कौन हैं जस्टिस राम मनोहर मिश्र, जिन्होंने आदेश में कहा- स्तन पकड़ना और पायजामे का नाड़ा खींचना रेप नहीं
- जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने एक फैसले में कहा कि स्तनों को पकड़ना या पायजामे का धागा तोड़ना बलात्कार के प्रयास के तहत नहीं आता। उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने संवदेनहीन करार दिया और आलोचना की।

इलाहबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने 17 मार्च को एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने देशभर में विवाद उत्पन्न कर दिया है। उन्होंने यह एक फैसले में कहा कि स्तनों को पकड़ना या पायजामे का धागा तोड़ना बलात्कार के प्रयास के तहत नहीं आता। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने "निर्मम" और "संवेदनहीन" करार दिया, जिससे जस्टिस मिश्र की कड़ी आलोचना हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रोक दिया और इसे कानूनी मानकों का उल्लंघन माना। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला बेहद गंभीर है और न्यायाधीश ने इस मामले में पूरी तरह से संवेदनहीनता दिखाई। बेंच ने यह भी कहा कि इस फैसले को तैयार करने में चार महीने का वक्त लिया गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जस्टिस मिश्र ने इस पर गहरे विचार के बाद फैसला लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘वी द विमेन ऑफ इंडिया’ संगठन की याचिका के बाद स्वतः संज्ञान लिया और जस्टिस मिश्र के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस फैसले ने पूरे न्यायिक समुदाय और समाज में इस मुद्दे को लेकर सवाल उठाए हैं कि क्या बलात्कार के प्रयास के मानदंडों को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है।
कौन हैं जस्टिस राम मनोहर
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के बलरामपुर जिले के प्रशासनिक न्यायधीश के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने 1985 में कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 1987 में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1990 में उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में कार्य करना शुरू किया। इसके बाद, 2005 में वह उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नत हुए।
2019 में, वह बागपत और अलीगढ़ जिलों में जिला एवं सत्र न्यायधीश के रूप में नियुक्त किए गए। इसके अलावा, उन्होंने लखनऊ में न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान में निदेशक के रूप में भी कार्य किया। 15 अगस्त 2022 को उन्होंने अतिरिक्त न्यायधीश के रूप में शपथ ली। अगले वर्ष सितंबर 2023 में उन्होंने स्थायी न्यायधीश के रूप में शपथ ली।