
किस्सा दिल्ली का: जब लालकिले के किनारे बहती थी यमुना, मुगल बादशाह अकबर नाव बांधकर सोता था
संक्षेप: Kissa Dilli Ka Part 12: 'किस्सा दिल्ली का' सीरीज के पार्ट-12 में आज हम राजधानी में यमुना नदी के इतिहास की रोचक कहानी बता रहे हैं। मुगल काल में यमुना नदी लालकिले के किनारे बहती थी।
यमुना नदी का दिल्ली के इतिहास में रिश्ता सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि सत्ता, संस्कृति और कहानियों का भी रहा है। हाल के बाढ़ ने एक बार फिर इस नदी को चर्चा में ला दिया, जिसके किनारे कभी मुगल बादशाह अपनी रातें गुजारते थे। मुगल बादशाह अकबर से लेकर जहांगीर तक यमुना के साथ गहरा नाता रखते थे। गर्मी की तपती रातों में अकबर नदी में नाव बांधकर सोते थे, ताकि ठंडी हवा और पानी की लहरों के बीच सुकून मिले। जहांगीर भी इस परंपरा को निभाते थे।

वहीं शाहजहां ने जब दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया, तो यमुना उनके लिए मनोरंजन का साधन बनी। रात के समय लालकिले के 'रिवर गेट' से उनकी हरम की महिलाएं, रानियां और दासियां ख्वाजासराओं (अंगरक्षकों) के साथ नौकायन और स्नान के लिए निकलती थीं।
यमुना में बहती थी शाही नावें
यमुना के किनारे की इन महफिलों का जिक्र फ्रांसीसी यात्री फ्रांस्वा बर्नियर की किताब 'ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर' में मिलता है, जहां उन्होंने शाहजहां के दरबार की शानो-शौकत और यमुना के किनारे की रौनक का वर्णन किया है। बर्नियर लिखते हैं कि शाही नावें, जिन्हें 'बजरा' कहा जाता था, रात में यमुना पर तैरती थीं, जिनमें दीपक जलते थे और संगीत की धुनें गूंजती थीं।
तैराकी का उत्सव और 'उस्ताद-ए-तैराकी'
यमुना सिर्फ शाही शौक का हिस्सा नहीं थी, बल्कि यह मुगल शहजादों की हिम्मत और हुनर का भी इम्तिहान लेती थी। सावन-भादो के महीनों में तैराकी का मेला लगता था। दिल्ली में भले ही तैराकी के मेले उतने मशहूर न हुए, लेकिन शाही परिवार की रानियां और शहजादे रात के अंधेरे में सावन-भादो में यमुना में तैराकी का लुत्फ उठाते थे, ताकि लोगों की नजरों से बचा जा सके।

औरंगजेब और यमुना की बाढ़
औरंगजेब के शासनकाल में यमुना की एक बाढ़ ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था। यह घटना 1660 के आसपास की है, जब यमुना का पानी लालकिले के दीवान-ए-आम तक पहुंच गया था। उस समय औरंगजेब ने अपने सिपहसालारों को आदेश दिया कि नदी के किनारे बांध बनाए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी तबाही से बचा जा सके। इस बाढ़ ने दिल्ली के बाजारों, खासकर चांदनी चौक और दरियागंज को भारी नुकसान पहुंचाया था।
जब दिल्ली में आई थी 'बड़ी बाढ़'
1900 की शुरुआत में यमुना की एक और बाढ़ ने दिल्ली को प्रभावित किया। 1924 की बाढ़ को स्थानीय लोग आज भी 'बड़ी बाढ़' के नाम से याद करते हैं। उस समय यमुना का पानी पुरानी दिल्ली के कई मोहल्लों में घुस गया था। इस बाढ़ का जिक्र आर.वी. स्मिथ की किताब 'दिल्ली: द बिल्ट हैरीटेज' में मिलता है, जहां उन्होंने बताया कि स्थानीय लोग यमुना को शांत करने के लिए नदी में फूल और दीपक प्रवाहित करते थे। इस दौरान एक बुजुर्ग फकीर, जिन्हें 'यमुना वाले बाबा' कहा जाता था, ने दावा किया कि उनकी तपस्या से बाढ़ का पानी कम हुआ।
1857 की क्रांति और यमुना
1857 की क्रांति के दौरान यमुना फिर इतिहास की गवाह बनी। मेरठ से आए सिपाहियों ने यमुना पार की और राजघाट गेट से दिल्ली में प्रवेश किया। इस घटना ने शाही दरबार और शहर में हड़कंप मचा दिया, जो कई महीनों तक रहा और आखिरकार बहादुर शाह जफर को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी।





