सेना में महिलाओं की भर्ती सीमित नहीं की जा सकती : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सेना में महिलाओं की भर्ती संख्यात्मक रूप से सीमित नहीं की जा सकती। कोर्ट ने महिला उम्मीदवारों को 62 रिक्त पुरुष पदों पर नियुक्ति के लिए विचार करने का निर्देश दिया। यह निर्णय...

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि अधिसूचित सेना कोर में महिलाओं की भर्ती संख्यात्मक रूप से सीमित नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने सेना अधिनियम की धारा-12 का हवाला देते हुए महिला भर्तियों की वकालत की। हाईकोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 14, 15 व 16 लैंगिक समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट ने इस मामले में महिला उम्मीदवारों को राहत दी है। न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ के अपने आदेश में कहा कि पद रिक्त रहने तक पात्र महिला उम्मीदवारों को विचार से वंचित नहीं किया जा सकता। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को 62 रिक्त पुरुष पदों पर नियुक्ति के लिए विचार किया जाना चाहिए, बशर्ते कि वे एक या अधिक चिह्नित कोर व सेवाओं में उपयुक्त हों।
यह स्पष्ट किया गया कि इस आदेश का लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा, जो परिणाम घोषित होने की तिथि को निर्धारित आयु सीमा के भीतर हों। पेश मामले के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा 4 अगस्त 2021 को संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा (II) 2021 के लिए सूचना जारी की गई। इसमें भारतीय सेना में विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए। इसमें शॉर्ट सर्विस कमीशन (गैर-तकनीकी) महिलाओं के लिए पद थे। अधिसूचना के अनुसार, पुरुषों के लिए 169 व महिलाओं के लिए 16 रिक्तियां निर्धारित की गई। याचिकाकर्ता सभी महिला उम्मीदवार थीं। उन्होंने एसएससी (एनटी) महिला वर्ग के लिए आवेदन किया। परीक्षा उत्तीर्ण की। पुरुषों के लिए 169 रिक्तियों में से केवल 107 ही भरी गईं। इसलिए 62 रिक्तियां खाली रह गईं, जबकि महिलाओं के लिए सभी 16 रिक्तियां भर गईं। महिलाओं ने रिक्तियों पर भर्ती का दावा किया याचिकाकर्ता महिलाओं ने पुरुषों के लिए रिक्त 62 रिक्तियों पर नियुक्ति का दावा किया। उनका तर्क था कि महिला उम्मीदवारों की संख्या सीमित करना असंवैधानिक है। जेंडर न्यूट्रल के सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने इस देरी के कारण नियुक्ति पत्र जारी करने, भविष्य के एसएससी (एनटी) कोर्स में विचार करने व अधिकतम आयु सीमा 25 वर्ष में छूट देने के निर्देश देने की भी मांग की। हालांकि प्रतिवादियों ने उनके दावों को अस्वीकार कर दिया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर की। पदों की संख्या आरक्षित करना अनुचित पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि प्रतिवादी द्वारा उठाई गई एस्टोपल की दलील टिकने योग्य नहीं है, क्योंकि मौलिक अधिकारों का हनन केवल इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने यह जानते हुए भी परीक्षा में भाग लिया कि महिलाओं के लिए केवल 16 पद हैं। यह माना गया कि महिलाएं लड़ाकू सहायक शाखाओं व सेवाओं तक ही सीमित हैं। वे तोपखाने या बख्तरबंद डिवीजन जैसी लड़ाकू शाखाओं में प्रवेश नहीं कर सकतीं। पीठ ने यह टिप्पणी की कि नीति या निर्देशों के माध्यम से पुरुषों के लिए पदों की संख्या सीमित करना या आरक्षित करना अनुचित है।
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