Hindi NewsIndia NewsSupreme Court says Time to decriminalise defamation has come against own 2016 decision
समय आ गया है, इसे अपराध की श्रेणी से हटाया जाए; मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

समय आ गया है, इसे अपराध की श्रेणी से हटाया जाए; मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

संक्षेप: भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है जहां मानहानि को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2016 में आपराधिक मानहानि के कानून को संवैधानिक रूप से वैध माना था।

Mon, 22 Sep 2025 07:29 PMJagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तान
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की है। उच्चतम न्यायालय ने द वायर मीडिया आउटलेट से संबंधित मामले पर विचार करते हुए कहा है कि मानहानि के मामलों को आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने का समय आ गया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के अपने एक फैसले में आपराधिक मानहानि कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा था कि प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है। अब कोर्ट ने इससे अलग टिप्पणी की है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की है जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की एक प्रोफेसर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में न्यूज आउटलेट द वायर को जारी समन को चुनौती दी गई थी। बार एंड बेंच की रिपोर्ट एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला द वायर की उस न्यूज रिपोर्ट से जुड़ा है जिसमें कहा गया था कि प्रोफेसर अमिता सिंह जेएनयू के शिक्षकों के एक ग्रुप की संचालक थीं, जिन्होंने 200 पन्नों का एक डोजियर तैयार किया था जिसमें जेएनयू को "संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा" बताया गया था। इसमें जेएनयू में कुछ शिक्षकों पर भारत में अलगाववादी आंदोलनों को वैध ठहराकर जेएनयू में पतनशील संस्कृति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था।

द वायर के लेख के मुताबिक अमिता सिंह उस डोजियर को तैयार करने वाले शिक्षकों के समूह की प्रमुख थीं। इस रिपोर्ट के बाद सिंह ने 2016 में द वायर और उसके रिपोर्टर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया। इस मामले में एक मजिस्ट्रेट ने फरवरी 2017 में ऑनलाइन न्यूज पोर्टल को समन जारी किया था। दिल्ली हाइकोर्ट ने भी समन के इस आदेश को बरकरार रखा, जिसके बाद द वायर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सोमवार की सुनवाई के दौरान, जस्टिस एमएम सुंदरेश ने कहा, "मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि इस सब को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाए।" कोर्ट ने द वायर का पक्ष रख रहे सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट की इस टिप्पणी से सहमति जताते हुए कहा कि कानून में सुधार की जरूरत है।

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बता दें कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत भारत में मानहानि एक क्रिमिनल ऑफेंस है। भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है जहां मानहानि को आपराधिक ऑफेंस का दर्जा दिया गया है। इससे पहले 2016 में सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले में, शीर्ष अदालत ने क्रिमिनल डिफेमेशन की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा था कि यह अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक उचित प्रतिबंध के रूप में कार्य करता है और जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का एक मौलिक हिस्सा है।

Jagriti Kumari

लेखक के बारे में

Jagriti Kumari
जागृति ने 2024 में हिंदुस्तान टाइम्स डिजिटल सर्विसेज के साथ अपने करियर की शुरुआत की है। संत जेवियर कॉलेज रांची से जर्नलिज्म में ग्रैजुएशन करने बाद, 2023-24 में उन्होंने भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा हासिल किया। खबरें लिखने के साथ साथ ग्राउंड रिपोर्टिंग का शौक है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंध, खेल और अर्थव्यवस्था की खबरों को पढ़ना पसंद है। मूल रूप से रांची, झारखंड की जागृति को खाली समय में सिनेमा देखना और सिनेमा के बारे में पढ़ना पसंद है। और पढ़ें
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