जब केंद्र सरकार गिराने जेल से आया था अतीक अहमद, मुलायम सिंह की मर्जी के खिलाफ दिया था वोट
22 जुलाई 2008 को लोकसभा में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग चल रही थी, तब माफिया डॉन अतीक अहमद को मैनपुरी जेल से कड़ी सुरक्षा में लाया गया था। तब अतीक फूलपुर से सपा सांसद थे।
बात साल 2008 की है। जुलाई के महीने में उमसभरी गर्मी में दिल्ली के लुटियन जोन्स में सियासी पारा चरम पर था। चार साल पुरानी मनमोहन सिंह की सरकार पर खतरा मंडरा रहा था। 2009 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले लेफ्ट पार्टियों ने अमेरिका से परमाणु डील के विरोध में मनमोहन सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव:
22 जुलाई 2008 को लोकसभा में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग चल रही थी, तब माफिया डॉन अतीक अहमद को मैनपुरी जेल से कड़ी सुरक्षा में लाया गया था। इससे पहले इलाहाबाद की एक अदालत ने संसद के दो दिवसीय विशेष सत्र में हिस्सा लेने और वोटिंग करने के लिए अतीक अहमद को इजाजत दे दी थी।
स्पेशल जज एमपी यादव ने तब जेल अधिकारियों को कड़ी सुरक्षा में अतीक अहमद को दिल्ली ले जाने और दो दिन तक वहां रखने का आदेश दिया था। उस वक्त अतीक अहमद फूलपुर से सपा के सांसद थे और कई आपराधिक मामलों में ट्रायल का सामना कर रहे थे।
मुलायम की मर्जी के खिलाफ अतीक अहमद:
वैसे तो मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी मनमोहन सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी और न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर भी मनमोहन सिंह के साथ थी लेकिन तब उसके 39 सांसदों में से छह सांसदों ने सरकार के खिलाफ अपना वोट डाला था। सरकार के खिलाफ वोटिंग करने वालों में चार बागी (मुनव्वर हसन, एस.पी. सिंह बघेल, राजनारायण बुधोलिया और जयप्रकाश रावत) और जेल में बंद दो (अतीक अहमद और अफजल अंसारी) सांसद शामिल थे।
हालांकि, सपा ने दो निर्दलीय सांसदों के समर्थन का भी जुगाड़ कराकर मनमोहन सरकार को बचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। ये दो सांसद थे बालेश्वर यादव और बृज भूषण शरण सिंह, जबकि प्रतिद्वंद्वी बसपा के सभी 17 सांसदों ने सरकार के खिलाफ वोट किया था।
सपा से हो चुके थे निष्कासित:
यह वो दौर था, जब अतीक अहमद को "पार्टी विरोधी गतिविधियों" के कारण जनवरी 2008 में समाजवादी पार्टी से निकाला जा चुका था और अतीक बहुजन समाज पार्टी के साथ दोस्ती करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी।
मनमोहन सरकार ने जीता था विश्वास मत:
तब 543 सदस्यों वाली लोकसभा में मनमोहन सिंह सरकार के पक्ष में 275 मत मिले थे जबकि विरोध में सिर्फ 256 वोट ही मिल सके थे। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस तब वोटिंग में शामिल नहीं हुई थी और खुद को उससे अलग कर लिया था। दूसरी तरफ बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के आठ सांसदों ने भी अपने-अपने दलों के रुख का उल्लंघन किया था और वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था।
मुलायम से बिगड़ते चले गए रिश्ते:
इस दौरान सपा मुखिया मुलायम सिंह के साथ अतीक अहमद के संबंध बिगड़ते चले गए। अतीक ने मुलायम सिंह यादव के मतदान से दूर रहने के आह्वान को धता बताते हुए न केवल नो ट्रस्ट वोटिंग में भाग लिया और सरकार के खिलाफ वोटिंग की थी बल्कि उस समय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी कई अनर्गल बयान दिए थे।