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कौन हैं भारत में जन्में सलमान रुश्दी, जिनकी एक किताब से भड़क गए थे मुस्लिम देश

रुश्दी अपनी पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' के साथ दुनिया भर में और फेमस हो गए। किताब में कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक बातें लिखी गईं। किताब 1988 में प्रकाशित हुई थी।

कौन हैं भारत में जन्में सलमान रुश्दी, जिनकी एक किताब से भड़क गए थे मुस्लिम देश
Amit Kumarलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीFri, 12 Aug 2022 11:03 PM
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अमेरिका के न्यूयार्क शहर में शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान लेखक सलमान रुश्दी पर एक व्यक्ति ने जानलेवा हमला किया। मुंबई में पैदा हुए और बुकर पुरस्कार से सम्मानित 75 वर्षीय रुश्दी पश्चिमी न्यूयॉर्क के शुटाउक्वा संस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान अपना लेक्चर शुरू करने वाले थे। तभी एक व्यक्ति मंच पर चढ़ा और रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया। उस समय कार्यक्रम में उनका परिचय दिया जा रहा था।

ऑनलाइन पोस्ट किए गए एक वीडियो में घटना के तुरंत बाद उपस्थित लोगों को मंच की ओर भागते देखा जा सकता है। कहा जाता है कि वहां मौजूद लोगों ने हमलावर को पकड़ लिया। न्यूयार्क पुलिस ने कहा कि सलमान रुश्दी पर मंच पर हुए हमले में उनकी गर्दन पर चोट आई है, उन्हें हेलीकॉप्टर से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। हमलावर पुलिस हिरासत में है।

लेखक सलमान रुश्दी पर अमेरिका में जानलेवा हमला, गर्दन में घोंपा चाकू

कौन हैं भारत में जन्में सलमान रुश्दी?

अहमद सलमान रुश्दी का जन्म 19 जून 1947 को मुंबई में हुआ था। रुश्दी भारतीय मुस्लिम परिवार में पैदा हुए थे लेकिन वे खुद को नास्तिक बताते हैं। भारतीय मूल के उपन्यासकार रुश्दी ने अपने 1981 के उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के जरिए खासा प्रसिद्धि हासिल की थी। किताब को उसी साल दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार 'बुकर प्राइज' से सम्मानित किया गया था। इस किताब को बुकर प्राइज जीतने वालों में दो बार (1993 और 2008 में) दुनिया के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के नवाजा गया था। 

एक किताब से भड़क गए थे मुस्लिम देश

हालाकि, रुश्दी अपनी पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' के साथ दुनिया भर में और फेमस हो गए। किताब में कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक बातें लिखी गईं। किताब 1988 में प्रकाशित हुई थी। इसके प्रकाशन के तुरंत बाद इस्लामिक देशों में इसके खिलाफ भूचाल आ गया। कई मुसलमानों ने इसे 'ईशनिंदा' कहा और ईरान व भारत सहित कई देशों में इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रुश्दी की यह किताब ईरान में 1988 से ही प्रतिबंधित है। 

ईरान के कट्टरपंथी तत्वों से उनको जान से मारने की धमकी मिली थी। इस्लाम धर्म के मानने वाले बहुत लोगों का मानना है कि किताब में ईशनिंदा की गई है। ईरान के तत्कालीन नेता अयातुल्लाह रोहल्ला खुमैनी ने रुश्दी की मौत का फतवा जारी किया था। उनकी हत्या करने वाले को 30 लाख डॉलर से अधिक का ईनाम देने की घोषणा की गई थी। हालांकि ईरान सरकार ने उस फतवे से खुद को अलग रखा है। लेकिन बावजूद इसके रुश्दी के खिलाफ उग्र भावनाएं बनी रहीं। उनकी विवादास्पद किताब भारत में भी प्रतिबंधित है। रुश्दी अंग्रेजी में लिखते हैं और लंदन में रहते हैं। 

द गार्जियन ने बताया कि ईरान में एक अर्ध-सराकीर धार्मिक संगठन '15 खोरदाद फाउंडेशन' ने रुश्दी की हत्या के लिए इनाम को शुरुआती $2.8 मिलियन से बढ़ाकर $3.3 मिलियन कर दिया। उस समय की धमकी को खारिज करते हुए रुश्दी ने कहा था कि इनाम में लोगों की दिलचस्पी का कोई सबूत नहीं है। 

बीबीसी रेडियो 4 पर बोलते हुए, उन्होंने अपनी पुस्तक का बचाव करते हुए कहा था कि "यह सच नहीं है कि यह पुस्तक इस्लाम के खिलाफ ईशनिंदा है। मुझे इस बात पर बहुत संदेह है कि खुमैनी या ईरान में किसी ने किताब पढ़ी भी है। उन्होंने बाहर के किसी से मेरी किताब के बारे में कुछ चुनिंदा बातें ही सुनी हैं।” उसी साल, रुश्दी ने फतवे के बारे में एक संस्मरण, 'जोसेफ एंटोन' भी प्रकाशित किया था।

उनकी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' के अनुवादकों और प्रकाशकों की हत्या के प्रयास भी हुए। जिसके बाद उन्हें ब्रिटेन सरकार द्वारा पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई। रुश्दी ने ब्रिटेन में ही स्कूली पढ़ाई की थी। वे लगभग एक दशक तक अंडरग्राउंड रहे। 1990 के दशक के अंत में जब ईरान ने कहा कि वह उनकी हत्या का समर्थन नहीं करेगा, तब रुश्दी सार्वजनिक जीवन में दिखाई दिए। अभी फिलहाल वे न्यूयॉर्क में रहते हैं। वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार हैं।  

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