नए उपराष्ट्रपति की पहली ही बैठक में हंगामा, सत्ता पक्ष से भिड़ गए विपक्ष के सांसद
संक्षेप: विपक्ष के सांसदों ने आरोप लगाया कि पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर पूछे गए सवाल को गोपनीय बताकर अस्वीकृत कर दिया गया, जबकि ऐसी जानकारी तेल कंपनियों के संगठन खुद सार्वजनिक रूप से जारी करते हैं।

उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन की अध्यक्षता में मंगलवार को बुलाई गई राज्यसभा फ्लोर लीडर्स की बैठक में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। बैठक में विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर यह आरोप लगाया कि वह संसद में विपक्ष की आवाज दबा रही है और सवालों से बच रही है। बैठक में राज्यसभा में नेता जेपी नड्डा भी मौजूद थे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के सांसद जॉन ब्रिटास ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह विपक्ष के सवालों से लगातार बचती है और पारदर्शिता से काम करने से इनकार करती है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “सरकार ऐसे सवालों की अनुमति तक नहीं देती, जिनकी जानकारी आम जनता RTI (सूचना का अधिकार) के जरिए भी हासिल कर सकती है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।”
ब्रिटास ने उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने नए संसद भवन की लागत से जुड़ा एक सवाल पूछा था, जिसे अनुमति नहीं दी गई। इसी तरह, पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर पूछे गए सवाल को गोपनीय बताकर अस्वीकृत कर दिया गया, जबकि ऐसी जानकारी तेल कंपनियों के संगठन खुद सार्वजनिक रूप से जारी करते हैं।
संसद में जानकारी छिपाई जा रही है: विपक्ष
विपक्षी नेताओं का कहना है कि संसद में सरकार द्वारा सूचना साझा करने में हिचकिचाहट बढ़ रही है। कई बार ऐसे मुद्दों पर भी सवाल रोके जा रहे हैं जो सीधे जनता के हित से जुड़े हैं। एक विपक्षी नेता ने कहा, “जब संसद ही जवाब मांगने का सर्वोच्च मंच है और अगर वहां भी सवाल नहीं पूछे जा सकते तो फिर जवाबदेही कहां होगी?”
सूत्रों के मुताबिक, बैठक के दौरान भाजपा नेताओं ने विपक्ष के आरोपों पर स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि सभी प्रश्न संसद के नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार ही स्वीकार किए जाते हैं।
आपको बता दें कि पिछले कुछ सत्रों में संसद में सवालों की अस्वीकृति और विपक्षी सांसदों के निलंबन को लेकर बार-बार विवाद हुआ है। विपक्ष का कहना है कि इससे संसद का लोकतांत्रिक चरित्र कमजोर हो रहा है, जबकि सरकार का तर्क है कि वह सदन में सद्भावना और अनुशासन बनाए रखने की कोशिश कर रही है।





