'भारत जोड़ो' से राहुल गांधी को क्या मिला? छवि बदली पर कांग्रेस के सामने चुनौतियां बरकरार
कन्याकुमारी में तीन महासागर के संगम से शुरू होकर यात्रा हिमालय की गोद में बसे श्रीनगर में खत्म हुई। गर्मी, बारिश और सर्दी के बीच राहुल गांधी ने लगातार करीब चार हजार किलोमीटर पदयात्रा की।
भारत जोड़ो यात्रा खत्म हो चुकी है। यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने लाखों लोगों से सीधा संपर्क किया। समाज के अलग-अलग तबकों से उनकी समस्याओं पर चर्चा की। ऐसे में सवाल लाजिमी हैं कि क्या भारत जोड़ो यात्रा अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल रही है? इस यात्रा से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को क्या फायदा हुआ है?
कन्याकुमारी में तीन महासागर के संगम से शुरू होकर यात्रा हिमालय की गोद में बसे श्रीनगर में खत्म हुई। गर्मी, बारिश और सर्दी के बीच राहुल गांधी ने लगातार करीब चार हजार किलोमीटर पदयात्रा की। राहुल को इसका लाभ मिला और वह अपनी छवि बदलने में सफल रहे। लोग अब स्पष्ट कहते हैं कि राहुल गांधी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वह पार्टी में भी एक सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित हुए हैं। इसके साथ विपक्ष के एक जाने माने नेता के तौर पर उभरे हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राहुल गांधी यह साबित करने में सफल रहे हैं कि उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। सियासत से बाहर भी राहुल खुद को स्थापित करने में काफी हद तक सफल रहे हैं। यात्रा से दौरान समाज के अलग-अलग तबके के लोग शामिल हुए। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, फिल्म कलाकार, पूर्व सैनिक और पूर्व नौकरशाह शामिल हैं।
इस सबके बावजूद राहुल गांधी की चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई। खुद राहुल को भी इसका अहसास है। यही वजह है कि जब उनसे भविष्य की योजनाओं और यात्रा से बनी गति को बनाए रखने की रणनीति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बेहद साफ अल्फाज में जवाब दिया कि वह एक और बड़ी पहल के बारे में सोच रहे हैं।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल सत्ता तक पहुंचाना है। इसके लिए एक बार फिर पार्टी को विपक्षी खेमे में स्थापित करना होगा। क्योंकि, लगातार दो लोकसभा चुनाव में हार के बाद क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस पर भरोसा कम हुआ है। पार्टी को इस भरोसे को फिर से कायम करने के लिए खुद को मजबूत करना होगा।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक इसके लिए पार्टी को विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना होगा। क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। हिमाचल प्रदेश की तरह पार्टी इन चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने में सफल रहती है, तो विपक्षी खेमे में उसका रुतबा बढ़ेगा।
राहुल गांधी को भी अपना दायरा बढ़ाना होगा। पार्टी रणनीतिकारों के साथ उन्हें खुद भी इसके लिए प्रयास करने होंगे। तृणमूल कांग्रेस और बीजद का समर्थन बेहद अहम है। इसके बगैर सत्ता तक पहुंचना आसान नहीं होगा। साथ में पार्टी को ऐसे मुद्दों से भी दूरी बनानी होगी, जिनसे सियासी तौर पर पार्टी को नुकसान हुआ है।
इसके साथ पार्टी को संगठन को नए सिरे से खड़ा करना होगा। फरवरी में रायपुर में होने वाले महाधिवेशन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे संगठन में बड़े बदलाव कर सकते हैं। खड़गे ने इसकी शुरुआत की है, पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। संगठन मजबूत बनाए बगैर चुनाव जीतना मुश्किल है।
कांग्रेस और खुद राहुल गांधी लगातार यह दलील देते रहे हैं कि यह यात्रा राजनीतिक फायदे के लिए नहीं है। बकौल राहुल गांधी उन्होंने यह यात्रा कांग्रेस के लिए नहीं की है पर राजनीति में यात्रा को चुनावी कसौटी पर तौला जाएगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक से यात्रा गुजरी है। चुनाव परिणाम यात्रा का असर तय करेंगे।
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा कहते हैं भारत जोड़ो यात्रा जिन-जिन प्रदेशों से गुजरी है, लोगों ने उसे समर्थन दिया है। समाज के लगभग सभी तबके के लोग यात्रा में शामिल हुए। इससे कांग्रेस के प्रति लोगों में उत्सुकता बढ़ी है। राहुल गांधी की छवि भी बदली है। अब संगठन की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के समर्थन को वोट में तब्दील करे। इसके लिए पार्टी को संगठन को सुधारना होगा।