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यह कैसा सेकुलरिज्म? रास्ते में मस्जिद है तो RSS को मार्च की परमिशन क्यों नहीं: हाई कोर्ट

जस्टिस जी. जयचंद्रन ने तमिलनाडु पुलिस को आदेश दिया कि वह आरएसएस के मार्चों को निकलवाए। संघ ने 22 और 29 अक्टूबर को रैलियां निकालने की परमिशन मांगी थी, जिस पर पुलिस ने इनकार कर दिया था।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 20 Oct 2023 01:10 PM
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यह कैसा सेकुलरिज्म? रास्ते में मस्जिद है तो RSS को मार्च की परमिशन क्यों नहीं: हाई कोर्ट

यदि रास्ते में मस्जिद है तो फिर आरएसएस को मार्च निकालने या जनसभाएं करने की परमिशन क्यों नहीं मिल सकती? इस तरह का तर्क देकर रोक लगाना तो सेकुलरिज्म के ही खिलाफ है। मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की ओर से आरएसएस को मार्च की परमिशन न दिए जाने के खिलाफ दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। जस्टिस जी. जयचंद्रन ने तमिलनाडु पुलिस को आदेश दिया कि वह आरएसएस के मार्चों को निकलवाए। संघ ने 22 और 29 अक्टूबर को रैलियां निकालने की परमिशन मांगी थी, जिससे पुलिस ने इनकार कर दिया था। 

अदालत ने कहा कि तमिलनाडु की पुलिस आरएसएस की ओर से मांगी गई मंजूरी पर काफी दिनों तक कोई फैसला नहीं लेती। फिर जब मामला हाई कोर्ट पहुंचता है तो उससे कुछ वक्त पहले ही परमिशन नहीं दी जाती। मार्च के लिए परमिशन न देने का कारण बताते हुए तमिलनाडु पुलिस ने कहा कि मार्च के रूट पर मस्जिद और चर्च हैं। इसके अलावा रास्ते में जाम भी लग सकता है। अदालत ने कहा कि मार्च के लिए परमिशन न दिए जाने को लेकर इस तरह के तर्क देना ठीक नहीं है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बेंच ने कहा कि आरएसएस के मार्च को जिन आधारों पर परमिशन नहीं दी गई है, वह सेक्युलरिज्म के हमारे मूल्यों के ही खिलाफ है। किसी दूसरे धर्म के स्थलों के होने या फिर राजनीतिक संगठनों के दफ्तर होने का हवाला देकर परमिशन को रोका नहीं जा सकता। इस तरह का आदेश तो सेक्यलरिज्म के सिद्धांत के ही खिलाफ है। भारतीय संविधान की मूल भावना का भी यह उल्लंघन करता है। हालांकि अदालत ने तमिलनाडु पुलिस से कहा है कि वह मार्च की परमिशन दे, लेकिन यह भी तय करे कि पूरी व्यवस्था शांतिपूर्ण बनी रहे।

बीते साल भी आरएसएस के मार्च को मंजूरी न दिए जाने का मामला सामने आया था। तब भी आरएसएस के लोगों ने कोर्ट का रुख किया था। संघ का कहना था कि वह भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर रैलियों का आयोजन करने वाला है। इस पर भी तमिलनाडु सरकार को आपत्ति थी, जिस पर संगठन ने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी।