लड़ने से इनकार किया तो ठंडी खाई में कर दिया कैद; रूसी सेना में फंसे भारतीय ने सुनाई आपबीती
- पिछले दिसंबर में मॉस्को पहुंचने के बारे में याद करते हुए सूफ़ियान ने कहा कि एक रोजगार एजेंट ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह मॉस्को में रूसी सरकार के कार्यालय में सुरक्षा गार्ड या सरकारी कार्यालय में सहायक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी सेना में फंसा सभी युवक भारत वापस लौट चुके हैं। उन्होंने आपबीती साझा की है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्र आभार प्रकट किया है। तेलंगाना के नारायणपेट के एक युवक मोहम्मद सूफियान भी वहां फंसे थे। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने उस भयानक मंजर के बारे में साझा किया है। उन्होंने कहा, "मैं यूक्रेन के 60 किलोमीटर अंदर रूसी सैनिकों के साथ एक शिविर में था। 6 सितंबर को एक स्थानीय सेना कमांडर आया और हमें बताया कि हमें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है और हमारा अनुबंध अब वैध नहीं है। हम भारत लौट सकते हैं। उन्होंने मुझे गुलबर्गा के तीन युवकों और रूसियों के साथ लड़ने वाले अन्य विदेशी नागरिकों को एक सेना की बस उपलब्ध कराई और हम दो दिन बाद मॉस्को पहुंच गए।"
पिछले दिसंबर में मॉस्को पहुंचने के बारे में याद करते हुए सूफियान ने कहा कि एक रोजगार एजेंट ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह मॉस्को में रूसी सरकार के कार्यालय में सुरक्षा गार्ड या सरकारी कार्यालय में सहायक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है।
उन्होंने कहा, "जैसे ही हम वहां पहुंचे हमें हस्ताक्षर करने के लिए रूसी भाषा में एक दस्तावेज दिया गया। हमें बताया गया कि यह रूसी सरकार के साथ एक साल के लिए 1 लाख रुपये प्रति माह के वेतन पर काम करने का अनुबंध है। हालांकि, एक दिन बाद हमें एक सेना शिविर में ले जाया गया और शारीरिक प्रशिक्षण शुरू करने और राइफल चलाना सीखने के लिए कहा गया। हमने अपने प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में AK17 और AK74 राइफलें चलाईं। फिर हमें दो सप्ताह की स्नाइपर राइफल ट्रेनिंग दी गई। अगर किसी ने विरोध करने की हिम्मत की तो अधिकारियों ने हमारे पैरों के दाएं और बाएं हिस्से में गोलियां चलाईं। लगभग 25 दिनों के प्रशिक्षण के बाद हमें यूक्रेन के साथ रूसी सीमा पर ले जाया गया।''
सूफियान ने कहा कि हर दिन जिंदा रहने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता था। गुजरात के एक युवक हेमिल मंगुकिया के फरवरी में 23 रूसी सैनिकों के साथ ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद कुछ युवाओं ने फ्रंटलाइन पर काम करने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया, “सजा के तौर पर वहां के प्रभारी अधिकारी ने हमें एक खाई खोदने के लिए मजबूर किया और हमें बिना भोजन और केवल दो बोतल पानी के साथ ठंड के तापमान में रात बिताने के लिए मजबूर किया। जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा मैं और गुलबर्गा के तीन युवा रोजाना विरोध करते थे। सैनिकों और अधिकारियों से कहते थे कि हमने उनके युद्ध के मोर्चे पर मरने के लिए हस्ताक्षर नहीं किए हैं। हम खाइयां खोद रहे थे और वे बंदूकें फिर से लोड कर रहे थे और ग्रेनेड फेंक रहे थे।''
सूफियान ने कहा कि उन्हें प्रति माह 1 लाख रुपये का वेतन देने का वादा किया गया था। किस्तों में पैसे मिले। भोजन, गर्मी के लिए जनरेटर और सोने के लिए खाइयों में जगह किराए पर लेने में पैसे खर्च हो गए। जब हम भारत वापस लौटने के लिए मॉस्को लौटे तो सेना के अधिकारियों ने भारत के बैंक खाते के नंबर लिए और हमें अभी भी बकाया वेतन जमा करने का वादा किया। देखते हैं कि वे ऐसा करते हैं या नहीं।
गुलबर्गा के मोहम्मद इलियास सईद हुसैनी, मोहम्मद समीर अहमद और नईम अहमद भी शुक्रवार दोपहर को सूफियान के साथ हैदराबाद एयरपोर्ट पर उतरे और उनके परिवारों ने उनका स्वागत किया। घर लौटने वाले दो अन्य भारतीयों में कश्मीर का एक युवक और कोलकाता का एक युवक भी शामिल है।
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