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नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में मरीजों से महंगी दवा और सामान मंगाने का खुलासा, क्या है मामला

नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में मरीजों से बाहर से महंगी दवा, सर्जरी के उपकरण और इंप्लांट मंगाने का खुलासा हुआ है। कथित तौर पर अस्पताल से ही यह रिपोर्ट 9 सितंबर को अस्पताल के डायरेक्टर के साथ ही प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को भी भेजी गई है।

Praveen Sharma हिन्दुस्तान, नोएडाFri, 20 Sep 2024 01:08 AM
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नोएडा के बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर शैक्षणिक संस्थान (चाइल्ड पीजीआई) में मरीजों से बाहर से महंगी दवा, सर्जरी के उपकरण और इंप्लांट मंगाने का खुलासा हुआ है। कथित तौर पर अस्पताल से ही यह रिपोर्ट 9 सितंबर को अस्पताल के डायरेक्टर के साथ ही प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को भी भेजी गई है।

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि निजी हित के तहत दूसरे मेडिकल स्टोर को फायदा पहुंचाया जा रहा। बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान के ही एक विभाग की ओर से प्रमुख सचिव और निदेशक को यह पत्र भेजा गया है। इस विभाग से कई प्रश्न पूछे गए थे, जिसके जवाब में कई खुलासे हुए। भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि दवा स्टोर में स्टॉक लगभग शून्य होने के बावजूद दवा खरीदने के लिए मना कर दिया गया है। इसके लिए बैठक बुलाने और टेंडर का बहाना बनाया गया, जिससे मरीजों को महंगी दवा खरीदनी पड़ रही है, जबकि अस्पताल की फार्मेसी में उपलब्ध दवा अमृत फार्मेसी और दूसरे मेडिकल स्टोर से आधी कीमत पर उपलब्ध है।

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यह मरीजों के साथ खिलवाड़ और राजस्व का नुकसान है। कुछ दवाएं काफी कम खरीदने की अनुमति दी गई है। अस्पताल के अलग-अलग चिकित्सकी विभागों के प्रमुख डॉ. उमेश कुमावत, डॉ. अंकुर अग्रवाल, डॉ. मुकुल जैन और डॉ. नीता राधाकृष्णन पर कई आरोप लगाए गए हैं।

पत्र में जिक्र है कि जीवन रक्षक एवं अति आवश्यक दवाइयों, सर्जिकल आइटम की खरीद से संबंधित अनेक फाइल 15 दिनों से लंबित हैं, जबकि इन दवाइयों का स्टॉक शून्य है। इनकी तत्काल आवश्यकता है।

दवाइयों के नहीं होने से अस्पताल अमृत फार्मेसी से प्रत्यक्ष रूप से महंगी दवा खरीद रहा है, जिससे वित्तीय नुकसान सहना पड़ रहा है। पहले भी इस बारे में उच्च अधिकारियों को बताया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

इन पर आरोप लगाए गए

पत्र में हृदय रोग विभाग, पीडियाट्रिक हेमेटो-ओंकोलॉजी विभाग, हड्डी रोग विभाग आदि के विभागाध्यक्ष पर आरोप लगाए गए हैं कि दोनों विभाग में लाखों रुपये की दवा और सर्जिकल आइटम बाहर से खरीदे जा रहे हैं। 20 अगस्त को पत्र जारी कर कैंसर ग्रिड के तहत आने वाली दवाओं का मांग पत्र मांगा गया, इसके बावजूद अब तक दवाएं नहीं मिलीं।

कॉन्फ्रेंस के लिए वेंडर से रुपये मांगने का आरोप

पत्र में यह लिखा गया है कि एक वेंडर ने ऑर्थोपेडिक बेड के इंस्टॉलेशन रिपोर्ट देने के समय कॉन्फ्रेंस के नाम पर वित्तीय सहायता मांगने का आरोप लगाया है। वहीं, एचआरएफ के अध्यक्ष ने एकेडमिक कॉन्फ्रेंस के नाम पर 50 हजार रुपये लिए। नियमों के अनुसार सरकारी डॉक्टर इस तरह की राशि नहीं ले सकते।

खरीद-फरोख्त से जुड़ी हुई फाइलें लंबित

पत्र के माध्यम से शासन को यह बताया गया है कि कई दवा ऐसी हैं, जो किसी दर अनुबंध में नहीं है। ऐसे में इन दवाइयों की जैम और लोकल खरीद के माध्यम से फाइल तैयार की गई थी, लेकिन संस्थान के निदेशक और हॉस्पिटल रिवोल्विंग फंड के अध्यक्ष की ओर से फाइल लंबित है। लिहाजा ये दवा भी मरीज बाहर से खरीद रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि इस तरह की रणनीति के पीछे अपेक्षाएं हैं।

दलाल की ऑपरेशन थियेटर तक पहुंच

दवा, इंप्लांट और अन्य सामान सप्लाई करने वालों की हड्डी रोग विभाग के ऑपरेशन थियेटर तक पहुंच बताई गई है। लिहाजा ऑपरेशन थियेटर में जाने वाले लोगों के लिए रजिस्टर बनाया गया। इसके बाद लोगों की आवाजाही तो बंद हुई, लेकिन उनका सामान मरीज के बेड पर ही रखकर भेज दिया जाता था, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता।

चाइल्ड पीजीआई के डायरेक्टर डॉ. एके सिंह ने कहा, ''इस मामले से संबंधित रिपोर्ट अब तक मुझे नहीं मिली है। कई इंप्लांट उपलब्ध नहीं होते, जिन्हें बाहर से मंगाना पड़ता है। जल्द ही दवा और अन्य सामान के लिए टेंडर होने वाला है। किसी से भी कोई भी राशि नहीं ली गई।''

 

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