दिल्ली में साफ हवा को लगी पलूशन की नजर, घोलने लगा जहर, एक्सपर्ट्स ने क्या कहा?
संक्षेप: हवा की क्वालिटी में गिरावट के बाद, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने शनिवार को एक समीक्षा बैठक की। सूत्रों ने बताया कि CAQM ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के पहले चरण (stage I) को लागू नहीं करने का फैसला किया क्योंकि शनिवार को AQI 'खराब' नहीं हुआ था।

दिल्ली की हर साल की वही कहानी, ठंड की आहट के बीच पलूशन ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। शनिवार को दिल्ली के कई इलाकों में हवा की गुणवत्ता(AQI) 200 को पार कर गई जो खराब श्रेणी में आती है। दिल्ली में नई सरकार के लिए भी इससे पहली बार निपटना चुनौतीपूर्ण होगा। दिल्ली शहर में आखिरी बार 11 जून को हव खराब श्रेणी में गई थी, तब AQI 245 था और वह समय मॉनसून के आगमन का था। उसके बाद बारिश ने पलूशन को कहीं टिकने नहीं दिया,लेकिन अब बारिश के जाते ही प्रदूषण फिर अपने जहरीले तेवर दिखाने लगा है। एक्सपर्ट्स ने भी इससे निपटने के लिए सुझाव दिए हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम करने वाली वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) ने कहा है कि शहर की हवा की गुणवत्ता रविवार से 14 अक्टूबर तक 'खराब' (poor) श्रेणी में रहने की संभावना है। हवा की क्वालिटी में गिरावट के बाद, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने शनिवार को एक समीक्षा बैठक की। सूत्रों ने बताया कि CAQM ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के पहले चरण (stage I) को लागू नहीं करने का फैसला किया क्योंकि शनिवार को AQI 'खराब' नहीं हुआ था।
आयोग रविवार को वायु गुणवत्ता की स्थिति की फिर से समीक्षा करेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से संकलित आंकड़ों के अनुसार, शनिवार को छह राज्यों में सैटेलाइट्स ने 64 जगहों पर पराली जलाए जाने का पता लगाया था। इनमें से 42 उत्तर प्रदेश में, 14 पंजाब में, 6 मध्य प्रदेश में, और हरियाणा व राजस्थान में एक-एक घटना दर्ज की गई। भले ही उत्तरी भारत में पराली जलाना शुरू हो गया है, लेकिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर इसका असर नगण्य (negligible) रहा।
निर्णय समर्थन प्रणाली (DSS) दिल्ली के PM2.5 में प्रदूषण के स्थानीय और क्षेत्रीय स्रोतों के योगदान का अनुमान लगाती है। उसके अनुसार, शुक्रवार को दिल्ली की हवा में पराली जलाने की हिस्सेदारी सिर्फ 0.34% थी। DSS ने अनुमान लगाया कि शनिवार को प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान दिल्ली के परिवहन क्षेत्र (transport sector) का रहा, जो 19.1% था। इसके बाद, सोनीपत से 10.8% उत्सर्जन हुआ और झज्जर तथा दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों (residential) से 4.8% उत्सर्जन दर्ज किया गया।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक, अनुसंधान और वकालत, अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा हम एक बार फिर प्रदूषण के खतरनाक स्तर में प्रवेश कर रहे हैं जहां स्थिति आपातकाल सरीकी हो जाती है। इस सर्दी में प्रदूषण कितना गंभीर होगा, यह देखना बाकी है। वायु गुणवत्ता में लगातार सुधार के लिए हमें बहुत मजबूत निवारक उपायों और स्रोत-वार (source-wise) प्रणालीगत कार्रवाई को बढ़ाने की आवश्यकता है।”
हर संभव स्रोत से उत्सर्जन को नियंत्रित करना क्यों महत्वपूर्ण है, इस पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की वायु प्रयोगशाला के पूर्व प्रमुख दिपांकर साहा ने कहा कि बारिश का मौसम खत्म होने के बाद, जो आमतौर पर अक्टूबर के मध्य के बाद होता है, मौसम की स्थिति बिगड़ने लगती है। उन्होंने कहा, “इस चरण के दौरान, पूरे इंडो-गैंगेटिक मैदान (Indo-Gangetic Plains) में वायु गुणवत्ता 'खराब से बहुत खराब' श्रेणी में रहने लगती है, जो दिल्ली-एनसीआर में बहुत अधिक देखने को मिलती है। ऐसा जमीन के स्तर पर उत्सर्जन का फैलाव न होने के कारण होता है।”





