट आई। वर्ष 2015 में ईरान परमाणु समझौते के तहत अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद पुनः वार्ता शुरू हुई। इसके बाद 2016 में ईरान, अफगानिस्तान और भारत द्वारा त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। उसके बाद 2017 में अफगानिस्तान को भारतीय गेहूं की पहली खेप चाबहार में उतारी गई। वर्ष 2018 में अमेरिका ने परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया और ईरान पर अधिकतम दबाव वाले प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया। इससे चाबहार बंदरगाह पर परिचालन सीमित हो गया।
----------
10 वर्ष के समझौते के बाद रुकावट
इस वर्ष (2024) में भारत ने बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने के लिए ईरान के साथ 10-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए तो मई में अमेरिकी विदेश विभाग ने प्रेस वार्ता कर एक तरह से चेतावनी दी कि अगर कोई भी संस्था, जो ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रही है, उसे संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए। इस तरह से 20 वर्ष के बाद भी परियोजना का पूरा नहीं किया जा सका है।
----------
रूस-युक्रेन युद्ध के बीच प्रतिबंध में फंसी बड़ी रकम
लंबे समय से रूस-युक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, जिसको लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की तरफ से कई व्यापारिक प्रतिबंद्ध लगाए हैं। इन्हीं प्रतिबंद्धों के बीच भारत रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है लेकिन रिपोर्ट बताती है कि भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों की उनके रूसी अपस्ट्रीम तेल इक्विटी में निवेश से बीते कुछ वर्षों में अवैतनिक लाभांश आय का करीब 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक फंस हुआ है। अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा भुगतान चैनल-संबंधी प्रतिबंधों के आय की प्राप्ति न होने से भारतीय तेल कंपनियों के निवेश और सरकार के बजटीय राजस्व पर असर पड़ता है।
-----------
प्रतिबंध से प्रभावित क्षेत्र और उनकी संस्था
क्षेत्र संस्था
कृषि 1
इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट 1
वित्त 4
फूड एंड बेवरेज 2
सूचना प्रौद्योगिकी 1
पेट्रोकेमिकल 3
पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद 1
एलएनजी टैंकर 1
समुद्री और तटीय माल ढुलाई 9
शिपिंग और समुद्री 1
दूरसंचार 1
तंबाकू उत्पाद 1
परिवहन 1
यात्रा और आतिथ्य 1
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।