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किस्सा दिल्ली का: यहां कौन सा महल जो नाम पड़ गया 'मटिया महल', बेहद रोचक है इस इलाके की कहानी

किस्सा दिल्ली का: यहां कौन सा महल जो नाम पड़ गया 'मटिया महल', बेहद रोचक है इस इलाके की कहानी

संक्षेप: Kissa Dilli Ka Part 10: 'किस्सा दिल्ली का' सीरीज के पार्ट-10 में आज हम दिल्ली के 'मटिया महल' इलाके की रोचक कहानी बता रहे हैं। इस इलाके का इतिहास मुगल काल से जुड़ा हुआ है।

Sat, 30 Aug 2025 12:25 PMAnubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली
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अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपने मटिया महल इलाके के बारे में जरूर सुना होगा। लेकिन सोचा है कि आखिर इसका नाम मटिया महल कैसे पड़ा? यहां कभी मिट्टी का महल रहा होगा, लेकिन आज मटिया महल पुरानी दिल्ली का सबसे चमकदार ठिकाना है। जैसे ही सूरज ढलता है, बाजार की गलियां रोशनी में नहा उठती हैं। दिन का कचरा अचानक गायब-सा हो जाता है और रात का जादू शुरू होता है। भीड़ में ठेले वालों, खरीददारों और टहलने वालों का मेला लगता है। लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि 1857 की क्रांति के एक तूफानी शाम को यही गलियां वीरान थीं? मटिया महल के रहवासी जहीर देहलवी ने लिखा था कि उस शाम दुकानें लूटी गई थीं, दरवाजे बंद थे, और कहीं रोशनी की किरण तक नहीं थी।

कैसे नाम पड़ा मटिया महल?

मटिया महल का नाम सुनते ही जिज्ञासा जागती है, आखिर ये नाम आया कहां से? कहते हैं कि बादशाह शाहजहां, जिन्होंने पुरानी दिल्ली को बसाया, ने लाल किला बनवाने के दौरान यहां मिट्टी का एक अस्थायी शाही महल बनवाया था। ये उनकी रिहाइश थी। 'मटिया' शब्द हिंदुस्तानी शब्द 'मिट्टी' से ही निकला है। हालांकि आज उस मिट्टी के महल का कोई निशान नहीं, लेकिन उसकी कहानी इस बाजार की रौनक में बस्ती है।

स्वाद का मेला

आज मटिया महल की गलियां खाने-पीने की दुकानों और गेस्ट हाउसों से अटी पड़ी हैं। यहां हर दूसरी दुकान 'लेजेंड्री' है। शुरूआत करें कल्लन स्वीट्स से, जहां एलईडी बोर्ड पर मेन्यू स्टॉक मार्केट के टिकर की तरह चलता है-पिस्ता बर्फी, काजू बर्फी, मलाई बर्फी... और हां, यहां की समोसे की तारीफ हर ज़ुबान पर है। इसके अलावा, अल जवाहर, करीम्स, असलम चिकन, शाही कूल पॉइंट (जहां की मैंगो आइसक्रीम लाजवाब है), असगर बेकरी, और कलां बावर्ची (जहां हवा में इलायची, लौंग, और मसालों की खुशबू तैरती है) जैसे नाम भी कम मशहूर नहीं। और हां, K&R पिकल्स एंड मुरब्बा की दुकान तो अनोखी है। यहां घर का बना आम का अचार मिलता है, साथ ही पुराने महकता आंचल मैगजीन के कॉपीज भी।

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पीढ़ियों की विरासत

मटिया महल के ठेले वाले भी कम लेजेंड्री नहीं। मिसाल के तौर पर आरिफ खजूर वाले, जो चौथी पीढ़ी से खजूर बेच रहे हैं। उनकी आवाज गूंजती है, "ये खजूर ईरान का, ये ओमान का, और ये मदीना का।' उनकी बातों में इतिहास और स्वाद का मजा है।

खोया हुआ वैभव

कहते हैं, कभी इस बाजार में दर्जनों हवेलियां थीं। हर एक में बरामदा, बाग और फव्वारा। लेकिन आज हम उन चीजों को ज्यादा याद करते हैं जो हाल में खो गईं, जैसे सलीम टी हाउस। ये पुरानी दिल्ली की सबसे मशहूर चाय की जगह थी, जहां चाय और बटर वाली डबल रोटी का मजा ही अलग था। लेकिन पिछले साल ये चुपके से बंद हो गया और अब वहां एक और कबाब-टिक्का वाला रेस्तरां खुल गया है।

बदलाव का जादू

मटिया महल इसलिए जिंदादिल है क्योंकि ये कोई म्यूजियम नहीं। ये बाजार बदलाव को गले लगाता है। बाजार का एक सिरा जामा मस्जिद की भव्यता को छूता है, तो दूसरा सिरा वेलकम बॉयजज सॉरी गर्ल्स नाम के एक चमचमाते गारमेंट शोरूम पर खत्म होता है, जो बिल्कुल भी पुराना नहीं है। तो अगली बार आप जब भी पुरानी दिल्ली जाएं, तो मटिया महल के बाजार में जरूर घूम कर आइए।

Anubhav Shakya

लेखक के बारे में

Anubhav Shakya
भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद जी न्यूज से करियर की शुरुआत की। इसके बाद नवभारत टाइम्स में काम किया। फिलहाल लाइव हिंदुस्तान में बतौर सीनियर कंटेंट प्रोड्यूसर काम कर रहे हैं। किताबों की दुनिया में खोए रहने में मजा आता है। जनसरोकार, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में गहरी दिलचस्पी है। एनालिसिस और रिसर्च बेस्ड स्टोरी खूबी है। और पढ़ें
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