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‘वरिष्ठ नागरिक का दर्जा हासिल न करने वाले अभिभावकों के लिए कोई कानून क्यों नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए 57 साल के एक व्यक्ति ने कहा है कि ऐसे माता पिता को अपने बच्चों की प्रताड़ना और हिंसा से बचाने के लिए कोई कानून नहीं है जो अभी वरिष्ठ नागरिक नहीं हुए हैं।कार्यवाहक...

‘वरिष्ठ नागरिक का दर्जा हासिल न करने वाले अभिभावकों के लिए कोई कानून क्यों नहीं
नई दिल्ली प्रमुख संवाददाता,नई दिल्लीTue, 03 Oct 2017 11:46 PM
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दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए 57 साल के एक व्यक्ति ने कहा है कि ऐसे माता पिता को अपने बच्चों की प्रताड़ना और हिंसा से बचाने के लिए कोई कानून नहीं है जो अभी वरिष्ठ नागरिक नहीं हुए हैं।

कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल एवं जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने इस याचिका पर आप सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में यह आग्रह भी किया गया है कि 60 वर्ष की आयु से कम होने की वजह से अभी तक वरिष्ठ नागरिक का दर्जा प्राप्त नहीं करने वाले माता पिता को इसमे शामिल किया जाए। इस पर पीठ ने निर्देश दिया कि जब याचिकाकर्ता पुलिस के पास जाएं तो उन्हें सुरक्षा दी जाए क्योंकि वह अपने 34 वर्षीय छोटे बेटे से जान का खतरा होने की आशंका के कारण उस घर में नहीं रह रहे हैं। पीठ ने अपने छोटे बेटे के खिलाफ याचिकाकर्ता के आरोपों पर पुलिस से 27 नवंबर तक स्थिति रिपोर्ट भी मांगी है। पेश मामले में याचिकाकर्ता नश्याम सिंह रावत ने आरोप लगाया है कि उनके छोटे बेटे ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर उन पर हमला किया। दरअसल उन्होंने अपना मकान बेचकर पैसा बेटे को देने से इंकार कर दिया तो बेटे ने उन्हें जान से मारने का प्रयास किया। रावत ने आरोप लगाया कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी पुलिस ने उनके बेटे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। पुलिस घरेलू मामला बताकर मामले को टाल देती है।

इस मामले में याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका लगाई। याचिकाकर्ता का कहना है कि जब वह अस्पताल में भर्ती थे तो उनका बेटा जबरन घर में घुस गया और कब्जा कर लिया। रावत ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अपने बेटे से कोई गुजाराभत्ता नहीं चाहते। बस शांति से रहना उनका मकसद है। रावत का कहना है कि वह अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक संबंधी कानून के तहत कोई लाभ नहीं ले सकते क्योंकि यह उन लोगों के लिए है जिन्हें वरिष्ठ नागरिक का दर्जा मिल चुका है।

याचिका में कानून के उस प्रावधान को रद्द करने का अनुरोध किया गया है जो सामान्य अभिभावकों और वरिष्ठ नागरिक का दर्जा हासिल कर चुके अभिभावकों के बीच भेद पैदा करता है। याचिका के अनुसार इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उन जैसे व्यक्तियों जो अपने बच्चों से किसी प्रकार का गुजाराभत्ता नहीं चाहते हैं परंतु शाति से जीवन गुजारना चाहते हैं, की आवश्यकताओं को पूरा करता हो। उन्होंने कहा है कि ऐसे व्यक्तियों को अपने हिंसक बच्चों से संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है। इसके लिए ही वह हाईकोर्ट में आए हैं।

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