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क्यों 29 साल बाद भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में आयी ऐसी खटास, जानें 10 बातें

शिवसेना की मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने बड़ा फैसला लेते हुए 2019 का अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है। जिसके बाद 29 साल पुराने इस गठबंधन का कुछ...

क्यों 29 साल बाद भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में आयी ऐसी खटास, जानें 10 बातें
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीम। Tue, 23 Jan 2018 04:12 PM
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शिवसेना की मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने बड़ा फैसला लेते हुए 2019 का अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है। जिसके बाद 29 साल पुराने इस गठबंधन का कुछ महीनों बाद अंत माना जा रहा है। आइये भाजपा और शिवसेना के बीच आयी खटास से जुड़ी 10 बातें जानते हैं।

1-    21 सितंबर को 2017 को मराठा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री  नारायण राणे ने कांग्रेस छोड़ दी। उसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे कि वे भारतीय जनता पार्टी को ज्वाइन कर सकते हैं। इसके फौरन बाद शिवसेना ने यह संकेत देना शुरू किया कि उनका सरकार से अलग होने का विकल्प खुला हुआ है।

2-    साल 2005 में शिवसेना ने नारायण राणे को उस वक्त पार्टी से निलंबित कर दिया गया जब उन्होंने पार्टी के अंदर उद्धव ठाकरें के बढ़ते हुए कद का विरोध किया था। राणे कोंकण बेल्ट के सिंधुदुर्ग का एक बड़ा ताकतवर शख्स हैं जो पारंपरिक तौर शिवसेना का गढ़ माना जाता है। 

3-    महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडणवीस सरकार के साथ कई मुद्दों पर शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का मतभेद रहा, जैसे किसानों की ऋण माफी और पेंडिंग पड़े विकास कार्य।

4-    भाजपा और शिवसेना का गठबंधन दोनों की मजबूरी है। उसकी वजह है राज्य की सत्ता से कांग्रेस को दूर रखना और दूसरा महाराष्ट्र में हिन्दुत्व की राजनीति को जिंदा रखना। महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना का कोई वजूद नहीं है। 

5-    भाजपा और शिवसेना का गठबंधन करीब तीन दशक पुराना है जो 1989 में शुरू हुआ था। उस वक्त शिवसेना ही राज्य में गठबंधन का नेतृत्व कर रही थी। 

6-    जब शिवसेना-भाजपा के गठबंधन में पहली बार महाराष्ट्र में सरकार बनी उस वक्त शिवसेना के मनोहर जोशी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था।

7-    मनोहर जोशी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में इस्तीफा दिया और उसके बाद नारायण राणे को आठ महीने के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। 

8-    देश की सबसे धनी नगरपालिका  बीएमसी में भी स्थिति अलग नहीं थी। शिवसेना यह पर पिछले करीब दशक से बनी हुई थी लेकिन 2007 के बाद यहां पर भाजपा का आधार बनना शुरू हुआ।

9-    उस साल हुए चुनाव में भाजपा ने बीएमसी की 28 सीटें जीती जबकि साल 2017 के बीएमसी चुनाव में भाजपा को शानदार 82 सीटें मिली जो शिवसेना से मात्र 2 सीट कम थी। 

10-    2004 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र में 54 सीटें मिली जबकि शिवसेना को 62 सीटें। लेकिन दोनों का गठबंधन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को नहीं हरा पाया। 2014 के अक्टूबर में नरेन्द्र मोदी की लहर पर सवार होकर भाजपा ने यहां की 288 सदस्यीय विधानसभा में से 122 सीटें जीत ली जबकि शिवसेना को 63 सीटें मिली। ऐसे में कोई सवाल ही नहीं उठता है कि कौन है सीनियर पार्टनर।
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