दफ्तर में महिला कलीग के साथ रूखा या अवांछित व्यवहार यौन शोषण के बराबर: मद्रास हाईकोर्ट
- मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाइकोर्ट ने एक अमेरिकी अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि यौन उत्पीड़न के मामले में शख्स के इरादे से ज्यादा उसका व्यवहार महत्वपूर्ण है।

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले में अहम टिप्पणी की है। हाइकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान दफ्तरों में यौन शोषण की परिभाषा के दायरे को बढ़ाया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि उत्पीड़न के मामले में शख्स के इरादे से ज्यादा अहम उसका व्यवहार है। जस्टिस आर एन मंजुला ने सुनवाई के दौरान कहा, "कार्यस्थल पर अवांछित व्यवहार यौन उत्पीड़न के बराबर है, चाहे पुरुष इसके पीछे कोई भी इरादा रखता हो।" उच्च न्यायालय ने इस मामले में एक अमेरिकी कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है।
कोर्ट ने श्रम न्यायालय के एक आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एचसीएल टेक्नोलॉजीज की इंटरनल कंप्लेंट कमिटी (आईसीसी) ने अपने एक वरिष्ठ कर्मचारी के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज कर दिया था। आरोपी कर्मचारी के अंतर्गत काम करने वाली तीन महिला कर्मचारियों ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने अपने ऊंचे पद का गलत इस्तेमाल किया और जब वे काम कर रही थीं, तो उनके पीछे खड़े होकर, उनके कंधों को छूने और जबरदस्ती हाथ मिलाने की कोशिश की। वहीं शख्स ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि वह एक सुपरवाइजरी पोस्ट पर था और वह सिर्फ उनके पीछे खड़े होकर उनके काम को देखता था। उसने यौन उत्पीड़न करने के किसी भी इरादे से इनकार किया।
हालांकि कोर्ट ने शख्स के तर्कों को खारिज करते हुए कहा, “अगर कोई बात महिलाओं को अवांछित लगती है या कोई महिला ऐसा महसूस करती है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह यौन उत्पीड़न की परिभाषा के अंतर्गत आएगा।" जस्टिस मंजुला ने कहा कि POSH अधिनियम में यौन उत्पीड़न की परिभाषा के तहत इसके पीछे की मंशा से अधिक पुरुष के इरादे को महत्व दिया है। कोर्ट ने आगे कहा, "मौलिक अनुशासन और समझ यही है साथ काम करने वाले अलग-अलग लिंगों के कर्मचारी एक-दूसरे के साथ शालीनता से पेश आएं।”