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बजट 2023 में मोदी सरकार ने एकलव्य स्कूलों पर क्यों दिया जोर, समझें- तीन राज्यों के चुनावी समीकरण

मोदी सरकार ने इन लोकलुभावन घोषणाओं और बजटीय आवंटन के जरिए इस साल होने वाली विधानसभा चुनावों को भुनाने की कोशिश की है। खासकर हिन्दी पट्टी के उन 3 बड़े राज्यों जहां अनुसूचित जनजाति की आबादी ज्यादा है।

बजट 2023 में मोदी सरकार ने एकलव्य स्कूलों पर क्यों दिया जोर, समझें- तीन राज्यों के चुनावी समीकरण
Pramod Kumarलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीWed, 01 Feb 2023 06:23 PM

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Budget 2023 Highlights: 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव से पहले  मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आखिरी पूर्ण बजट है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट को लोक लुभावन और सर्वसमावेशी बनानी की कोशिश की है। इसके तहत उन्होंने समाज के सभी वर्गों को कुछ न कुछ लाभ पहुंचाने का प्रस्ताव बजट में रखा है। इसके साथ ही उन्होंने चुनावी राज्यों का भी ख्याल बजट में रखा है।

उन्होंने अपने पांचवें बजट भाषण में कहा, "सबका साथ सबका  विकास के सरकार के सिद्धांत ने विशेष रूप से किसानों, महिलाओं, युवाओं, अन्य पिछड़े लोगों, अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों, दिव्यांगजनों और आर्थिक रूप से कमजोर तबके को कवर करते हुए समावेशी विकास संभव किया है।  जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पूर्वोत्तर पर भी निरंतर ध्यान दिया गया है और यह बजट उन प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है।"

अपने बजट भाषण के जरिए अनुसूचित जनजाति समुदाय को साधते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि पीएम वाजपेयी की सरकार ने जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया था ताकि समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सरकार की पहुंच सुनिश्चित हो सके। वित्त मंत्री ने इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए जनजातीय समूह के बच्चों के लिए खोले गए एकलव्य सूकूलों पर विशेष जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि अगले तीन वर्षों में  केंद्र सरकार 3.5 लाख जनजातीय छात्रों के लिए चलाए जा रहे 740 एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों के लिए 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मियों को नियुक्त करेगी।

इतना ही नहीं वित्त मंत्री ने संवेदनशील जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाने के लिए प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन शुरू करने का भी ऐलान किया है। इसके तहत आदिवासी परिवारों को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण जैसी बुनियादी जरूरतें उपलब्ध कराई जाएंगी।

दरअसल, मोदी सरकार ने इन लोकलुभावन घोषणाओं और बजटीय आवंटन के प्रस्तावों के जरिए इस साल होने वाली विधानसभा चुनावों को भुनाने की कोशिश की है। खासकर हिन्दी पट्टी के उन तीन बड़े राज्यों जहां अनुसूचित जनजाति की आबादी का हिस्सा बड़ा है और विधानसभाओं और लोकसभा में प्रतिनिधित्व भी बड़ा है।

इस  साल के अंत तक तीन बड़े राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में भी विधान सभा चुनाव होने हैं। इन तीनों राज्यों में विधानसभा की कुल 520  (मध्य प्रदेश-230, छत्तीसगढ़-90 और राजस्थान- 200)सीटें और लोकसभा की कुल 65 (मध्य प्रदेश-29, छत्तीसगढ़-11 और राजस्थान- 25)सीटें हैं। लोकसभा चुनाव अगले साल होने हैं। इन सीटों पर आदिवासी समुदाय की अच्छी पकड़ है।

2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों (ST) की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 21.1% है। एमपी की कुल  7.26 करोड़ आबादी में 1.53 करोड़ अनुसूचित जनजाति है। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 में से 30 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी।

मध्य प्रदेश से सटे छत्तीसगढ़ में कुल जनसंख्या का 12.82% अनुसूचित जाति (SC) और 30.62% अनुसूचित जनजाति (ST) हैं। इस राज्य की लगभग 41 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है। राजस्थान में भी अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 12.6 फीसदी है। इस राज्य में SC के लिए 34 और ST के लिए 25 सीटें आरक्षित हैं।