ChatGPT-4 Excels in UK Medical Licensing Exam but Struggles with Real-Life Treatment Decisions चैटजीपीटी मेडिकल परीक्षा में पास पर इलाज के फैसलों में फिसड्डी, Delhi Hindi News - Hindustan
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चैटजीपीटी मेडिकल परीक्षा में पास पर इलाज के फैसलों में फिसड्डी

-विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित अध्ययन में खुलासा नंबर गेम::: 191 प्रश्नों पर

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 17 April 2025 01:38 PM
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चैटजीपीटी मेडिकल परीक्षा में पास पर इलाज के फैसलों में फिसड्डी

लंदन, एजेंसी। ओपनएआई के चर्चित एआई मॉडल चैटजीपीटी-4 ने ब्रिटेन की मेडिकल लाइसेंसिंग परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया है। इसके बावजूद, मरीज की हालत देखकर इलाज तय करने जैसे असल जिंदगी के फैसलों में यह तकनीक कमजोर साबित हुई है।

विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। इसमें शोधार्थियों ने चैटजीपीटी-4 को मेडिकल स्कूल्स काउंसिल के मॉक एग्जाम के 191 सवालों पर परखा। ब्रिटेन में डॉक्टर बनने के लिए अनिवार्य इस परीक्षा में 24 अलग-अलग चिकित्सा क्षेत्रों से संबंधित सवाल थे। शोधार्थियों ने कहा, एआई टूल शिक्षा और शुरुआती स्तर की चिकित्सा सलाह में उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन इलाज के फैसले लेने के लिए यह फिलहाल भरोसेमंद नहीं है।

सवालों के अंदाज बदले तो लड़खड़ाया

- मल्टीपल चॉइस सवालों में सटीकता 86 से 89 फीसदी।

- बिना विकल्प वाले प्रश्नों में सटीकता गिरकर 61 से 74 फीसदी रही।

- बीमारी की पहचान वाले सवालों में बेहतर, सटीकता 91 फीसदी।

- इलाज से जुड़े सवालों में बिना विकल्प के सटीकता सिर्फ 51 फीसदी।

- दवाओं से जुड़े सवालों में करीब 35 फीसदी जवाब अस्पष्ट पाए गए।

गलत विकल्पों से उलझन

अध्ययन में यह भी सामने आया कि कई बार जब जवाब देने के लिए विकल्प दिए गए, तो चैटजीपीटी सही जवाब नहीं दे पाया, जबकि बिना विकल्प के वही सवाल सही हल हो गया। इससे पता चलता है कि ‘ट्रिक क्वेशन्स या गुमराह करने वाले विकल्प इसे भ्रमित कर सकते हैं।

असल इलाज में अभी भरोसेमंद नहीं

शोधार्थियों का कहना है कि चैटजीपीटी-4 के पास काफी मेडिकल ज्ञान है, लेकिन मरीज की परिस्थिति को समझकर इलाज का फैसला लेना इसके लिए चुनौतीभरा है। यह तकनीक मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई में तो मदद कर सकती है, लेकिन क्लिनिक में डॉक्टरों की जगह नहीं ले सकती।

नैतिक चिंताएं भी

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर डॉक्टर एआई पर ज्यादा निर्भर हो गए, तो उनकी खुद की निर्णय लेने की क्षमता कम हो सकती है। साथ ही, मरीजों के साथ मानवीय जुड़ाव और संवेदनशीलता में भी कमी आ सकती है।

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