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संसद में टीम सोनिया पर हावी हुई राहुल गांधी की टीम, जानें- कैसे हुए उनके करीबियों की एंट्री

लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली हार के बाद भले ही राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया हो और उनकी जगह एक बार फिर सोनिया गांधी ने पद संभाला हो लेकिन पार्टी पर धीरे-धीरे राहुल की पकड़...

संसद में टीम सोनिया पर हावी हुई राहुल गांधी की टीम, जानें- कैसे हुए उनके करीबियों की एंट्री
सौभद्र चटर्जी हिन्दुस्तान टाइम्स,नई दिल्लीWed, 10 Mar 2021 02:50 PM
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लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली हार के बाद भले ही राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया हो और उनकी जगह एक बार फिर सोनिया गांधी ने पद संभाला हो लेकिन पार्टी पर धीरे-धीरे राहुल की पकड़ बढ़ती जा रही है और अहम पदों पर उन लोगों को नियुक्त किया जा रहा है जो उनके करीबी माने जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का नेता चुना जाना है। इससे पहले अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा का नेता बनाया गया था। इन दोनों की नियुक्ति से यह साफ है कि संसद में कांग्रेस की तरफ से टीम राहुल अब हावी दिखेगी। 

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्य सभा में विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद संसद में राहुल गांधी का प्रभाव दिखेगा। खड़गे को राहुल गांधी का भरोसेमंद माना जाता है।

इसके अलावा लोकसभा में कांग्रेस के  नेता अधीर रंजन चौधरी को भी राहुल गांधी का भरोसेमंद सिपाही माना जाता है।

साल 2019 में पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी को सदन में कांग्रेस का नेता बनाए जाने पर विचार किया जा रहा था लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में इस नाम को लेकर खासा उत्साह नहीं दिखा और उनकी जगह चौधरी को चुना गया। राहुल गांधी के एक करीबी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि मनीष तिवारी के साल 2014 में लोकसभा चुनाव न लड़ने के बाद से राहुल गांधी के साथ उनके रिश्तों में खटास आई है। 

हालांकि, पार्टी नेताओ का यह भी मानना है कि राहुल गांधी के साथ निजी तौर पर अच्छे रिश्तों के अलावा खड़गे और अधीर रंजन चौधरी की बढ़ती आक्रामकता ने भी उनके प्रमोशन में अहम भूमिका निभाई है।

बढ़ते पेट्रोल-डीजल के दामों की वजह से लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही इस हफ्ते बाधित रही है। बुधवार को भी राज्यसभा में पेट्रोल-डीजल और कृषि कानूनों को लेकर कांग्रेस के हंगाम की वजह से कामकाज ठप रहा।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सदन में प्रदर्शन और हंगामा अब अकसर देखने को मिलेगा क्योंकि खड़गे के नेतृत्व में पार्टी नरम नहीं पड़ेगी और राहुल गांधी के अंदाज में बीजेपी का सामना करेगी।

बजट सत्र के पहले चरण में जब गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता थे तो पार्टी कुछ दिनों के विरोध के बाद कृषि बिल पर चर्चा के लिए राजी हो गई थी। वह भी तब जब लोकसभा में कांग्रेस इसका विरोध जारी रखे हुई थी।

खबरों की मानें तो राहुल गांधी राज्यसभा में पार्टी की रणनीति से नाराज थे और उन्होंने लोकसभा में लगातार किए गए विरोध की तारीफ की थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब दिया तो उन्होंने भी कांग्रेस पार्टी की लोकसभा और राज्यसभा में अलग-अलग रणनीति पर ध्यान दिलाते हुए पार्टी पर निशाना साधा और कहा था कि भ्रमित और विभाजित कांग्रेस देश के लिए सही नहीं हो सकती। हालांकि, हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में गुलाम नबी आजाद ने पार्टी में अलग-अलग रणनीति के आरोपों को खारिज कर दिया था और कहा था कि यह सभी विपक्षी पार्टियों ने मिलकर फैसला किया था कि वे विरोध छोड़कर चर्चा में हिस्सा लेंगे।

पार्टी रणनीति से जुड़े एक शख्स ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि खड़गे को राज्यसभा में नेता बनाकर पार्टी ने आनंद शर्मा को एकदम साइडलाइन कर दिया। खड़गे और चौधरी दोनों ही राहुल गांधी के विश्वसनीय हैं। ऐसे में ये पार्टी हाई कमांड के निर्देशों का और बेहतरी से पालन करेंगे।

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