Hindi NewsIndia NewsSupreme Court grants anticipatory bail to man booked under SC/ST Act for calling complainant bastard slams on police
ये गाली जाति सूचक नहीं; SC/ST एक्ट के आरोपी को SC ने दी जमानत? पुलिस को क्यों फटकार

ये गाली जाति सूचक नहीं; SC/ST एक्ट के आरोपी को SC ने दी जमानत? पुलिस को क्यों फटकार

संक्षेप: शीर्ष अदालत ने हाल ही में मारपीट और जाति-आधारित दुर्व्यवहार के आरोपी 55 वर्षीय व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि FIR में जातिवादी टिप्पणी का कोई आरोप नहीं है। कोर्ट ने कहा कि 'हरामी' कहना जाति सूचक नहीं है।

Mon, 3 Nov 2025 10:38 PMPramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली
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सुप्रीम कोर्ट ने दलित समुदाय के एक व्यक्ति को गाली देने के आरोपों का सामना कर रहे शख्स को अंतरिम जमानत देते हुए कहा है कि किसी भी दलित समुदाय के व्यक्ति को ‘हरामी’ (Bastard) कहना जाति सूचक गाली नहीं है। हरामी कहने के आरोप पर उस शख्स के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। सिद्धार्थन बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि यह काफी आश्चर्यजनक है कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ "हरामी" शब्द का इस्तेमाल करने के लिए एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया, जबकि यह शब्द जाति-आधारित गाली नहीं है।

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शीर्ष अदालत ने हाल ही में मारपीट और जाति-आधारित दुर्व्यवहार के आरोपी 55 वर्षीय व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि FIR में जातिवादी टिप्पणी का कोई आरोप नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज होने के कारण ही केरल हाई कोर्ट ने प्रथम दृष्टया उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

हाई कोर्ट ने क्यों खारिज की अर्जी

अदालत ने कहा, “यह जानकर आश्चर्य हुआ कि शिकायतकर्ता द्वारा अपनी शिकायत में किसी भी जातिगत अपमान के आरोप नहीं लगाए गए थे, बावजूद इसके पुलिस ने अति उत्साह में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को शामिल कर लिया। इसी कारण प्रथम दृष्टया उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत को खारिज कर दिया।”

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मारपीट के दौरान कहा था हरामी

बार एंड बेंच की रिपोर्टके मुताबिक, यह मामला 16 अप्रैल को दर्ज कराई गई एक शिकायत से शुरू हुआ था, जिसमें आरोपियों ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को सड़क पर रोका, उसे धमकाया और उस पर चाकू से हमला किया। FIR में कहा गया है कि आरोपियों ने चोट पहुँचाने से पहले शिकायतकर्ता को "हरामी" कहा था। इस दौरान अपना बचाव करते हुए शिकायतकर्ता के हाथों पर जख्म हो गए।

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एफआईआर दर्ज होने के बाद, पुलिस ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध जोड़े और आरोप लगाया कि "हरामी" शब्द का इस्तेमाल जाति-आधारित गाली है। मामले में आरोपी ने यह दावा करते हुए केरल उच्च न्यायालय से अग्रिम ज़मानत की माँग की, कि एससी/एसटी अधिनियम की धाराएँ जोड़ना अनुचित था और शिकायत में भी इसका समर्थन नहीं किया गया था। उसने ये भी दावा किया कि उसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। हालाँकि, उच्च न्यायालय ने उसे इस आधार पर अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 18 के तहत ऐसी राहत निषिद्ध है। इसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।

Pramod Praveen

लेखक के बारे में

Pramod Praveen
भूगोल में पीएचडी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर उपाधि धारक। ईटीवी से बतौर प्रशिक्षु पत्रकार पत्रकारिता करियर की शुरुआत। कई हिंदी न्यूज़ चैनलों (इंडिया न्यूज, फोकस टीवी, साधना न्यूज) की लॉन्चिंग टीम का सदस्य और बतौर प्रोड्यूसर, सीनियर प्रोड्यूसर के रूप में काम करने के बाद डिजिटल पत्रकारिता में एक दशक से लंबे समय का कार्यानुभव। जनसत्ता, एनडीटीवी के बाद संप्रति हिन्दुस्तान लाइव में कार्यरत। समसामयिक घटनाओं और राजनीतिक जगत के अंदर की खबरों पर चिंतन-मंथन और लेखन समेत कुल डेढ़ दशक की पत्रकारिता में बहुआयामी भूमिका। कई संस्थानों में सियासी किस्सों का स्तंभकार और संपादन। और पढ़ें
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