वोटिंग से पहले लड़ाई SC/ST-OBC पर आई, संसद से स्टेडियम तक गरमाई सियासत की इनसाइड स्टोरी
शाम होते-होते भाजपा की तरफ से भी तीखा पलटवार किया गया। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा ओबीसी नेता बताते हुए राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे अंधे हैं?

Delhi Assembly Elections: दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार खत्म हो चुका है। तीन दलों की सियासी लड़ाई यमुना, जहर, शराब और मुफ्त की घोषणाओं से होते हुए अब SC/ST और ओबीसी पर आ टिकी है और इस गरमाई सियासत का अखाड़ा संसद के दोनों सदनों से लेकर दिल्ली की सड़क तक बनी। एक तरफ भाजपा नेता परवेश वर्मा ने दलितों को साधने के लिए जहां दिन में ऐलान किया कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनते ही तालकटोरा स्टेडियम का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर कर दिया जाएगा, वहीं संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस ने SC/ST और ओबीसी समुदाय को उसका हक नहीं देने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा पर हमला बोला।
लोकसभा में उठा SC/ST-OBC का मुद्दा
लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता विपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी के शासन काल में मैन्यूफैक्चरिंग 60 साल के निचले स्तर पर चला गया है। उन्होंने तंज कसा कि चीन उत्पादन में हमसे आगे है लेकिन हमारा देश जातीय भेदभाव में आगे है। उन्होंने कहा कि मोदी जी के दलित और ओबीसी मंत्री या सांसद कमजोर हैं और वे मुंह तक नहीं खोल सकते हैं। उन्होंने तेलंगाना में कास्ट सेंसस का जिक्र करते हुए कहा कि तेलंगाना में 90 फीसदी एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक है। राहुल ने कहा कि देश में ओबीसी आबादी 50 फीसदी से कम नहीं है लेकिन ये सरकार उन्हें उनके अनुपात के मुताबिक उन्हें लाभ नहीं दे रही। उन्होंने कहा कि बीजेपी के ओबीसी सांसद मुंह नहीं खोल सकते। बीजेपी के ओबीसी, एससी-एसटी सांसदों को कोई पावर नहीं है। इस पर बीजेपी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया।
राज्यसभा में भी खरगे ने उठाए सवाल
उधर, राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी SC/ST और ओबीसी का मुद्दा उठाया और कहा कि मौजूदा सरकार में समाज के इन वर्गों पर अत्याचार बढ़ा है और उनके मामलों में दोष सिद्धि दर भी बहुत कम है। बाद में सोशल मीडिया पर अपने भाषण का क्लिप ट्वीट करते हुए खरगे ने लिखा, "मोदी सरकार ने SC-ST-OBC को बर्बाद कर दिया। आज SC के खिलाफ 13% और ST के खिलाफ 14% अपराध बढ़े हैं। ये तीन घटनाएं बताती हैं कि स्थिति कितनी भयावह है- अयोध्या में एक दलित बेटी के साथ दरिंदगी ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया। उसकी आंखें निकाल दीं, पैर तोड़ दिए। दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई, फिर भी सरकार चुप है। दूसरी घटना 22 जनवरी, 2025 की है। दलित बैंक कर्मचारी को पुलिस और ड्रोन की निगरानी में घोड़ी पर बारात निकालनी पड़ी। तीसरी घटना सासाराम (बिहार) के दलित सांसद मनोज कुमार पर जानलेवा हमले की है। क्या यही 'सबका विश्वास और सबका प्रयास' है? ये तो दलितों को खत्म करने का प्रयास लग रहा है।"
भाजपा का तीखा पलटवार
देर शाम होते-होते भाजपा की तरफ से भी तीखा पलटवार किया गया। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा ओबीसी नेता बताते हुए राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे अंधे हैं? इतनी बड़ी शख्सियत भी उन्हें नहीं दिखाई दे रहे हैं। रिजिजू इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने कहा, कहा, “पिछले 2-3 सालों में राहुल गांधी एससी, एसटी, ओबीसी की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री देश में सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा हैं। क्या उन्हें यह नहीं दिखता? देश का पीएम ओबीसी है। वह दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। क्या उन्हें यह नहीं दिखता? क्या राहुल गांधी अंधे हैं?.. मैं एसटी हूं। मैं देश के संसदीय कार्य मंत्री के तौर पर काम कर रहा हूं। अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं, वह एससी हैं। क्या उन्हें यह भी नहीं दिखता? क्या कांग्रेस पार्टी ने कभी किसी आदिवासी या दलित को देश का कानून मंत्री बनाया? क्या कांग्रेस ने किसी ओबीसी को प्रधानमंत्री बनाया? मुझे लगता है कि राहुल गांधी को पता नहीं है कि वह क्या कहते रहते हैं...”
सियासी जंग के पीछे माजरा क्या?
दरअसल, ये सियासी लड़ाई एससी-एसटी और ओबीसी पर इसलिए आ टिकी है क्योंकि एक दिन छोड़कर अब 5 फरवरी को दिल्ली में चुनाव होने हैं और तीनों दलों को उस समुदाय का वोट चाहिए। दिल्ली की आबादी में जहां मुसलमानों की संख्या 12.68 फीसदी है,वहीं दलित करीब 17 फीसदी हैं। दलित वोटर्स हाल के वर्षों में काफी हद तक AAP के साथ रहे हैं, लेकिन इस बार इसमें सेंधमारी होने की आशंका है। इस समुदाय का अधिकांश झुग्गियों में रहता है।
इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को घोषणा की कि झुग्गियों को नहीं गिराया जाएगा। इसके अलावा, भाजपा दलितों के लिए कई वादे लेकर आई है और दलित बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में व्यापक पहुंच कार्यक्रम आयोजित कर रही है। कांग्रेस की राजनीति का ये यमुदाय केंद्र बिन्दु होता था लेकिन अब वह वर्ग उससे छिटक चुका है। इसलिए कांग्रेस चुनाव से ठीक पहले उनकी चिंता कर और उस बहाने भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दलित वोट फिर से पाना चाह रही है। यही वजह है कि सियासी लड़ाई यमुना, गंदगी, नाले, जहरीले पाने, और अन्य मुद्दों से होते हुए आखिर में एससी-एसटी और ओबीसी पर आ टिकी है। दिल्ली में ओबीसी आबादी भी करीब 20-25 फीसदी है। इन समुदायों का बड़ा हिस्सा स्विंग वोटर्स रहे हैं, जिन्हें हर चुनाव में अलग-अलग दल साधते रहे हैं।