दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा जहरीली, 6 साल की स्टडी के बाद वैज्ञानिकों ने अच्छी खबर भी दी
दिल्ली में पारा का स्तर साउथ एशिया में अब भी सबसे अधिक बना हुआ है। हालांकि, अध्ययन में अच्छा संकेत भी मिला है कि पिछले वर्षों की तुलना में दिल्ली में पारे का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है।

दिल्ली में सांस लेना अब और भी खतरनाक हो गया है। पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजी (IITM) की छह साल की रिसर्च में पता चला है कि दिल्ली की हवा में पारा सबसे ज़्यादा है। पारा एक जहरीला धातु है जो तंत्रिका तंत्र, किडनी और हृदय के लिए नुकसानदेह है। अध्ययन में दिल्ली, अहमदाबाद और पुणे की हवा की तुलना की गई। इसके नतीजे हैरान कर देने वाले हैं।
अध्ययन ने बताया गया है कि दिल्ली में पारा का स्तर दक्षिण एशिया में अब भी सबसे अधिक बना हुआ है। दिल्ली की हवा में पारा का स्तर 6.9 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाया गया, जबकि अहमदाबाद में यह 2.1 और पुणे में 1.5 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। दिल्ली का पारा स्तर वैश्विक स्तर से 13 गुना ज्यादा था।
रिसर्च में बताया गया कि इन शहरों में पारा का 72% से 92% हिस्सा मानव गतिविधियों जैसे कोयला जलाना, ट्रैफिक और उद्योगों के कारण है। सर्दियों में और रात के समय पारा की मात्रा बढ़ जाती है, जो कोयला जलाने, पराली जलाने और स्थिर मौसम की वजह से होता है।
रिसर्च में चौंकाने वाले खुलासे
आईआईएससी के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के चेयर प्रोफेसर गुफ़रान बीग ने कहा, “पारा WHO के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए 10 खतरनाक रसायनों में शामिल है। अगर छोटे मात्रा में भी 5-10 साल तक सांस के जरिए एक्सपोज़र होता रहे, तो यह खतरनाक हो सकता है। लंबे समय तक पारा सांस में लेने से तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, इम्यून सिस्टम, किडनी और फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है।”
अच्छी खबर
दिल्ली की हवा में पारा का स्तर सबसे ज्यादा है, जबकि अहमदाबाद और पुणे में कम पाया गया। वैज्ञानिकों का दावा है कि हाल के वर्षों में धीरे-धीरे कमी का संकेत भी मिला है। दिल्ली की हवा में पारा बढ़ने का मुख्य कारण मानव गतिविधियां जैसे कोयला जलाना, ट्रैफिक और उद्योग हैं। सर्दियों और रात के समय पारा का स्तर बढ़ जाता है, जो दिमाग, किडनी, फेफड़े, हृदय और पाचन तंत्र पर गंभीर असर डाल सकता है।




