हमने न्याय के मंदिर तो बना दिए लेकिन दरवाजे बहुत संकरे रखे, CJI गवई ने किस बात जताई चिंता
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तेजी से बढ़ती आबादी और लगातार बढ़ते मुकदमों के बोझ वाले देश में, पारंपरिक मुकदमेबाजी अकेले बोझ नहीं उठा सकती। उन्होंने वकीलों से हाशिए पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाने का आह्वान किया।

CJI Gavai on Case pendency: देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई ने अदालतों में मुकदमों के बोझ पर चिंता जताई है और कहा है कि देश में पारंपरिक मुकदमेबाजी अकेले बोझ नहीं उठा सकती। उन्होंने बुधवार को कहा कि कानूनी सहायता और मध्यस्थता के जरिए प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (SCBA) द्वारा आयोजित ‘‘सभी के लिए न्याय-कानूनी सहायता और मध्यस्थता : बार और बेंच की सहयोगात्मक भूमिका’’ व्याख्यान के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि हाशिये पर पड़े समुदायों के लिए न्याय का मार्ग जटिल और बाधाओं से भरा हो सकता है।
देश भर की अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या में बार और बेंच दोनों की भूमिका को रेखांकित करते हुए CJI गवई ने कहा कि जहां हाई कोर्ट के कुछ न्यायाधीश “वास्तव में मेहनती हैं... वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक है।” उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय का वादा करता है। फिर भी व्यावहारिक रूप से, न्याय का मार्ग लंबा और जटिल हो सकता है और इसमें कई बाधाएं आ सकती हैं। कई लोगों के लिए, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले लोगों और कमजोर समुदायों के लिए, निष्पक्ष सुनवाई की यात्रा सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक बाधाओं से अवरुद्ध होती है।’’
बार एंड बेंच की भूमिका सहयोगात्मक
बार और पीठ की सहयोगात्मक भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने वकीलों की भूमिका को रेखांकित किया, जिनके बारे में कहा गया कि वे न केवल व्यक्तिगत मुवक्किलों के प्रतिनिधि हैं, बल्कि न्याय के संरक्षक भी हैं। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को निष्पक्षता, समानता और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने का गंभीर कर्तव्य सौंपा गया है। सीजेआई गवई ने ‘‘न्याय के रथ’’ को सुचारु रूप से चलाने के लिए न्यायाधीशों और वकीलों के बीच सामंजस्य पर जोर दिया।
न्याय तक पहुँच हाल तक समृद्ध लोगों का विशेषाधिकार
CJI ने कहा, "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, न्याय तक पहुँच हाल तक समृद्ध लोगों का एक विशेषाधिकार रही है। जब कानूनी फीस मासिक आय पर भारी पड़ जाए, जब प्रक्रियाएँ साक्षरता की माँग करें, जो लाखों लोगों के लिए अधूरी हो, जब अदालतों के गलियारे स्वागत से ज़्यादा डराने लगें, तो हम कठोर वास्तविक स्थिति का सामना करते हैं। हमने न्याय के मंदिर तो बनाए हैं लेकिन उसके दरवाजे उन्हीं लोगों के लिए बहुत संकरे हैं, जिनकी सेवा के लिए उन्हें बनाया गया था। न्याय का तराजू तब तक नहीं झुक सकता जब तक कि केवल एक पक्ष ही अपनी शिकायतें उस पर रखे।"
मुकदमों के ढेर के पीछे क्या कारण?
मुकदमों के इस ढेर के पीछे क्या कारण है, इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "इसका उत्तर कई परस्पर जुड़े कारकों में निहित है, जिन पर सभी हितधारकों को स्पष्ट आत्मनिरीक्षण करना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘कानूनी सहायता योजनाएं इस सहयोगात्मक प्रयास की आधारशिला रही हैं। कानूनी सहायता यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक रूप से वंचित या सामाजिक रूप से हाशिये पर पड़े लोगों को हमारी कानूनी प्रणाली की जटिलताओं से निपटने में प्रतिनिधित्व, मार्गदर्शन या सहायता से वंचित न किया जाए।’’
पारंपरिक मुकदमेबाजी अकेले बोझ नहीं उठा सकती
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कई पात्र नागरिक कानूनी सहायता योजनाओं के तहत अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा, ‘‘तेजी से बढ़ती आबादी और लगातार बढ़ते मुकदमों के बोझ वाले देश में, पारंपरिक मुकदमेबाजी अकेले बोझ नहीं उठा सकती। मध्यस्थता एक ऐसा रास्ता पेश करती है, जो विरोधात्मक नहीं है। यह पक्षों को सहयोगात्मक तरीके से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करती है। मैं वरिष्ठ अधिवक्ताओं को प्रोत्साहित करूंगा कि वे पक्षों का मध्यस्थता के माध्यम से अपने विवादों को सुलझाने के लिए सक्रिय रूप से मार्गदर्शन करें।’’
कानूनी सहायता और मध्यस्थता मजबूत हथियार
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालती मुकदमेबाजी और मध्यस्थता दोनों में अक्सर लंबी प्रक्रियाएं, जटिल औपचारिकताएं और महत्वपूर्ण वित्तीय व्यय शामिल होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कानूनी सहायता और मध्यस्थता वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम संविधान के आदर्शों को लोगों के लिए वास्तविकता में बदल सकते हैं। आज जैसे व्याख्यान न्यायाधीशों को याद दिलाते हैं कि सहानुभूति, पहुंच और सुगम्यता न सिर्फ वैकल्पिक गुण हैं, बल्कि न्यायिक सेवा के आवश्यक घटक भी हैं।’’ (भाषा इनपुट्स के साथ)





