
संविधान निर्माता चाहते थे कि राज्यपाल और सरकार में सामंजस्य रहे, क्या ऐसा है: SC
संक्षेप: राष्ट्रपति ने रेफरेंस दाखिल कर पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसा अधिकार है। बुधवार को इस मामले में सुनवाई शुरू हुई तो दोनों ओर से दिलचस्प दलीलें दी गईं। इस बीच बेंच ने पूछा कि क्या देश संविधान निर्माताओं की इस उम्मीद पर खरा उतरा है कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य होगा।
राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रेफरेंस को लेकर बुधवार को भी सुनवाई जारी है। अप्रैल में अदालत की ओर से फैसला दिया गया था कि 90 दिनों के अंदर विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल या राष्ट्रपति को मंजूर करना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर कारण बताना होगा। शीर्ष अदालत की ओर से ऐसा आदेश जारी किए जाने पर ही राष्ट्रपति ने रेफरेंस दाखिल कर पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसा अधिकार है। बुधवार को इस मामले में सुनवाई शुरू हुई तो दोनों ओर से दिलचस्प दलीलें दी गईं। इस बीच बेंच ने पूछा कि क्या देश संविधान निर्माताओं की इस उम्मीद पर खरा उतरा है कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य होगा।
बेंच ने कहा कि संविधान निर्माता चाहते थे कि दोनों शक्ति केंद्रों के बीच विभिन्न मुद्दों पर परामर्श भी किया जाएगा। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल की नियुक्ति और शक्तियों पर संविधान सभा की बहस का उल्लेख किया। मेहता ने पीठ को बताया कि विभिन्न वर्गों में की गई आलोचनाओं के विपरीत, राज्यपाल का पद राजनीतिक शरण चाहने वालों के लिए नहीं है बल्कि संविधान के तहत उनके पास कुछ शक्तियां और दायित्व हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने राष्ट्रपति संदर्भ पर अपनी दलीलें जारी रखते हुए कहा कि संविधान की संघीय योजना को ध्यान में रखते हुए संविधान सभा में राज्यपालों की भूमिका और नियुक्ति पर विस्तृत बहस हुई है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार और अटॉर्नी जनरल से राज्यपालों के पास लंबे समय से लंबित उन विधेयकों के बारे में सवाल किए, जो राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित किए जा चुके हैं।
इसके साथ ही न्यायालय ने उन स्थितियों में संवैधानिक अदालतों की सीमाओं का जिक्र किया जिसमें 2020 से विधेयक लंबित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह केवल कानून पर ही अपने विचार व्यक्त करेगी, तमिलनाडु मामले में आठ अप्रैल के फैसले पर नहीं, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय की गई है।रा ष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया था कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को बिलों पर फैसला लेने के लिए टाइमलाइन में बांधा जा सकता है।





