नशा मुक्ति केंद्र में जबरन मरीजों को रखने की होगी जांच, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिए आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने नशा मुक्ति केंद्र में अपनी मर्जी के बिना रखे गए मरीजों के मामले में पुलिस समेत शहर के प्राधिकारों से जांच करने को कहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी को जबरन वहां पर रखा तो नहीं जा रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने नशा मुक्ति केंद्र में अपनी मर्जी के बिना रखे गए मरीजों के मामले में पुलिस समेत शहर के प्राधिकारों से जांच करने को कहा है। अदालत ने प्राधिकारों से समय-समय पर औचक जांच करने को भी कहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी को जबरन वहां पर नहीं रखा जाए।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम के संबंध में दाखिला पंजी की आकस्मिक जांच करने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध नशा मुक्ति केंद्र में न रखा जाए।
अदालत ने यह आदेश एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसने आरोप लगाया था कि उसके दोस्त को उसकी पत्नी ने जबरन नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया है और किसी भी व्यक्ति को उससे मिलने या संपर्क में आने की अनुमति नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस केंद्र में कई व्यक्तियों को उनकी इच्छा के बिना रखा गया है।
नशा मुक्ति केंद्र के वकील ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के दोस्त को स्वेच्छा से भर्ती कराया गया था। इस दलील पर याचिकाकर्ता दोस्त ने एतराज जताया और अदालत को बताया कि भर्ती के समय मरीजों के हस्ताक्षर जबरन लिए गए थे।
अदालत ने 12 अगस्त को पारित अपने आदेश में कहा- राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (एसएमएचए) द्वारा एसएबीआरआर फाउंडेशन को मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान के रूप में अनंतिम पंजीकरण का प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जिसका पता नांगलोई, नई दिल्ली है।
अदालत ने कहा- आज लगाए गए आरोपों पर विचार करते हुए, एसएमएचए इहबास, दिल्ली पुलिस और दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर लगाए गए आरोपों की जांच करेगा तथा यह सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर औचक जांच करेगा कि एसएबीआरआर फाउंडेशन में भर्ती मरीजों को जबरन वहां नहीं रखा जा रहा है।
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