
ऐसे कैसे बेल दे दिया? निचली अदालतों पर भड़का सुप्रीम कोर्ट; जजों को ट्रेनिंग पर भी भेजा
संक्षेप: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान निचली अदालत के जजों को मनमाने तरीके से बेल देने को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने यहां है कि ऐसे मामलों में आंख मूंद लेना सही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक निजी कंपनी से 6 करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी करने के आरोपी दंपति को जमानत देने के तरीके की कड़ी आलोचना करते हुए जजों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट और सेशन्स जज ने आरोपियों को बेल देते समय लापरवाही बरती है। कोर्ट ने इस दौरान दोनों अधिकारियों को दिल्ली न्यायिक अकादमी में कम से कम 7 दिनों का ट्रेनिंग लेने का भी आदेश दिया है।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और SVN भट्टी की पीठ ने पुलिस की ओर से गंभीर चूकों को देखते हुए जांच अधिकारी के आचरण की जांच का भी आदेश दिया। अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को अधिकारी की भूमिका की व्यक्तिगत जांच करने और आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देते हुए कहा कि जमानत की कार्यवाही में जांच अधिकारी का रुख संदेह खड़े करता है।
क्या मामला?
दरअसल कोर्ट में एक कंपनी के आरोपों पर सुनवाई चल रही थी। कंपनी के मुताबिक आरोपी दंपति ने जमीन ट्रांसफर करने के वादे के साथ कंपनी से 1.9 करोड़ रुपए लिए थे, लेकिन बाद में कंपनी को पता चला कि जमीन पहले ही बेच दी गई है और उसे गिरवी रख दिया गया है। हालांकि दंपति ने कंपनी को पैसे वापस करने से इनकार कर दिया। कंपनी ने दावा किया कि ब्याज सहित उसकी बकाया राशि 6 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है। इस संबंध में 2018 में एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
आरोपियों को मिली बेल
इसके बाद दंपति की अग्रिम जमानत याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने 2023 में खारिज कर दी और कोर्ट ने उन्हें फटकार भी लगाई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि दंपति ने सालों तक अदालतों को गुमराह किया है। हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद नवंबर 2023 में ACMM ने उन्हें जमानत दे दी। ACMM ने तर्क दिया था कि क्योंकि आरोपपत्र दायर हो चुका है, इसलिए हिरासत की कोई जरूरत नहीं है। बाद में सत्र न्यायाधीश ने अगस्त 2024 में इस आदेश को बरकरार रखा और दिल्ली हाईकोर्ट ने भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पिलाई डांट
अब मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत के मामले तथ्यों और आचरण पर आधारित होने चाहिए, न कि मशीनरी पर। कोर्ट ने कहा, “जमानत के मामलों में किसी भी कानूनी सिद्धांत को लागू करने से पहले, मुख्य रूप से तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए। तथ्यात्मक आधार पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए थी।” इस दौरान बरती गईं अनियमितताओं की ओर भी इशारा किया। आरोपी अक्टूबर 2023 में औपचारिक रूप से मजिस्ट्रेट के सामने पेश हुए थे, लेकिन उन्हें बिना किसी अंतरिम रिहाई आदेश के अदालत से बाहर जाने दिया गया था। कोर्ट ने आरोपियों को दो सप्ताह के भीतर सरेंडर करने को कहा है।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "अगर हम आरोपी को जमानत देने के तरीके और सत्र न्यायाधीश द्वारा ऐसी जमानत देने में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के तरीके पर आंखें मूंद लेते हैं, तो हम अपने कर्तव्य में विफल होंगे। 10.11.2023 और 16.08.2024 के आदेश पारित करने वाले न्यायिक अधिकारियों को कम से कम सात दिनों की अवधि के लिए विशेष न्यायिक प्रशिक्षण से गुजरना होगा।" न्यायालय ने आदेश दिया।





