भारतीय संस्कृति में स्त्रियों का सम्मान, पर समाज में नहीं: कर्ण सिंह
स्त्री शक्ति पर चर्चा करते हुए वयोवृद्ध राजनेता एवम चिंतक डॉ. कर्ण सिंह ने कहा भारतीय संस्कृति में महिलाओं का बहुत सम्मान और आदर है लेकिन, समाज में नहीं।
वयोवृद्ध राजनेता एवम चिंतक डॉ. कर्ण सिंह ने कहा है कि आजादी के बाद भारत में बहुत बड़ा बदलाव आया है और इस बदलाव का नतीजा है कि देश में पहली बार एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनी हैं। स्त्री शक्ति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति में महिलाओं का बहुत सम्मान और आदर है लेकिन, समाज में नहीं। डॉ. कर्ण सिंह ने यह बातें बुधवार शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका अलका सरावगी को स्त्री शक्ति दयावती मोदी सम्मान प्रदान करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर उन्होंने “ महाकवि कालिदास की कृतियों का रचयिता कौन? (कालिदास या उनकी पत्नी काशी की राजकुमारी विदुषी विद्योत्तमा)” नामक प्रकाशनाधीन पुस्तक के कवर का लोकार्पण भी किया।
हर प्रधानमंत्री को देखाः कर्ण सिंह
91 वर्षीय डॉ. कर्ण सिंह ने पुस्तक के कवर का लोकार्पण करते हुए कहा कि भारत जब आजाद हुआ था तब उनकी उम्र 16 साल थी और तब से लेकर उन्होंने सभी प्रधानमंत्रियों को देखा और उनके सम्पर्क में रहे चाहे पंडित जवाहरलाल नेहरू हों या नरेंद्र मोदी। साथ ही उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर बाद के राष्ट्रपतियों को भी देखा। उन्होंने कहा कि पच्चहत्तर वर्ष अपने मुल्क को देखने के बाद वह अपने अनुभव से कह रहे हैं कि आजादी के समय जो भारत था वह बदल चुका है। देश में बहुत परिवर्तन हुए। उस समय दलितों और आदिवासियों के बारे में कोई सोचता तक नहीं था। उनकी कोई गिनती नहीं होती थी लेकिन आज इस बदलाव का नतीजा है कि देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला आसीन है।
भारतीय समाज में स्त्री का आदर नहीं
स्त्री शक्ति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं का बहुत सम्मान और आदर किया जाता रहा लेकिन भारतीय समाज में स्त्रियों को बराबरी के भाव से नहीं देखा गया और यह चिंता की बात है लेकिन अब स्तिथियाँ बदल रही हैं। लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में आगे आ रहीं हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में विद्या की देवी सरस्वती और धन की देवी लक्ष्मी तथा शक्ति की देवी महाकाली रही हैं। इतना ही नहीं महिषासुर का वध भी एक स्त्री दुर्गा ने किया था लेकिन भारतीय समाज में स्त्रियों को वह आदर और सम्मान तथा बराबरी का दर्जा नहीं मिला जिसकी वह हकदार है।