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कौन थीं पंडित नेहरू की 'आदिवासी पत्नी' बुधनी, जिनके लिए दर्द बन गया फूलों का हार

1959 में एक डैम के उद्घाटन के मौके पर जब पंडित नेहरू पहुचे तो बुधनी ने उनका स्वागत किया। पंडित जी ने सम्मान के तौर पर उनको फूलों का हार पहना दिया। इसके बाद उनका बहिष्कार करदिया गया।

कौन थीं पंडित नेहरू की 'आदिवासी पत्नी' बुधनी, जिनके लिए दर्द बन गया फूलों का हार
Ankit Ojhaलाइव हिंदुस्तान,नई दिल्लीTue, 21 Nov 2023 11:09 AM
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पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 'आदिवासी पत्नी' कही जाने वाली बुधनी  मंझियान का निधन हो गया है। वह 80 साल की थीं। जीवनभर बहिष्कार का दंश जेलने वाली बुधनी के स्मारक बनाने की चर्चा हो रही है। 1959 में एक बांध के उद्घाटन के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सम्मान के तौर पर फूलों का हार पहना दिया था। इसके बाद उनका काफी विरोध किया गया और बहिष्कार कर दिया गया। बुधनी उस वक्त मात्र 16 साल की थीं। बुधनी संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती थीं। कहा गया कि अपने समुदाय से बाहर उनकी शादी हो गई है और इसलिए उन्हें बहिष्कृत कर दिया गया। 

इस तरह पंचेत बांध के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री द्वारा पहनाया गया हार उनके लिए अभिषाप ही बन गया। बता दें कि संथाल आदिवासी समुदाय में अगर कोई पुरुष महिला को माला पहना दे तो इसे शादी की मान्यता दे दी जाती है। अगर कोई समुदाय से बाहर विवाह करता है तो उसका बहिष्कार किया जाता है। बुधनी की गांव में एंट्री भी बंद कर दी गई थी। वह गांव के बाहर ही एक टूटे-फूटे मकान में अपनी बेटी रत्ना के साथ रहती थीं। 

देहांत के बाद स्मारक की मांग
जो बुधनी मंझियान जीवनभर बहिष्कार की मार झेलती रही अब उनका स्मारक बनाने की मांग हो रही है। अ लोग बुधनी मंझियान को पंडित नेहरू की पत्नी बता रहा हैं और उनकी मूर्ति के बगल में एक नई मूर्ति लगवाने की बात करह रहे हैं। वहीं बुधनी की बेटी की उम्र भी 60 साल की हो गई है। ऐसे में लोगों का कहना है कि उन्हें पेंशन भी मिलनी चाहिए। प्रशासन का कहना है कि अब स्मारक की मांग पर कोई फैसला नहीं किया गया है। 

बांध में ही डूब गई थी जमीन
1952 में ही जब बांद का निर्माण शुरू हुआ तो बुधनी के परिवार की जिंदगी तबाह होने लगी। उनकी जमीन बांध में ही डूब गई। हालांकि उनका परिवार बांध के लिए ही मजदूरी करने लगा। इस प्रोजेक्ट में वह पहली अनुबंधित मजदूर थीं। 5 दिसंबर 1959 को जब डैन का उद्घाटन हुआ तो पंडित नेहरू के हार पहनाने की वजह से वह नई मुसीबत में घिर गईं। बुधनी को पंडित नेहरू के स्वागत के लिए चुना गया था। 1962 में बुधनी के साथ ही अन्य अनुबंधित मजदूरों का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया। इसके बाद वह बंगाल के पुरुलिया चली गईं और मजदूरी करने लगीं। वहीं बुधनी ने एक मजदूर सुधीर दत्ता से शादी कर ली। जब राजीव गांधी 1985 में प्रधानमंत्री के तौर पर आसनसोल पहुंचे थे तो बुधनी ने अपनी परेशानी बताई। इसके बाद उन्हें डीवीसी में नौकरी मिल गई। बुधनी नौकरी से 2005 में रिटायर हुई थीं।

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