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कौन हैं बिंदास मुदासिर? जिनके शहीद होने पर रोया था पूरा कश्मीर, अब शौर्य चक्र से नवाजा गया जांबाज

मुदासिर को उनके निकनेम 'बिंदास भाई' के नाम से जाना जाता था। जम्मू-कश्मीर पुलिस में शामिल होने के कुछ महीनों बाद उन्हें यह नाम आम जनता से मिला क्योंकि उनका दिल बहुत बड़ा था।

कौन हैं बिंदास मुदासिर? जिनके शहीद होने पर रोया था पूरा कश्मीर, अब शौर्य चक्र से नवाजा गया जांबाज
Amit Kumarलाइव हिन्दुस्तान,श्रीनगरThu, 26 Jan 2023 04:50 PM
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 15 शौर्य चक्रों सहित 412 वीरता पुरस्कारों को मंजूरी दी थी। शौर्य चक्र पाने वालों में एक नाम मुदासिर अहमद शेख का भी है। मुदासिर बारामूला में 25 मई 2022 को आतंकियों से लोहा लेते वक्त शहीद हो गए थे। लेकिन देश के लिए कुर्बान होने से पहले मुदासिर ने कुछ ऐसा किया जिस पर पूरा भारत हमेशा गर्व करेगा। मुदासिर को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया जाएगा। अशोक चक्र के बाद कीर्ति चक्र भारत में शांतिकाल में दिया जाने वाला दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। शौर्य चक्र देश का तीसरा शीर्ष शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।

कौन हैं मुदासिर अहमद शेख?

मुदासिर अहमद शेख जम्मू कश्मीर पुलिस के कॉन्स्टेबल थे। पाकिस्तानी आतंकियों से लोहा लेते हुए वह 25 मई 2022 को शहीद हो गए। 25 मई को, जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले के क्रीरी इलाके में नजीभट चौराहे पर एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया था। इसी मुठभेड़ के दौरान मुदासिर भी जान चली गई। कहते हैं कि मुदासिर अहमद शेख के शहीद होने के महीनों बाद तक उनके फैंस, दोस्त, परिचित उनके घर पर उनकी मौत का शोक मनाने के लिए आते रहे। पूरी कश्मीर घाटी अपने बहादुर बेटे को खोने के बाद गमगीन थी। उनके पिता ने बताया कि विदेश में भी ऐसे लोग थे जो मुदासिर से प्यार करते थे। वे भी गमगीन हो गए जब उन्होंने मुदासिर की खबर सुनी। मुदासिर का घर उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के सुदूर उरी इलाके में है। 

बिंदास भाई के नाम से जानता था पूरा कश्मीर

मुदासिर को उनके निकनेम 'बिंदास भाई' के नाम से जाना जाता था। जम्मू-कश्मीर पुलिस में शामिल होने के कुछ महीनों बाद उन्हें यह नाम आम जनता से मिला क्योंकि उनका दिल बहुत बड़ा था। मुदासिर ने हमेशा लोगों की मदद की। मुदासिर का व्यवहार, युवाओं को उनके भविष्य में अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करता था। वह अक्सर अपने दोस्तों को सरप्राइज देकर चौंका देते थे। 

बिंदास भाई लोगों के दिलों में बसते थे। उनकी मौत के बाद, मुदासिर के 24 वर्षीय भाई बासित मकसूद ने बताया था कि बिंदास भाई का मोबाइल नंबर बारामूला-उरी रोड पर चलने वाले हर एक कैब ड्राइवर के पास था। अगर कोई पुलिसकर्मी अनावश्यक रूप से उन कैब ड्राइवर्स को पकड़ लेता था तो वे तुरंत मुदासिर को फोन करते थे और वह भी उनकी मदद करते थे। मुदासिर के भाई ने बताया कि एक स्कूल के पास में उरी में एक तलाशी अभियान चल रहा था। तभी मुदासिर अंदर गए और बच्चों के बीच आइसक्रीम बांटने लगे। 

दुश्मन तो खत्म कर ली आखरी सांस

25 मई 2022 को जब सुरक्षाबलों को तीन विदेशी आतंकियों के मूवमेंट की जानकारी मिली तो उन्होंने एक ऑपरेशन चलाया। कहा जाता है कि उन आतंकियों के निशाने पर अमरनाथ यात्रा थी। मुदासिर अहमद शेख ने जैसे ही आतंकियों के वाहन की पहचान की वैसे ही वे आतंकी फायरिंग करने लगे। अपनी जान की परवाह किए बिना मुदासिर आतंकियों के वाहन पर छपटे और एक आतंकी को कार से बाहर खींच लिया। कई गोली लगने के बाद भी उन्होंने आतंकी को नहीं छोड़ा। मुदासिर अहमद शेख गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। लेकिन फिर भी वह एक आतंकी को दबोचे रहे और बाकी आतंकियों के जवाब में ताबड़तोड़ फायरिंग की। हमले में मुदासिर इस कदर जख्मी हो चुके थे कि उनको बचाया नहीं जा सका और वे वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन तब तक तीनों आतंकी ढेर हो चुके थे। ऑपरेशन में भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए। 

मरने से नहीं डरता था मेरा बेटा- पिता

फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए, जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सेवानिवृत्त उप-निरीक्षक मुदासिर के पिता मकसूद अहमद शेख ने कहा कि उनका बेटा बहादुर और साहसी था। उन्होंने कहा, “वह मारे जाने से कभी नहीं डरता था और उसका मानना था कि हम सभी को एक दिन मरना है। वह शहीद है और मुझे उस पर गर्व है।'

उन्होंने कहा कि नई चीजें सीखने और असाधारण बनने के उसके जुनून ने उसे पुलिस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “चूंकि मेरी पत्नी बारामूला के रफियाबाद इलाके से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए वह अपनी छठी क्लास के बाद वहां शिफ्ट हो गया। उसने वहां के एक स्थानीय स्कूल से 10वीं की पढ़ाई पूरी की और परीक्षा में टॉप किया था।"

मकसूद ने कहा, “वह पंजाब के एक ट्रक ड्राइवर के साथ हमें बताए बिना घर से भाग गया। उसे ड्राइविंग सीखने का शौक था लेकिन हम इसके खिलाफ थे क्योंकि वह तब बच्चा था। लेकिन छह महीने बाद वह वापस लौट आया। हमने उसे सरकारी नौकरी की तलाश करने के लिए मजबूर किया और आखिरकार 2009 में उसे जम्मू-कश्मीर एड्स कंट्रोल सोसाइटी में ड्राइवर की नौकरी मिल गई। वहां भी उसकी दोस्ती ज्यादातर पुलिस से ही थी। कई लोग सोचते थे कि वह ड्राइवर के बजाय एक पुलिस वाला था।”

उसे वर्दी पहनने का शौक था: मुदासिर के पिता 

मुदासिर के पिता ने कहा, “मुझे याद है कि 2016 में, मेरे रिटायरमेंट से कुछ समय पहले, वह मेरे पास आया और कहा कि वह पुलिस में शामिल होना चाहता है। जब मैंने पूछा कि वह पुलिस में क्यों जाना चाहता है, तो उसने कहा कि वह कश्मीर के लोगों की मदद करना चाहता है, खासकर उरी के अपने लोगों की। वह जनता के बीच जम्मू-कश्मीर पुलिस की सकारात्मक छवि बनाना चाहता था। उसे वर्दी पहनने का शौक था।” 

फिटनेस ऐसी की दुश्मन भी घबरा जाए

मकसूद के रिटायर होने के एक दिन बाद मुदासिर को ज्वाइनिंग ऑर्डर मिला। वह विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में शामिल हुए थे। बाद में उनके अच्छे काम और शानदार फिटनेस के आधार पर, उनके सीनियर्स ने उन्हें जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक आतंकवाद विरोधी बल, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) में ले लिया था। मकसूद ने कहा कि पूरे जम्मू-कश्मीर के लोग उनके घर आते थे, चाहे वह हिंदू हों, सिख हों, मुस्लिम हों या कोई और। 
 

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