एयरलाइंस एजेंट के जरिए किए गए वादे को पूरा करने के लिए बाध्य- सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एयरलाइंस...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एयरलाइंस अपने ट्रेवल एजेंट के जरिए उपभोक्ता से किए गए वादे को पूरा करने के लिए बाध्य है। शीर्ष अदालत ने तय समय से एक विदेशी एयरलाइंस द्वारा समय से अमेरिका में समान की डिलेवरी करने में विफल रहने के मामले में यह फैसला दिया है।
जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 11 साल पुराने फैसले के खिलाफ दाखिल दोनों पक्षों की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला किया है। पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर विचार किया कि क्या एयरलाइंस अपने एजेंट के जरिए बुक किए गए समानों की तय समय में डिलेवरी करने के लिए जिम्मेदार है? शीर्ष अदालत ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए कहा है कि ‘भारतीय अनुबंध अधिनियम के प्रावधानों के तहत कोई भी एयरलाइंस/प्राधिकार अपने एजेंट के जरिए किए गए वादे को पूरा करने के लिए बाध्य है। पीठ ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो विमानन सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी अपने एजेंट के जरिए 7 दिन के भीतर अमेरिका में समान की डिलेवरी करने के लिए बाध्य था। शीर्ष अदालत ने कहा है कि चूंकि तथ्यों से साफ पता चलता है कि एयरलाइंस ने तय समय के बजाए, काफी देरी से समान की डिलेवरी की, ऐसे में वह शिकायतकर्ता/अपीलकर्ता को हुए नुकसान की भरपाई के लिए हर्जाना देने के लिए बाध्य है। यह टिप्पणी करते हुए पीठ ने एनसीडीआरसी के फैसले के खिलाफ एयरलाइंस की अपील को खारिज कर दिया।
इसके साथ ही पीठ ने मामले में शिकायतकर्ता कंपनी की भी उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने एनसीडीआरसी द्वारा तय मुआवजे को कम बताते हुए, इसे बढ़ाने की मांग की थी। शिकायतकर्ता की अपील खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई भी पक्ष उस राहत की मांग करने की हकदार नहीं है, जिसकी उसने मांग की नहीं है। शिकायतकर्ता ने कहा था कि उन्हें समान की समय से डिलेवरी नहीं होने के चलते 5 लाख 70 अमेरिकी डॉलर के बराबर नुकसान की भरपाई की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मांग को ठुकराते हुए कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता ने सिर्फ बीस लाख रुपये के नुकसान की मांग की थी, इसलिए आयोग के आदेश में कोई खामी नहीं है।
दरअसल, शिकायकर्ता कंपनी ने जुलाई 1996 में एक एजेंट के जरिए बड़े पैमाने पर सामान को विमान से अमेरिका भेजा। कंपनी को बताया गया था कि सामान की डिलेवरी 7 दिन के भीतर हो जाएगी। लेकिन डिलेवरी तय समय पर नहीं हुआ।
