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'गंभीर सवालों का भी देना होगा जवाब' वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर TMC सांसद क्यों भड़के

एक ब्लॉग पोस्ट में डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि केंद्र के लिए इस सप्ताह की शुरुआत एक और काले सोमवार के साथ हुई। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने वक्फ अधिनियम, 2025 के दो सबसे विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगा दी है।

Niteesh Kumar भाषाTue, 16 Sep 2025 01:58 PM
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'गंभीर सवालों का भी देना होगा जवाब' वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर TMC सांसद क्यों भड़के

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से वक्फ संशोधन अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को इस तरह के गंभीर सवालों का भी जवाब देना होगा कि क्या वक्फ अधिनियम समानता और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का उल्लंघन करता है। एक ब्लॉग पोस्ट में ओ ब्रायन ने कहा कि केंद्र के लिए इस सप्ताह की शुरुआत एक और काले सोमवार के साथ हुई। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने वक्फ अधिनियम, 2025 के दो सबसे विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगा दी है। पहला, किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करने से पहले 5 साल तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक है। दूसरा, यह प्रावधान कि एक नामित अधिकारी नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का न्याय कर सकता है।

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तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा कि संसद में वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 का पारित होना छल-कपट और टालमटोल से प्रभावित है। राज्यसभा सदस्य ने कहा, ‘संसद का एक सामान्य पर्यवेक्षक भी यह बता सकता है कि भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन किस तरह संसदीय प्रक्रिया का मजाक उड़ा रहा है।’ उन्होंने कहा कि विधेयक को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव सत्र के आखिरी दिन फिर से पेश किया गया था। जब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की रिपोर्ट संसद में पेश की गई तो विपक्षी सदस्यों के असहमति के नोटों को सफेदी का इस्तेमाल करके मिटा दिया गया।

TMC लीडर को किस बात पर आपत्ति

टीएमसी नेता ने कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक संसद में आधी रात को, राज्यसभा में लगभग आधी रात को और लोकसभा में देर रात एक बजे से पहले पारित किया गया था। उन्होंने कहा कि मणिपुर पर सुबह तीन बजे चर्चा हुई थी। ओ ब्रायन ने कहा कि इस मामले में एक प्रमुख तर्क संवैधानिकता के पक्ष में पूर्व धारणा के सिद्धांत का था, जिसका अर्थ है कि जब किसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी जाती है, तो अदालतों को आमतौर पर कानून को वैध मान लेना चाहिए। उसे तब तक बरकरार रखना चाहिए जब तक कि स्पष्ट रूप से इसके विपरीत कोई बात साबित न हो जाए। उन्होंने ब्लॉग पोस्ट में कहा, ‘यह मानकर चला जाता है कि संसद और विधानसभाएं सद्भावना से और अपने अधिकार क्षेत्र में काम करती हैं। कानूनों को अमान्य करना एक अपवाद होना चाहिए, न कि स्वाभाविक।’

कानून रद्द करने को लेकर क्या कहा

तृणमूल नेता ने कहा कि दुनिया भर की कई संवैधानिक अदालतों की तरह एससी ने भी इस धारणा की बार-बार पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि अदालतों को केवल तभी किसी कानून को रद्द करना चाहिए जब वह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक हो या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो, जिसमें कोई संदेह न हो। उन्होंने कहा, ‘हाल के रुझानों को देखते हुए जहां कानूनों का चयनात्मक रूप से असंगत बोझ डालने, अल्पसंख्यक अधिकारों को प्रतिबंधात्मक रूप से विनियमित करने या राज्य को संवैधानिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों (जैसे धार्मिक स्वतंत्रता और समानता) में अतिक्रमण करने में सक्षम बनाने के लिए किया गया है, संवैधानिकता के पक्ष में पूर्वधारणा का पुनर्मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है।’ ओ ब्रायन ने कहा कि न्यायालय को गंभीर सवालों का जवाब देना होगा।

Niteesh Kumar

लेखक के बारे में

Niteesh Kumar
नीतीश 7 साल से अधिक समय से मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। जनसत्ता डिजिटल से बतौर कंटेंट प्रोड्यूसर शुरुआत हुई। लाइव हिन्दुस्तान से जुड़ने से पहले टीवी9 भारतवर्ष और दैनिक भास्कर डिजिटल में भी काम कर चुके हैं। खबरें लिखने के साथ ग्राउंड रिपोर्टिंग का शौक है। लाइव हिन्दुस्तान यूट्यूब चैनल के लिए लोकसभा चुनाव 2024 की कवरेज कर चुके हैं। पत्रकारिता का पढ़ाई IIMC, दिल्ली (2016-17 बैच) से हुई। इससे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज से ग्रैजुएशन किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले हैं। राजनीति, खेल के साथ सिनेमा में भी दिलचस्पी रखते हैं। और पढ़ें
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