
किस्सा दिल्ली का: कभी देखा है फ्लैगस्टाफ टावर, जहां 1857 में जान बचाने के लिए छिपे थे अंग्रेज
संक्षेप: Kissa Dilli Ka Part 14: 'किस्सा दिल्ली का' सीरीज के पार्ट-14 में आज हम दिल्ली के फ्लैगटावर की रोचक कहानी बता रहे हैं, जहां 1858 के विद्रोह के समय अंग्रेजों ने शरण ली थी।
दिल्ली के कमला नेहरू रिज पर स्थित फ्लैगस्टाफ टावर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक गवाह है, जहां अंग्रेजों ने विद्रोहियों से बचने के लिए शरण ली थी और यह टावर उस युद्ध और भय की कहानी बयां करता है।

दिल्ली में कई ऐसी इमारतें हैं, जो आज भी इतिहास की यादें ताजा करती हैं। इन्हीं में से है दिल्ली का फ्लैगस्टाफ टावर। कमला नेहरू रिज पर खड़ा एक पुराना स्मारक, आज भले ही शांत खड़ा हो, लेकिन इसके पत्थर 1857 के उस तूफानी दौर की कहानी चीख-चीखकर सुनाते हैं। यह वही टावर है, जहां अंग्रेज अपनी जान बचाने के लिए छिपे थे, जब विद्रोह की आग ने दिल्ली को लपेट लिया था। बंदूकों की गूंज, डर से कांपते दिल और उम्मीद की एक बुझती-सी किरण यह टावर उस दौर का जीवंत इतिहास है। आज हम इसी फ्लैगटावर की कहानी बता रहे हैं।
एक सिग्नल टावर का जन्म
1828 के आसपास बना फ्लैगस्टाफ टावर मूल रूप से एक सिग्नल टावर था, जो ब्रिटिश छावनी का हिस्सा था। कमला नेहरू रिज पर बनी यह जालीदार इमारत उस समय दिल्ली की सबसे ऊंची जगहों में से एक थी। चारों ओर बंजर जमीन और झाड़ियों से घिरा यह टावर सैन्य संदेशों के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन 1857 में यह टावर केवल संदेश भेजने की जगह नहीं, बल्कि जान बचाने का ठिकाना बन गया।
1857 में जब दिल्ली में आया था भूचाल
1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी। ये संग्राम मेरठ से शुरू होकर दिल्ली तक पहुंचा। 11 मई 1857 की सुबह, जब विद्रोही सिपाहियों ने दिल्ली पर कब्जा करना शुरू किया, तो अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवारों में दहशत फैल गई। सिविल लाइंस और शहर के अन्य हिस्सों में विद्रोहियों ने यूरोपियनों और उनके सहयोगियों को निशाना बनाना शुरू किया। ऐसे में फ्लैगस्टाफ टावर अंग्रेजों के लिए इकलौता सुरक्षित ठिकाना बन गया।
विष्णु भट्ट गोडसे वेरसायकर की '1857: द रियल स्टोरी ऑफ ग्रेट अपराइजिंग' किताब में भी इस टावर का जिक्र है। यहां कई अंग्रेज परिवार भागकर आए, इस उम्मीद में कि मेरठ से ब्रिटिश सेना की मदद जल्द पहुंचेगी। टावर की मजबूत दीवारों और ऊंचाई ने उन्हें कुछ समय के लिए सुरक्षा दी, लेकिन डर और अनिश्चितता का माहौल हर पल बढ़ता जा रहा था।
विद्रोहियों का गुस्सा और अंग्रेजों का भय
विद्रोही सिपाहियों का गुस्सा केवल अंग्रेजों की नीतियों, जैसे चर्बी वाले कारतूसों, तक सीमित नहीं था। यह गुस्सा दशकों की दमनकारी नीतियों और सांस्कृतिक अपमान का नतीजा था। फ्लैगस्टाफ टावर में छिपे अंग्रेजों को यह अहसास हो चुका था कि स्थिति उनके कंट्रोल से बाहर जा रही है। विद्रोहियों ने शहर के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया था और बहादुर शाह जफर को विद्रोह का प्रतीक बनाकर दिल्ली में मुगल शासन की बहाली की घोषणा कर दी थी। टावर में छिपे अंग्रेजों के लिए हर पल एक अनिश्चित इंतजार था। कुछ ने मेरठ की ओर मदद की उम्मीद में निगाहें गड़ाए रखीं, तो कुछ ने भागने की योजना बनाई। लेकिन विद्रोहियों की ताकत और गुस्से के सामने उनकी उम्मीदें धूमिल हो रही थीं।

टावर पर हमला और अंग्रेजों की वापसी
जून 1857 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश शुरू की। फ्लैगस्टाफ टावर एक बार फिर युद्ध का केंद्र बना। 7 जून को विद्रोहियों ने टावर पर कब्जा करने की कोशिश में कड़ा प्रतिरोध किया। दोनों पक्षों के बीच भयंकर लड़ाई हुई, जिसमें कई सैनिक मारे गए। लेकिन शाम तक अंग्रेजों ने रिज पर फिर से कब्जा कर लिया। यह जीत उनके लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह दिल्ली को वापस लेने की उनकी रणनीति का हिस्सा थी। टावर, जो कुछ समय पहले अंग्रेजों की शरणस्थली था, अब उनकी वापसी का प्रतीक बन गया।
फ्लैगस्टाफ टावर का बदला चेहरा
1857 के विद्रोह के बाद दिल्ली का चेहरा बदल गया। फ्लैगस्टाफ टावर, जो कभी युद्ध और भय का गवाह था, अब शांति के साथ खड़ा है। आज यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत एक संरक्षित स्मारक है। कमला नेहरू रिज पर हरे-भरे जंगल के बीच यह टावर उस दौर की कहानी सुनाता है, जब यह जान बचाने और युद्ध का केंद्र रहा।





