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किचन और बाथरूम के बगैर मकान रिहायशी नहीं : हाईकोर्ट  

खाना बनाने के लिए रसोई और नहाने के लिए बाथरूम नहीं है तो उसे रिहायशी घर नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी एक महिला के हक में फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट 80 के दशक में भूमि...

किचन और बाथरूम के बगैर मकान रिहायशी नहीं : हाईकोर्ट  
नई दिल्ली, प्रभात कुमार Mon, 03 Sep 2018 04:36 AM
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खाना बनाने के लिए रसोई और नहाने के लिए बाथरूम नहीं है तो उसे रिहायशी घर नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी एक महिला के हक में फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट 80 के दशक में भूमि अधिग्रहण किए जाने के बदले विकसित प्लॉट देने से इनकार करने के मामले की सुनवाई कर रही है।

जस्टिस सुनील गौड़ ने दिल्ली सरकार के उस फैसले को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें महिला के पास दो कमरे का मकान होने के आधार पर विकसित भूखंड देने से इनकार किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि महिला के पास जो मकान है उसमें न तो रसोई है और न ही बाथरूम। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए यह निर्णय दिया है। 

दिल्ली सरकार को 12 सप्ताह का समय 

हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को 12 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता फहमिदा अंजुम को जमीन अधिग्रहण के बदले विकसित प्लॉट देने पर विचार करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता अंजुम की ओर से अधिवक्ता संदीप बजाज ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सरकार के फरवरी, 2018 के आदेश को खारिज करने की मांग की थी। सरकार ने अंजुम के पास दो कमरों का मकान होने के आधार प्लॉट की मांग खारिज कर दी थी। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि इस मकान में कुछ लोग 1930 से ही अनधिकृत रह रहे हैं और दो कमरों का आकार 10 गुणा 15 फीट ही है।

29 साल से लड़ाई लड़ रही 

दिल्ली के नियोजित विकास के नाम पर सरकार ने 1970-80 के दशक में बड़े पैमाने पर लोगों की जमीन अधिग्रहीत की थी। सरकार ने जमीन के बदले घर बनाने के लिए विकसित प्लॉट देने की योजना शुरू की। सरकार ने फहमिदा अंजुम के पिता मो. स्वालिन की जमीन का भी अधिग्रहण किया था। फहमिदा अंजुम के अधिवक्ता संदीप बजाज ने बताया कि परिवार वर्ष 1989 से ही जमीन के बदले प्लॉट पाने के लिए दफ्तरों और अदालत के चक्कर लगा रहा है। बकौल बजाज सरकार ने जिन लोगों के भूमि का अधिग्रहण किया, उनमें से किसी को विकसित प्लॉट नहीं दिया। 

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