
दिल्ली की सड़कों पर जाम का जलजला, रेंगते रहते हैं वाहन; ट्रैफिक पुलिस भी गायब
संक्षेप: Delhi Traffic: दिल्ली की सड़कों पर बढ़ता ट्रैफिक जाम और ट्रैफिक पुलिस की अनुपस्थिति लोगों के लिए बड़ी परेशानी बन गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जाम वाले चौराहों और एक्सप्रेसवे पर पुलिस की मौजूदगी न के बराबर है, जिससे स्थिति और भी खराब हो रही है।
दिल्ली की सड़कें हर सुबह और शाम एक युद्धक्षेत्र में बदल जाती हैं। सड़कों पर गाड़ियां रेंगती हुई दिखाई देती हैं। बसें बीच सड़क पर रुककर यात्रियों को चढ़ाती-उतारती हैं और बाइक सवार खतरनाक ढंग से गलियों में घुसपैठ करते हैं। लेकिन इस हंगामे को काबू करने वाला कोई नहीं होता। रिंग रोड और आउटर रिंग रोड के बेहद व्यस्त चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस की गैर मौजूदगी ने हालात को और बदतर कर दिया है।

चौराहों पर बेकाबू भीड़
दिल्ली कैंट (शाम 4:45) और धौला कुआं (शाम 5:18) जैसे दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के भीड़भाड़ वाले चौराहों पर एक भी ट्रैफिक पुलिसकर्मी नजर नहीं आया। भिकाजी कामा प्लेस और सफदरजंग हॉस्पिटल (शाम 5:34) पर बसें सड़क के बीचों-बीच रुकीं, कारें लेन बदलकर रास्ता तलाशती रहीं, लेकिन कोई नियंत्रण नहीं था। साउथ एक्सटेंशन (शाम 5:46) पर अवैध रूप से खड़ी गाड़ियों ने एक-दो लेन घेर रखी थीं, जिससे चौराहा एक तंग बोतलनुमा जाम में बदल गया।
ऑगस्ट क्रांति मार्ग (शाम 6:10), एसेक्स फार्म (शाम 6:12) और नेहरू प्लेस (शाम 7:09) जैसे इलाकों में भी सड़कें संकरी होने और बाजार की भीड़ के कारण लंबा जाम लगा। ग्रेटर कैलाश (शाम 6:57) में सावित्री फ्लाईओवर के पास रिहायशी और बाजार का ट्रैफिक टकराया और सड़क किनारे की दुकानें सड़क तक फैल गईं। लेकिन यहां भी ट्रैफिक पुलिस गायब थी।
पश्चिमी दिल्ली में भी हालात अलग नहीं थे। पंजाबी बाग राउंडअबाउट (शाम 4:04) पर गाड़ियों और आवारा मवेशियों का मेला लगा था। नारायणा फ्लाईओवर (शाम 4:17) पर बेकाबू जाम और मायापुरी चौक (शाम 4:30) पर सिर्फ दो पुलिसकर्मी हालात संभालने की कोशिश में जुटे थे। कुछ अपवादों को छोड़ जैसे नरोजी नगर (शाम 5:23), मैक्स हॉस्पिटल सिग्नल (शाम 6:12) और शेख सराय (शाम 6:34) ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी न के बराबर थी।
पूर्वी दिल्ली में जाम का जंजाल
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे, NH-9, और NH-24 पर सुबह 8 से 11 बजे के बीच गाजीपुर टोल से इंदिरापुरम तक करीब एक किलोमीटर लंबा जाम देखा गया। कमर्शियल वाहनों की कतारों ने आधी सड़क घेर रखी थी और टोल वसूलने वाले कर्मचारी सड़क के बीचों-बीच खड़े थे। इस छोटे से रास्ते को पार करने में 20 मिनट लग गए। मेरठ एक्सप्रेसवे के नीचे जलभराव और मर्जिंग ट्रैफिक ने हालात को और बिगाड़ दिया। यहां भी कोई ट्रैफिक पुलिसकर्मी नहीं दिखा।
आनंद विहार ISBT और रेलवे स्टेशन पर बसें मुख्य सड़कों पर रुकीं, ऑटोरिक्शा ने लेन रोकीं और फुटपाथों पर दुकानदारों का कब्जा था। पास की पुलिस चौकी तालाबंद थी। सिर्फ तीन DTC कर्मचारी ट्रैफिक संभालने की कोशिश कर रहे थे। कौशांबी बस टर्मिनल के पास अवैध पार्किंग और पैदल यात्रियों का रेलिंग तोड़कर सड़क पार करना आम था। विडंबना यह कि दो ट्रैफिक पुलिसकर्मी EDM मॉल के पास अनधिकृत शॉर्टकट का इस्तेमाल करते दिखे।

यात्रियों की आपबीती
यात्री इस रोजमर्रा की जंग से तंग आ चुके हैं। कीर्ति नगर के 38 वर्षीय योगेश गोगिया, जो गुरुग्राम में एक बैंक में काम करते हैं, बताते हैं, “मुझे ऑफिस पहुंचने में दो घंटे से ज्यादा लगते हैं। दोनों तरफ का सफर मिलाकर कभी-कभी छह घंटे निकल जाते हैं। मैंने अपने मैनेजर से शिफ्ट बदलकर सुबह 7 से दोपहर 3 बजे कर ली, ताकि पीक आवर्स से बच सकूं।”
नोएडा में काम करने वाली झिलमिल कॉलोनी की 41 वर्षीया रसिका साहा कहती हैं, “मैं अक्सर काम के बाद एक घंटा ऑफिस में रुकती हूं, ताकि पीक आवर्स का जाम टल जाए। लेकिन GPS चेक करो तो सिर्फ लाल लाइनें दिखती हैं।”
सेंट्रल दिल्ली में काम करने वाली नोएडा की 33 वर्षीया आस्था मेहरा कहती हैं, “पीक आवर्स में पुलिस बैरिकेड्स लगाकर बाइक सवारों की चेकिंग करती है, जो जाम को और बढ़ा देता है। ट्रैफिक पुलिस जाम हल्का करने की बजाय परेशानी बढ़ा रही है।”
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि दिल्ली का ट्रैफिक संकट गाड़ियों की बेतहाशा संख्या और पुराने मैनेजमेंट सिस्टम का नतीजा है। WRI इंडिया के एकीकृत परिवहन निदेशक अमित भट्ट कहते हैं, “दुनिया भर में ट्रैफिक प्रबंधन अब टेक्नोलॉजी-आधारित है। दिल्ली में नंबर प्लेट पहचान, रेड-लाइट उल्लंघन और ओवर-स्पीडिंग के लिए कैमरे मौजूद हैं, लेकिन उनका पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा। इन कैमरों को सेंट्रल ट्रैफिक कंट्रोल रूम से जोड़कर रियल-टाइम में समस्याग्रस्त सड़कों की पहचान होनी चाहिए।”
भट्ट का सुझाव है कि सिर्फ चौराहों पर ध्यान देने की बजाय पूरी सड़क के ट्रैफिक को मैनेज करना होगा। सिग्नल साइकिल को समायोजित करना और ट्रैफिक प्रवाह को पुनर्वितरित करना जरूरी है। वे एक केंद्रीकृत परिवहन और ट्रैफिक प्रबंधन एजेंसी की वकालत करते हैं।
पूर्व दिल्ली ट्रैफिक पुलिस प्रमुख मुक्तेश चंदर कहते हैं, “हमें सड़क इंजीनियरिंग से लेकर वाहनों के प्रवाह तक, हर समस्या की जड़ तक जाना होगा। हाल ही में सेंट्रल दिल्ली के कुछ राउंडअबाउट्स पर मैनुअल ट्रैफिक नियंत्रण शुरू किया गया। ऐसी व्यवस्था अन्य जाम वाले इलाकों में भी लागू होनी चाहिए, लेकिन पहले गहन अध्ययन जरूरी है।”
सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. एस वेलमुरुगन कहते हैं कि दिल्ली के फिक्स्ड-टाइम सिग्नल अप्रभावी हैं। पीक आवर्स में पुलिस मैनुअल ऑपरेशन करती है, लेकिन मुख्य रास्तों पर पांच मिनट तक ग्रीन लाइट देने से बाकी रास्तों पर जाम बढ़ता है। ग्रीन फेज को 150 सेकंड से ज्यादा नहीं करना चाहिए। इससे कुछ हद तक दक्षता आएगी।
ट्रैफिक पुलिस का जवाब
एडिशनल सीपी (ट्रैफिक) दिनेश कुमार गुप्ता का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस ने कई कदम उठाए हैं। GPS से लैस बाइक पेट्रोलिंग करती हैं, जिससे सीनियर अधिकारी यह ट्रैक कर सकते हैं कि पुलिसकर्मी कहां हैं। Google मैप्स से भीड़भाड़ की निगरानी की जाती है और सोशल मीडिया पर शिकायतों पर कार्रवाई की कोशिश होती है।





