
जब एक पीठ सुन रही थी, तो दूसरी ने आदेश कैसे दिया? करूर भगदड़ केस में HC पर SC जज गरम
संक्षेप: टीवीके की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने भी दलील दी कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मामले की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ को अधिकृत कर सकते थे, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के करूर में पिछले महीने अभिनेता से नेता बने विजय की रैली में हुई भगदड़ की घटना की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने पर मद्रास हाईकोर्ट से सवाल किया है। इस भगदड़ में 41 लोग मारे गए थे। कोर्ट ने पूछा कि एक ही दिन एक ही मामले पर हाई कोर्ट से दो-दो आदेश पारित कैसे किए गए। जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने हैरानी जताई कि हाईकोर्ट ने इस मामले में कैसे ऐसी कार्यवाही की?

पीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, "हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह आदेश कैसे पारित हुआ? जब मदुरै की खंडपीठ इस मामले पर विचार कर रही थी, तो चेन्नई खंडपीठ की एकल पीठ ने इस मामले को कैसे आगे बढ़ाया?" जस्टिस माहेश्वरी ने कहा, "एक न्यायाधीश के रूप में मेरे 15 वर्षों से अधिक के अनुभव में, यदि खंडपीठ ने संज्ञान लिया है, तो एकल पीठ उस पर रोक लगा देती है।"
TVK के वकील की क्या दलील?
सुनवाई के दौरान तमिल अभिनेता विजय की राजनीतिक पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने दलील दी कि हाई कोर्ट में याचिका केवल राजनीतिक रैलियों के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार करने के लिए दायर की गई थी लेकिन हाई कोर्ट ने पहले ही दिन एसआईटी का गठन कर दिया और अदालत ने TVK पार्टी और विजय को सुने बिना ही उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी कर दी।
हाई कोर्ट की टिप्पणी पर भी ऐतराज
टीवीके की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने भी दलील दी कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मामले की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ को अधिकृत कर सकते थे, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। दोनों वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि टीवीके और विजय ने भगदड़ वाली जगह को अपने हाल पर छोड़ दिया और खेद व्यक्त नहीं किया, वे गलत थे। उन्होंने कहा कि पुलिस ने अभिनेता को इस आधार पर वहां से जाने के लिए मजबूर किया था कि इससे स्थिति और बिगड़ जाएगी।
SC ने रखा फैसला सुरक्षित
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि एसआईटी का गठन हाई कोर्ट ने ही किया था और राज्य ने कोई नाम नहीं दिया। रोहतगी ने कहा कि अधिकारी अपनी ईमानदारी और स्वतंत्रता के लिए जाने जाते हैं, और इसमें संदेह करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि, पीठ ने पक्षों की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
CJI ने दी थी सुनवाई करने पर सहमति
इससे पहले मंगलवार को, CJI गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 27 सितंबर की भगदड़ की सीबीआई जांच से इनकार करने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली भाजपा नेता उमा आनंदन की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी। तमिलनाडु के भाजपा नेता जी एस मणि ने भी भगदड़ की सीबीआई जांच की मांग करते हुए एक याचिका दायर की है।
टीवीके ने भी सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में एक स्वतंत्र जांच की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि यदि केवल तमिलनाडु पुलिस के अधिकारी ही निष्पक्ष जांच करेंगे तो यह संभव नहीं होगा। TVK ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा केवल तमिलनाडु पुलिस के अधिकारियों के साथ एक एसआईटी गठित करने पर आपत्ति जताई है। याचिका में पार्टी और अभिनेता-राजनेता के खिलाफ उच्च न्यायालय की उस तीखी टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई गई जिसमें कहा गया था कि घटना के बाद वे वहां से चले गए और उन्होंने कोई खेद व्यक्त नहीं किया।
पुलिस ने कहा था कि रैली में 27,000 लोग शामिल हुए
इससे पहले, पुलिस ने कहा था कि रैली में 27,000 लोग शामिल हुए, जो अपेक्षित 10,000 लोगों से लगभग तीन गुना ज़्यादा था। पुलिस ने इस त्रासदी के लिए विजय के कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने में सात घंटे की देरी को जिम्मेदार ठहराया। मद्रास हाई कोर्ट की चेन्नई पीठ ने 3 अक्टूबर को पुलिस महानिरीक्षक की अध्यक्षता में एक SIT गठित करने का निर्देश दिया था।





