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पढ़-लिख कर बने बेरोजगार, रिपोर्ट में खुलासा, देश में सबसे ज्यादा ग्रेजुएटों के पास नहीं है नौकरी

देश में कुल बेरोजगारों में बड़े पैमाने पर पढ़े लिखे लोगों की संख्या है और इसमें ग्रेजुएट सबसे ऊपर हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की रिपोर्ट में...

पढ़-लिख कर बने बेरोजगार, रिपोर्ट में खुलासा, देश में सबसे ज्यादा ग्रेजुएटों के पास नहीं है नौकरी
सौरभ शुक्ल हिन्दुस्तान,नई दिल्लीSun, 01 Aug 2021 06:33 AM

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देश में कुल बेरोजगारों में बड़े पैमाने पर पढ़े लिखे लोगों की संख्या है और इसमें ग्रेजुएट सबसे ऊपर हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। ये सर्वे जुलाई 2019 से लेकर जून 2020 के बीच कराया गया। आंकड़ों में सभी राज्यों की कुल बेरोजगारी दर 4.8 फीसदी रही है। वहीं इसमें सबसे बड़ा हिस्सा स्नातकों की बेरोजगारी का 17.2 फीसदी रहा है। इसके बाद 14.2 फीसदी डिप्लोमा या फिर सर्टिफिकेट कोर्स करने वाले रहे हैं। वहीं पोस्ट ग्रेजुएट या उससे ज्यादा पढ़ाई करने वाले 12.9 फीसदी बेरोजगारों की जानकारी दी गई है।

सभी राज्यों के कुल आंकड़ों में माध्यमिक या उससे ज्यादा की बढ़ाई करने वाले बेरोजगार 10.1 और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा हासिल करने वाले शिक्षित बेरोजगार 7.9 फीसदी हैं। दिल्ली में 13.5 फीसदी, बिहार में 19.9 फीसदी, हरियाणा में 13.4 फीसदी, झारखंड में 14 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 15.6 और उत्तराखंड में 21.9 फीसदी ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। बिहर में औसत 5.1, दिल्ली में 8.6, हरियाणा में 6.4, झारखंड में 4.2, उत्तर प्रदेश में 4.4 और उत्तराखंड में 7.1 फीसदी शिक्षित बेरोजगारी है।

डिप्लोमा वालों का बुरा हाल
राज्यवार आंकड़ों की बात की जाए तो यहां बिहार, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करने वालों का हाल बाकी देश के मुकाबले बहुत बुरा है। बिहार में 85 फीसदी तक डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स करने वाले बेरोजगार हैं। दिल्ली में 14.6 फीसदी, हरियाणा में 13.1 फीसदी, झारखंड में 24.7 फीसदी, यूपी में 21.2 फीसदी और उत्तराखंड 22 फीसदी डिप्लोमा वाले बेरोजगार हैं।

शिक्षा व्यवस्था के चलते ग्रेजुएट के बेरोजगार बढ़े
पूर्व श्रम सचिव शंकर अग्रवाल ने हिंदुस्तान को बताया है कि इस देश में शिक्षा व्यवस्था इस तरह की है कि लोग सिर्फ किसी न किसी विषय में ग्रेजुएट या डिप्लोमा ले लेने के बारे में सोचते हैं। बाद में जब उस दिशा में काम तलाशते हैं तो पर्याप्त वैकेंसी न होने की वजह से बेरोजगार रह जाते हैं। उनके मुताबिक आज की तारीख में तमाम इंजीनियर्स या फिर एमबीए की पढ़ाई करने वाले भी कुछ दिन वहां काम करने के बाद हालात मुफीद न लगने की वजह से सिविल सेवाओं की तैयारी करते हैं, सेलेक्शन हुआ तो ठीक नहीं तो कुछ और काम करना शुरू करते हैं या बेरोजगाार हो जाते हैं।

कोरोना की पहली लहर का भी असर
अग्रवाल के मुताबिक रिपोर्ट में दिए गए आकंड़ों में तीन महीने के कोरोना की पहली लहर का भी समय शामिल रहा है। इस दौरान बड़े पैमाने पर लॉकडाउन हुआ था और लोग बेरोजगार हो गए थे। बेरोजगारों के उस आंकड़े में बड़े पैमाने पर पढ़े लिखे लोग जरूर रहे होंगें। कोरोना से हालात जिस हिसाब से तेजी से बदल रहे हैं, उससे साफ है कि आनेवाले दिनों में सेवा क्षेत्र और दूसरे तमाम क्षेत्रों में काम कर रहे पढ़े लिखे लोगों पर इसका असर होगा।

नए लोगों को नौकरी पर रखने का रिस्क नहीं ले रहीं कंपनियां
पूर्व श्रम सचिव ने कहा कि आज की तारीख में किसी भी कारोबारी क्षेत्र में नए लोगों को नौकरी पर रखने का रिस्क नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में उन्हें या तो नौकरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा या फिर महीने में 10-15 दिन के कॉन्ट्रैक्ट में जरूरत के हिसाब से बैकअप वर्कफोर्स के तौर पर काम करना होगा।

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