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चार महीने बाद उठे देव, तुलसी विवाह के साथ शुरु हुए मांगलिक कार्यक्रम

गहरी नींद में सो रहे भगवान विष्णु मंगलवार को चार महीने बाद जग गए हैं। इस मौके पर विभिन्न मंदिरों एवं घरों में भगवान की विशेष पूजा का आयोजन किया गया। वहीं शाम को घरों में तुलसी माता का शालिग्राम जी के...

चार महीने बाद उठे देव, तुलसी विवाह के साथ शुरु हुए मांगलिक कार्यक्रम
हिन्दुस्तान टीम,गुड़गांवTue, 31 Oct 2017 06:52 PM
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गहरी नींद में सो रहे भगवान विष्णु मंगलवार को चार महीने बाद जग गए हैं। इस मौके पर विभिन्न मंदिरों एवं घरों में भगवान की विशेष पूजा का आयोजन किया गया। वहीं शाम को घरों में तुलसी माता का शालिग्राम जी के साथ विधि विधान के साथ विवाह कराया गया। इस मौके पर विभिन्न मंदिरों में हवन पूजन एवं भंडारे का आयोजन किया गया।

पंडित अमरचंद भारद्वाज के मुताबिक चूंकि वर्षा ऋतु के चार महीने भगवान शयन करते हैं। ऐसे में इस अवधि में कोई भी धार्मिक एवं मांगलिक कार्य नहीं होते। मंगलवार को भगवान न केवल जग गए हैं, बल्कि सृष्टि के संचालन का काम भी संभाल लिया है। ऐसे में अब सभी तरह के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित आदि संपन्न हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि मांगलिक कार्यों की शुरुआत मंगलवार को ही तुलसी विवाह के साथ हो गई है। उन्होंने बताया कि घरों में मंदिरों में श्रद्धालुओं ने विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ भगवान को थपकी देकर जगाया और उन्हें स्नान ध्यान कराने के बाद उनका अभिषेक किया। इस मौके पर शहर में कई जगह भंडारों का भी आयोजन किया गया।

गन्ना एवं सिंघाड़े से की भगवान की पूजा

भगवान के उठने के बाद श्रद्धालुओं ने मंगलवार की सुबह घरों में बेहद साफ सफाई के साथ चौका बनाया और भगवान के चरणचिन्ह बनाकर गन्ना एवं सिंघाड़े से उनकी पूजा की। आखिर में भगवान के सम्मुख घी का दीपक जलाकर उनकी आरती की। पंडित भारद्वाज के मुताबिक भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालुओं ने रात में सुभाषित स्त्रोतम एवं भागवत कथा का पाठ किया। उन्होंने बताया कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने वाले साधक को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। वहीं इस खास मौके पर भगवान की पूजा से सभी तरह के ग्रहदोष मिट जाते हैं।

चार महीने गहरी नींद में सोते हैं भगवान

पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्ष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को चार महीने के लिए सोने चले जाते हैं। इस दौरान वह सुतल लोक में विश्राम करते हैं। वहीं उनकी अनुपस्थिति में भगवान शंकर सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी संभालते हैं। इसी प्रकार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान नींद से बाहर आते हैं। दीपावली के ठीक 11 दिन बाद आने वाली यह एकादशी साधकों के लिए बेहद खास होती है। इसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।

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