
बारिश के बाद मलेरिया बन रहा दिल्ली के लिए विलेन, 6 साल में सबसे ज्यादा केस,पूरी रिपोर्ट
संक्षेप: दिल्ली नगर निगम (MCD) की 29 सितंबर की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अब तक दिल्ली में 371 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं, जो 2019 के बाद हर साल की इसी अवधि के आंकड़ों से ज्यादा हैं। पिछले साल इसी अवधि तक शहर में 363 मलेरिया के मामले दर्ज हुए थे।
दिल्ली में मानसून के बादल छंटने के साथ ही शहर एक बार फिर एक जानी-पहचानी मौसमी समस्या से जूझ रहा है,यानी मच्छर जनित बीमारियों में बढ़ोतरी। नगर निगम के आंकड़ों से पता चलता है कि मलेरिया संक्रमण कम से कम छह वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है,जबकि डेंगू और चिकनगुनिया भी शहर के सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ को लगातार बढ़ा रहे हैं।

दिल्ली नगर निगम (MCD) की 29 सितंबर की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अब तक दिल्ली में 371 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं, जो 2019 के बाद हर साल की इसी अवधि के आंकड़ों से ज्यादा हैं। पिछले साल इसी अवधि तक शहर में 363 मलेरिया के मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2023 में 237, 2022 में 68, और 2021 में 66 मामले दर्ज किए गए थे।
भले ही डेंगू के मामलों की संख्या (759) पिछले साल के 1,229 से कम है,अधिकारियों का कहना है कि शहर में हर हफ्ते दर्जनों नए संक्रमण सामने आ रहे हैं। 2023 में इसी अवधि में दिल्ली में 1,229 मामले दर्ज हुए थे,जो कहीं ज़्यादा थे। इस साल चिकनगुनिया के मामले 61 हैं,जबकि पिछले साल यह संख्या 43 थी। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इस साल अब तक मच्छर जनित बीमारियों से किसी की मौत नहीं हुई है।
हालांकि, स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि वास्तविक मामलों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है क्योंकि बड़ी संख्या में मामले लापता (untraced) या अधूरे (incomplete) हैं, जिन्हें कुल गिनती में जोड़ा नहीं जाता है। MCD की रिपोर्ट से पता चलता है कि पुष्टि किए गए (confirmed) मामलों के अलावा,95 मलेरिया और 223 डेंगू संक्रमण उन मरीजों में पाए गए जिन्होंने हाल ही में दिल्ली के बाहर से यात्रा की थी। इसके अलावा 104 मलेरिया और 626 डेंगू के मामलों में पते (address) अधूरे थे,जबकि पते का सत्यापन (verification) करने के बावजूद 76 मलेरिया और 195 डेंगू के मरीजों का पता नहीं चल सका।
एक वरिष्ठ सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि पता न चल सकने वाले मानले (untraced cases) एक बड़ी समस्या बने हुए हैं क्योंकि मच्छर-विरोधी अभियान प्रजनन हॉटस्पॉट (breeding hotspots) की पहचान करने के लिए सटीक स्थान डेटा पर निर्भर करते हैं। हमने अस्पतालों को बार-बार लिखा है कि वे मरीजों का पूरा विवरण देना सुनिश्चित करें।” HT ने 29 अगस्त को इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे ये लापता मामले आधिकारिक मामलों की संख्या को कम रखते हैं और समूहों की खराब पहचान के कारण मच्छर-विरोधी अभियानों में भी रुकावट डाल रहे हैं।





