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यासीन मलिक ने बंदूक छोड़ी थी, लेकिन हिंसा नहीं; खुद को गांधी से जोड़ने का हक नहीं: कोर्ट

कोर्ट के विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उन्होंने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया था और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे।

यासीन मलिक ने बंदूक छोड़ी थी, लेकिन हिंसा नहीं; खुद को गांधी से जोड़ने का हक नहीं: कोर्ट
एजेंसीज,नई दिल्लीThu, 26 May 2022 09:51 AM
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जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए दिल्ली की एक अदालत ने गंभीर टिप्पणी की। दरअसल विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने यासीन मलिक को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम)अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। 

उम्रकैद की सजा सुनाते हुए न्यायाधीश ने 20 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि जिस अपराध के लिए मलिक को दोषी ठहराया गया है उनकी प्रकृति गंभीर है। न्यायाधीश ने हालांकि कहा कि यह मामला ‘‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामला’’ नहीं है जिसमें मृत्युदंड सुनाया जाए।

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पटियाला हाउस कोर्ट के विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उन्होंने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया था और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे।

क्या था यासीन मलिक का तर्क?

अदालत में मलिक द्वारा दाखिल जवाब में कहा गया, ‘‘1994 में संघर्षविराम के बाद, उसने घोषणा की थी कि वह महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण मार्ग का अनुसरण करेगा और एक अहिंसक राजनीतिक संघर्ष में शामिल होगा। उसने आगे तर्क दिया है कि तब से उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है कि पिछले 28 वर्षों में उसने किसी भी आतंकवादी को कोई आश्रय प्रदान किया था या किसी आतंकवादी संगठन को कोई साजोसामान संबंधी सहायता प्रदान की थी।’’ मलिक ने अदालत को बताया कि उसने वी पी सिंह के समय से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक सभी प्रधानमंत्रियों से मुलाकात की, जिन्होंने उससे बातचीत की और उसे एक राजनीतिक मंच दिया।

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"सरकार को मूर्ख नहीं माना जा सकता है"

न्यायाधीश ने उसके बयान के हवाले से कहा, ‘‘भारत सरकार ने उसे भारत के साथ-साथ बाहर भी अपनी राय व्यक्त करने के लिए सभी मंच प्रदान किए थे, और सरकार को एक ऐसे व्यक्ति को अवसर देने के लिए मूर्ख नहीं माना जा सकता जो आतंकवादी कृत्यों में लिप्त था। उसने आगे तर्क दिया है कि यह आरोप लगाया गया है कि वह बुरहान वानी की हत्या के बाद घाटी में हिंसा के कृत्यों में शामिल था।’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हालांकि, बुरहान वानी की मौत के तुरंत बाद, उसे गिरफ्तार कर लिया गया और नवंबर 2016 तक हिरासत में रहा। इसलिए, वह हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकता था।’’

"यासीन मलिक ने बंदूक छोड़ी थी, लेकिन हिंसा नहीं"

एनआईए के इस तर्क पर कि मलिक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और उनके पलायन के लिए जिम्मेदार था, न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि यह मुद्दा अदालत के समक्ष नहीं है और इस पर फैसला नहीं किया गया है, इसलिए वह खुद को तर्क से प्रभावित नहीं होने दे सकते। मलिक को मौत की सजा देने की एनआईए की याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं तदनुसार पाता हूं कि यह मामला मौत की सजा देने लायक नहीं है।’’ न्यायाधीश ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उसने 1994 में बंदूक छोड़ दी थी। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह सही हो सकता है कि अपराधी ने वर्ष 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने वर्ष 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया था। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब उसने दावा किया था कि उसने 1994 के बाद हिंसा का रास्ता छोड़ दिया, भारत सरकार ने इस पर भरोसा किया और उसे सुधार करने का मौका दिया और अच्छे विश्वास में, उसके साथ एक सार्थक बातचीत में शामिल होने की कोशिश की और जैसा कि उसने स्वीकार किया, उसे अपनी राय व्यक्त करने के लिए हर मंच दिया।’’ उन्होंने कहा कि दोषी ने हालांकि हिंसा का त्याग नहीं किया।

"यासीन ने सरकार के अच्छे इरादों के साथ विश्वासघात किया"

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘बल्कि, सरकार के अच्छे इरादों के साथ विश्वासघात करते हुए, उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए एक अलग रास्ता अपनाया। दोषी ने दावा किया कि उसने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया था और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहा था। हालांकि, सबूत जिसके आधार पर आरोप तय किए गए थे और जिसने उसे दोषी ठहराया है, कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि पूरे आंदोलन को हिंसक बनाने की योजना बनाई गई थी।

"महात्मा गांधी की बात नहीं कर सकता यासीन मलिक"

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे यहां ध्यान देना चाहिए कि अपराधी महात्मा की बात नहीं कर सकता और उनके अनुयायी होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि महात्मा गांधी के सिद्धांतों में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं थी, चाहे उद्देश्य कितना भी बड़ा हो। चौरी-चौरा में हुई हिंसा की एक छोटी सी घटना पर महात्मा गांधी ने पूरे असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया था।’’ उन्होंने कहा कि घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा होने के बावजूद मलिक ने न तो इसकी निंदा की और न ही विरोध का अपने कार्यक्रम वापस लिया।

अदालत ने मलिक को आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 121-ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश) और यूएपीए की धारा 15 (आतंकवाद), 18 (आतंकवाद की साजिश) और 20 (आतंकवादी संगठन का सदस्य होने) के तहत 10-10 साल की जेल की सजा सुनाई। अदालत ने यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी कृत्य), 38 (आतंकवाद की सदस्यता से संबंधित अपराध) और 39 (आतंकवाद को समर्थन) के तहत प्रत्येक के लिये पांच-पांच साल की जेल की सजा सुनाई। सभी सजा साथ-साथ चलेंगी।

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