Hindi NewsIndia NewsSupreme Court termed SIR dispute in Bihar as primarily issue of lack of trust
'हम शुद्धिकरण अभियान चला रहे, रोकने के बजाय मदद करें', SIR पर सुप्रीम कोर्ट में बोला चुनाव आयोग

'हम शुद्धिकरण अभियान चला रहे, रोकने के बजाय मदद करें', SIR पर सुप्रीम कोर्ट में बोला चुनाव आयोग

संक्षेप: एससी की पीठ ने कहा, 'क्या आपका तर्क यह है कि जिन लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन वे बिहार में हैं, उन्हें राज्य का मतदाता माना जाए? ऐसा हो सकता है, लेकिन उन्हें कुछ दस्तावेज दिखाने या जमा करने होंगे।'

Tue, 12 Aug 2025 06:24 PMNiteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान
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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) विवाद को मुख्य रूप से विश्वास की कमी का मुद्दा करार दिया। चुनाव आयोग ने दावा किया कि 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 6.5 करोड़ लोगों को कोई दस्तावेज जमा नहीं करना पड़ा, क्योंकि वे या उनके माता-पिता 2003 की मतदाता सूची में शामिल थे। एससी बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची संशोधन अभ्यास के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

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चुनाव आयोग की ओर से सीनियर वकील राकेश द्विवेदी ने तर्क रखे। सुनवाई के दौरान द्विवेदी ने कहा कि हम शुद्धिकरण अभियान चला रहे हैं। इसे रोकने की कोशिश करने के बजाय, हमारी मदद करें। द्विवेदी ने कहा कि यह एक ड्राफ्ट रोल है। हमने नोटिस दिया है कि कृपया अपनी आपत्तियां और सुधार आवेदन जमा करें। फिलहाल कुछ दोष होना स्वाभाविक बात है।

विश्वास की कमी का मामला: एससी

जस्टिस सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यह मुख्य रूप से विश्वास की कमी का मामला प्रतीत होता है और कुछ नहीं। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती देने पर सवाल उठाया, जिसमें दावा किया गया था कि यह अभ्यास एक करोड़ मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर देगा।

नागरिकता के सबूत पर बहस

पीठ ने याचिकाकर्ता और राजद नेता मनोज झा की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल से कहा, 'अगर 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने एसआईआर का जवाब दिया, तो यह एक करोड़ मतदाताओं के गायब होने या मताधिकार से वंचित होने की थ्योरी को खारिज करता है।' शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग के उस फैसले से भी सहमति जताई जिसमें आधार और मतदाता पहचान पत्र को नागरिकता का निर्णायक सबूत नहीं माना गया और कहा कि इसे अन्य दस्तावेजों के साथ समर्थन करना होगा।

कबिल सिब्बल का क्या है तर्क

कबिल सिब्बल ने तर्क दिया कि आधार, राशन और ईपीआईसी कार्ड होने के बावजूद अधिकारियों ने इन दस्तावेजों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। एससी की पीठ ने कहा, 'क्या आपका तर्क यह है कि जिन लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन वे बिहार में हैं, उन्हें राज्य का मतदाता माना जाए? ऐसा हो सकता है, लेकिन उन्हें कुछ दस्तावेज दिखाने या जमा करने होंगे।' जब सिब्बल ने कहा कि लोग अपने या अपने माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेज खोजने में संघर्ष कर रहे हैं, तो न्यायमूर्ति कांत ने कहा, 'यह बहुत व्यापक बयान है कि बिहार में किसी के पास दस्तावेज नहीं हैं। अगर बिहार में ऐसा होता है तो देश के अन्य हिस्सों में क्या होगा?'

Niteesh Kumar

लेखक के बारे में

Niteesh Kumar
नीतीश 7 साल से अधिक समय से मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। जनसत्ता डिजिटल से बतौर कंटेंट प्रोड्यूसर शुरुआत हुई। लाइव हिन्दुस्तान से जुड़ने से पहले टीवी9 भारतवर्ष और दैनिक भास्कर डिजिटल में भी काम कर चुके हैं। खबरें लिखने के साथ ग्राउंड रिपोर्टिंग का शौक है। लाइव हिन्दुस्तान यूट्यूब चैनल के लिए लोकसभा चुनाव 2024 की कवरेज कर चुके हैं। पत्रकारिता का पढ़ाई IIMC, दिल्ली (2016-17 बैच) से हुई। इससे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज से ग्रैजुएशन किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले हैं। राजनीति, खेल के साथ सिनेमा में भी दिलचस्पी रखते हैं। और पढ़ें
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