
बारिश से बढ़ा फ्लू का खतरा, सर्दी-जुकाम से परेशान दिल्लीवाले, रिकवरी भी धीमी
संक्षेप: दिल्ली में फ्लू के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। ये आलम पिछले दो-तीन हफ्तों से देखने को मिल रहा है। मरीजों में आमतौर पर तेज बुखार, खांसी, गले में खराश, बदन दर्द, सिरदर्द और कमजोरी जैसे लक्षण दिख रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जहां ज्यादातर मामले हल्के हैं।
दिल्लीवासियों के लिए इस बार का मॉनसून राहत से ज्यादा आफत लेकर आया। जहां एक और यमुना नदी के उफान और लगातार बरसात ने बाढ़ जैसे हालात पैदा किए तो वहीं दूसरी ओर बीमारियां भी घर कर रही हैं। दिल्ली में फ्लू के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। ये आलम पिछले दो-तीन हफ्तों से देखने को मिल रहा है। मरीजों में आमतौर पर तेज बुखार, खांसी, गले में खराश, बदन दर्द, सिरदर्द और कमजोरी जैसे लक्षण दिख रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जहां ज्यादातर मामले हल्के हैं, वहीं इस मौसम में ठीक होने में सामान्य से ज्यादा समय लग रहा है और कुछ प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ रही है।

ठीक होने के बाद भी ठीक नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अपोलो अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. सुरनजीत चटर्जी के अनुसार, ठीक होने का समय संक्रमण की गंभीरता, व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता और किसी भी मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, "जहां कई लोग 3 से 5 दिनों में ठीक हो जाते हैं, वहीं कुछ मामलों में, खासकर अगर जटिलताएं बढ़ जाती हैं, तो 7 दिन या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है। लगभग 2-5% मामलों में, मुख्य रूप से बुज़ुर्गों या अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है। ठीक होने के बाद भी, कई मरीजों को लगातार खांसी, कमजोरी और भूख न लगने की समस्या बनी रहती है। "
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, साकेत में भी मामलों में उतनी ही वृद्धि दिख रही है। पिछले दो हफ्तों में बुखार के साथ ओपीडी में आने वाले आधे से ज्यादा मरीजों में फ्लू जैसे लक्षण दिखे हैं। हालांकि हम हर मामले की जांच नहीं करते हैं, लेकिन H3N2 सबसे ज्यादा फैलने वाला स्ट्रेन लग रहा है।" आंतरिक चिकित्सा (Internal Medicine) के निदेशक डॉ. रोममेल टिकू ने कहा, "मरीज अक्सर तेज बुखार के साथ आते हैं, जो पैरासिटामोल से भी ठीक नहीं होता, साथ ही गले में दर्द, खांसी, सिरदर्द और बदन दर्द भी होता है।" उन्होंने बताया कि जहां ज्यादातर मरीज 5-7 दिनों में ठीक हो जाते हैं, वहीं बड़ी संख्या में लोगों को ब्रोंकाइटिस हो जाता है जिससे लगातार खांसी बनी रहती है। कुछ मरीज़ों में निमोनिया जैसी जटिलताएं भी हो जाती हैं, जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा, "ठीक होने के बाद भी, थकान और भूख न लगना आम बात है."
रोकथाम के महत्व पर ज़ोर देते हुए, डॉ. टिकू ने कहा, "यह एक जरूरी बात है कि हर किसी को, खासकर उन लोगों को जिन्हें ज्यादा खतरा है, फ्लू की गंभीरता और फैलाव को कम करने के लिए सालाना फ्लू का टीका जरूर लगवाना चाहिए।"
मॉनसून के चलते तेजी से बढ़े मरीज
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में भी यही रुझान देखा जा रहा है, जहां डॉक्टर पूरे मानसून सीजजन में फ्लू के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देख रहे हैं। आंतरिक चिकित्सा के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अरविंद अग्रवाल ने कहा, "हम वर्तमान में रोजाना लगभग 15-18 फ्लू मरीजों का इलाज कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर को तेज बुखार, गले में खराश, बदन दर्द, खांसी, नाक और सीने में जमाव, और कभी-कभी पेट से संबंधित संक्रमण भी हो रहे हैं। "
उन्होंने आगे कहा कि इस साल का फ्लू सामान्य से ज्यादा गंभीर लग रहा है, क्योंकि बुखार उतरने के बाद भी कई मरीजों को लगातार खांसी और थकान महसूस हो रही है। हालांकि, ज्यादातर लोग दवा और घरेलू उपचार से 5-7 दिनों में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कमजोरी और खांसी दो हफ्तों तक रह सकती है। बुज़ुर्ग, छोटे बच्चे और पहले से ही दिल या फेफड़ों की बीमारी वाले कुछ लोगों में सांस लेने में तकलीफ या होंठ और नाखूनों का नीला पड़ना जैसे गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं, जिसके लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है।
अस्पतालों में डॉक्टर इस बात पर जोर देते हैं कि मामलों में यह बढ़ोतरी चिंताजनक जरूर है, लेकिन यह मौसमी फ्लू के पैटर्न के मुताबिक ही है, जो मॉनसून के दौरान चरम पर होता है। वे सलाह देते हैं कि समय पर डॉक्टर से सलाह लें, भरपूर आराम करें, शरीर में पानी की कमी न होने दें और कमजोर समूहों के लोग सावधानी बरतें ताकि किसी भी तरह की जटिलताओं से बचा जा सके।





