
किस्सा दिल्ली का: कभी चांदनी चौक में बहती थी नहर, वेनिस से भी खूबसूरत था यहां का नजारा
संक्षेप: Kissa Dilli Ka Part 13: 'किस्सा दिल्ली का' सीरीज के पार्ट-13 में आज हम चांदनी चौक में बहने वाली खूबसूरत नहर की कहानी बता रहे हैं, जिसे मुगल सम्राट शाहजहां की बेटी जहांआरा ने बनवाया था।
दिल्ली का चांदनी चौक, जहां आज गलियों में खरीदारों की भीड़ और दुकानों की चमक बिखरी रहती है, कभी एक ऐसी नहर का गवाह था, जिसकी खूबसूरती की तुलना वेनिस की नहरों से की जाती थी। आइए, ले चलें आपको उस दौर में, जब मुगलकालीन शाहजहानाबाद की यह नहर पुरानी दिल्ली की शान हुआ करती थी।

शाहजहां की बेटी का सपना
17वीं सदी में, जब मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित किया, तो उनकी बेटी जहांआरा बेगम ने एक अनोखा सपना देखा। खरीदारी की शौकीन जहांआरा चाहती थीं कि दिल्ली में एक ऐसा बाजार हो, जो न केवल व्यापार का केंद्र बने, बल्कि उसकी सुंदरता लोगों को मंत्रमुग्ध कर दे। इसी सपने ने जन्म दिया चांदनी चौक को, जिसके बीचोंबीच बहती थी एक शाही नहर। इतिहासकार बताते हैं कि इस नहर का डिज़ाइन खुद जहांआरा ने तैयार किया था, और इसका पानी यमुना नदी से लाया जाता था।
चांदनी रातों में चमकता था चौक
स्टीफन पी. ब्लेक की किताब 'शाहजहानाबाद: द सोवरियन सिटी इन मुगल इंडिया' में भी इस नहर का जिक्र है। इस नहर का नाम था 'शाही नहर', जो चांदनी चौक के मध्य से लाल किले के लाहौरी गेट से फतेहपुरी मस्जिद तक बहती थी। नहर के किनारे एक तालाब भी बनाया गया था, जिसमें चांद की रोशनी पड़ने पर पूरा इलाका चमक उठता था। यही चमक थी, जिसने इस बाजार का नाम 'चांदनी चौक' रखवाया। रात के समय, जब चांद की किरणें नहर और तालाब के पानी पर पड़तीं, तो ऐसा लगता था मानो दिल्ली में तारे उतर आए हों। इस नजारे की तुलना इतिहासकार वेनिस की नहरों से करते थे, जो उस समय यूरोप की सबसे खूबसूरत जलमार्गों में से एक मानी जाती थीं।
बाजार की रौनक और नहर की ठंडक
शाही नहर न केवल चांदनी चौक की सुंदरता बढ़ाती थी, बल्कि यह गर्मी के मौसम में स्थानीय लोगों को ठंडक भी प्रदान करती थी। नहर के दोनों ओर बाजार सजते थे, जहां मुगलकालीन व्यापारी चीन, मध्य एशिया और अरब देशों से सामान लेकर आते थे। यह बाजार उस समय भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र था। नहर के किनारे बने रास्तों पर शाही जुलूस निकलते थे, और आसपास की हवेलियां और मस्जिदें इस इलाके को और भी भव्य बनाती थीं।

नहर का अंत, पर चांदनी चौक की चमक बरकरार
19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान इस नहर को बंद कर दिया गया। तालाब की जगह 1950 के दशक में घंटाघर बनाया गया, जो आज भी चांदनी चौक का केंद्र कहलाता है। इतिहासकारों के अनुसार, नहर को बंद करने का कारण शहरीकरण और रखरखाव की कमी थी। लेकिन चांदनी चौक की रौनक कभी कम नहीं हुई। आज भी यह बाजार दिल्ली की आत्मा है, जहां जामा मस्जिद, गुरुद्वारा शीशगंज साहिब, और किनारी बाजार जैसे आकर्षण पर्यटकों को खींचते हैं।
आज भी जिंदा है वह कहानी
भले ही शाही नहर अब चांदनी चौक की गलियों में न बहती हो, लेकिन इसकी कहानी पुरानी दिल्ली के इतिहास में बस्ती है। हाल ही में चांदनी चौक के पुनर्विकास की योजनाओं में इसकी ऐतिहासिक विरासत को फिर से जीवंत करने की बात हो रही है। व्यापार मंडल और स्थानीय प्रशासन मिलकर इस इलाके को हरा-भरा और और भी आकर्षक बनाने की कोशिश में हैं। शायद एक दिन हम फिर से उस चांदनी चौक को देख पाएं, जो वेनिस को भी मात देता था।
नोट: अगर आप चांदनी चौक की सैर करने जाएं, तो जामा मस्जिद की मीनार से शहर का नजारा देखना न भूलें और पराठे वाली गली में स्वादिष्ट पराठों का लुत्फ उठाएं। चांदनी चौक आज भी वही पुरानी दिल्ली की रूह है, जो हर किसी को अपनी ओर खींचती है।





