SC/ST एक्ट में यौन अपराधों को लेकर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्देश, जानिए क्या कहा?
- हाई कोर्ट ने कहा, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि विधायिका का इरादा अधिनियम के तहत किए गए यौन अपराधों के संबंध में धारा 15ए(10) के अनुपालन के साथ-साथ आईपीसी के तहत महिला पीड़ितों से संबंधित है।
दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज यौन अपराधों में भी जमानत याचिका पर सुनवाई की वीडियोग्राफी अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने यह बात दिल्ली में नाबालिग के बलात्कार और हत्या मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।
जस्टिस विकास महाजन ने कहा कि अधिनियम की धारा 15ए (10) के प्रावधान अनिवार्य हैं और वर्तमान जमानत कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करनी होगी। हाईकोर्ट ने कहा, 'स्पष्ट रूप से एक ओर अधिनियम की धारा 15ए (10) के तहत पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए जमानत कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के प्रावधानों और दूसरी ओर आईपीसी की धारा 228ए और पॉक्सो अधिनियम की धारा 23 के बीच कोई असंगति नहीं है।'
हाई कोर्ट ने कहा, इस प्रकार यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि विधायिका का इरादा अधिनियम के तहत किए गए यौन अपराधों के संबंध में धारा 15ए(10) के अनुपालन के साथ-साथ आईपीसी के तहत महिला पीड़ितों से संबंधित है, जिनकी पहचान कानून के तहत संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय ने आरोपी लक्ष्मी नारायण की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया।
याचिकाकर्ता ने धारा 302/304/376/342/506/201/34 आईपीसी, पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 के तहत पुलिस स्टेशन दिल्ली कैंट, दिल्ली में दर्ज एक मामले में धारा 439 सीआरपीसी के तहत नियमित जमानत की मांग करते हुए वर्तमान याचिका दायर की थी।
सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर याचिकाकर्ता की इसी तरह की जमानत याचिका को पटियाला हाउस कोर्ट ने 8 जून, 2023 को खारिज कर दिया था। शिकायतकर्ता के वकील महमूद प्राचा ने कहा कि अधिनियम की धारा 15ए की उपधारा (10) के मद्देनजर, अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित सभी कार्यवाही, जिसमें वर्तमान मामला भी शामिल है, की वीडियो रिकॉर्डिंग की जानी है।
उन्होंने आगे कहा कि, जैसा कि वर्तमान मामले में, शिकायतकर्ता की नाबालिग बेटी के साथ आरोपियों ने बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी और चूंकि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति समुदाय से है, इसलिए वह अधिनियम की धारा 2(1)(ईसी) के अर्थ में पीड़ित है। इसके अलावा, चूंकि वर्तमान मामले में लगाए गए कुछ अपराध अधिनियम के तहत भी हैं, इसलिए अधिनियम की धारा 15ए(10) के प्रावधान वर्तमान जमानत कार्यवाही पर लागू होंगे और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करना अनिवार्य है।
अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) रितेश कुमार बाहरी ने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई भी व्यक्ति पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता का नाम प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया आदि में नहीं छाप सकता या प्रकाशित नहीं कर सकता या किसी भी ऐसे तथ्य का खुलासा नहीं कर सकता जिससे पीड़िता की पहचान उजागर हो सके या जिससे उसकी पहचान आम जनता को पता चल सके।
उन्होंने पॉक्सो अधिनियम की धारा 23 और आईपीसी की धारा 228ए का भी हवाला दिया, जो यौन अपराधों की पीड़िता की पहचान का खुलासा करने पर दंडनीय है, और कहा कि उक्त प्रावधान अधिनियम की धारा 15ए(10) के प्रावधान को रद्द कर देंगे। अधिवक्ता प्राचा ने एपीपी की दलील का विरोध किया और कहा कि ऐसी वीडियो रिकॉर्डिंग पीड़िता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दी जा सकती।
इसलिए, उनका कहना है कि कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग होने पर भी पीड़िता की पहचान सुरक्षित रहती है। आगे उन्होंने कहा कि एक ओर अधिनियम की धारा 15ए(10) के प्रावधानों और दूसरी ओर पॉक्सो अधिनियम की धारा 23 और आईपीसी की धारा 228ए के बीच कोई टकराव नहीं है।
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